जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम संशोधन विधेयक (यूएपीए) 2019 राज्यसभा से पास हो गया। बिल के पक्ष में 147 और विपक्ष में 42 वोट पड़े। अब संस्था के अलावा आतंकी गतिविधियों में शामिल किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित किया जा सकेगा। शुक्रवार को राज्यसभा में इस बिल के प्रावधानों पर विपक्षी सदस्यों ने तीखा विरोध किया। कांग्रेस की तरफ से वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह ने मोर्चा संभाला, तो गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों नेताओं को संबोधित करते हुए पलटवार किया। यूएपीए संशोधन विधेयक आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करता है और यह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकार को बढ़ाने वाला है।
अमित शाह ने कहा कि कई देश आतंकवाद से पीड़ित हैं। कानून के दुरुपयोग की दलील ठीक नहीं है। 31 जुलाई 2019 तक एनआईए ने कुल 278 मामले कानून के अंतर्गत रजिस्टर किए। 204 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए और 54 मामलों में अब तक फैसला आया है। 54 में से 48 मामलों में सजा हुई है। सजा की दर 91 प्रतिशत है। दुनियाभर की सभी एजेंसियों में एनआईए की सजा की दर सबसे ज्यादा है।
शाह ने कहा, ‘जेहादी किस्म के केसों में 109 मामले रजिस्टर्ड किए गए। वामपंथी उग्रवाद के 27 मामले रजिस्टर्ड किए गए। नार्थ ईस्ट में अलग-अलग हत्यारे ग्रुपों के खिलाफ 47 मामले रजिस्टर्ड किए गए। खालिस्तानवादी ग्रुपों पर 14 मामले रजिस्टर्ड किए गए। जब हम किसी आतंकी गतिविधियों में लिप्त संस्था पर प्रतिबंध लगाते हैं तो उससे जुड़े लोग दूसरी संस्था खोल देते हैं और अपनी विचारधारा फैलाते रहते हैं। जब तक ऐसे लोगों को आतंकवादी नहीं घोषित करते तब तक इनके काम पर और इनके इरादे पर रोक नहीं लगाई जा सकती।’
दिग्विजय सिंह का गुस्सा जायज है
उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा के दुरुपयोग और हवाला के लिए 45 मामले दर्ज किए गए और अन्य 36 मामले दर्ज किए गए। सभी मामलों में कोर्ट के अंदर चार्जशीट की प्रक्रिया कानून के तहत हुई है। शाह ने समझौता एक्सप्रेस बम धमाके का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें जांच एजेंसी को कोई सबूत नहीं मिले। दिग्विजय का गुस्सा जायज है वह चुनाव हारे हैं। वो कह रहे हैं कि मुझे ही आतंकी घोषित कर दो। मैं उन्हें भरोसा दिलाता हूं कि आप कुछ नहीं करोगे तो कुछ नहीं होगा।
उनका कहना है कि एनआईए के तीन मामलों में किसी को सजा नहीं हुई है। इस धमाके में नकली आरोपी पकड़े गए थे। समझौता मामले में जजों को कुछ नहीं मिला। कांग्रेस की नजर और नजारा बदल गया है। आंतकवाद इंसान नहीं इंसानियत के खिलाफ है। कांग्रेस ने आतंकवाद को धर्म से जोड़ा है।
यूएपीए बिल का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि अगर आप संशोधन के कारणों को देखेंगे तो इसमें कहा गया है कि यह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को मजबूत करने के लिए है। आप (सरकार) कहते हैं कि इससे केंद्र को यह अधिकार मिल जाएंगे कि वह किसी भी व्यक्ति का नाम आतंकी के तौर पर जोड़ या हटा सकती है। यह प्रावधान ठीक नहीं है और हम इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि वह UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम ऐक्ट का विरोध नहीं कर रहे हैं।
NIA ने बदला तरीका, बरी हुए आरोपी: दिग्विजय
इस दौरान कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने भी इस बिल संशोधन को लेकर सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा करने की कोशिश की। दिग्विजय ने कहा, ‘यहां सवाल नीयत का है। आपकी सरकार आने के बाद समझौता ऐक्सप्रेस, मक्का मस्जिद ब्लास्ट और अजमेर ब्लास्ट में ऐसे फैसले आए हैं, जो चौंकाने वाले हैं। इन मामलों बरी हुए लोगों के खिलाफ सरकार ने अपील क्यों नहीं की?’ उन्होंने कहा, ‘आपने हमेशा एक धर्म के लोगों को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की है, लेकिन एनआईए की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में टॉप तीन नाम कौन से हैं। पहला नाम है, लक्ष्मण राव उर्फ गणपति लेफ्ट विंग एक्स्ट्रिमिस्ट, दूसरा नाम है रामचंद्र कलंगसरा 10 लाख का इनामी, तीसरा नाम है संदीप दांगे इन पर भी 10 लाख का अवॉर्ड है। ये दोनों वॉन्टेड आरएसएस के कार्यकर्ता रहे हैं।
दिग्विजय सिंह ने भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा का नाम लिए बगैर कहा, ‘जो आज भी आतंकवाद के मामले में आरोपी हैं, उन्हें बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया। और वह आज लोकसभा सदस्य हैं।’
NIA के तीन केस UPA के समय आई चार्जशीट: शाह
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के सवालों का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने कहा, ‘मैं दिग्विजय का गुस्सा समझ सकता हूं। अभी-अभी चुनाव हारकर आए हैं। स्वाभाविक रूप से गुस्सा निकल रहा है। (इस पर दिग्विजय ने टोका)।’ शाह ने कहा कि वह सभापति के माध्यम से जवाब दे रहे हैं, और उनको सुनना पड़ेगा। शाह ने आगे कहा, दिग्विजय सिंह ने कहा कि एनआईए के तीन केस के अंदर सजा नहीं हुई। क्यों नहीं हुई, मैं बताना चाहता हैं। तीनों मामलों में राजनीतिक बदले के लिए एक धर्म विशेष को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश हुई। समझौता एक्सप्रेस में पहले कई आरोपी पकड़े गए। इसके बाद धर्म विशेष को निशाना बनाने के लिए समझौता एक्सप्रेस के पकड़े गए लोगों को छोड़ा गया फिर नकली मामला बनाकर समझौता एक्सप्रेस के आरोपियों को पकड़ने का काम हुआ। सवाल किया जा रहा है कि वह क्यों छूट गए। ऐसा इसलिए हुआ कि एनआईए कोई सबूत नहीं दे सकी। समझौता एक्सप्रेस की चार्जशीट 2012 में हुआ, पूरी चार्जशीट 2013 मे हुई। हमारी सरकार में तो सिर्फ बहस हुई। सारे सबूत चार्जशीट में दिए गए। कोर्ट को कोई सबूत नहीं मिले, इसलिए छूट गए। मक्का-मस्जिद की चार्जशीट भी यूपीए सरकार में दर्ज हुई थी।