अमलेंदु भूषण खां
एक साल पहले 25 अगस्त को प्रस्तावित भारत व पाकिस्तान के विदेश सचिवों की बैठक भारत ने इसलिए रद्द कर दी थी क्योंकि वार्ता से पहले पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने अलगाववादी कश्मीरी नेताओं को सलाह-मशविरे के लिए बुला लिया था.
अब दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की 23 और 24 अगस्त को प्रस्तावित बैठक के दौरान हुर्रियत के नेताओं को आमंत्रित कर पाक उच्चायुक्त ने फिर वही हरकत दुहराने की कोशिश की है. इस रवैये से अमन-चैन की कोशिशों के प्रति पाकिस्तान का गैरजिम्मेवाराना रुख और रवैया फिर सामने आया है.
पाकिस्तानी सेना बीते कई सप्ताह से नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी कर युद्धविराम का उल्लंघन कर रही है. इन हमलों में कई जवानों और नागरिकों की मौत हो चुकी है. इस साल जून तक पाकिस्तान ने 199 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया है. वर्ष 2011 से 2014 के बीच सीमा पार से ऐसी 1,106 घटनाओं को अंजाम दिया गया है. वर्ष 2012 से अब तक घुसपैठ की भी 1000 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं. हाल में पंजाब के गुरदासपुर और जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में संगठित आतंकी हमले भी हुए हैं.
पर, पाकिस्तान अपनी गलती मानना तो दूर, उल्टे भारत पर ही आरोप लगा रहा है. जब सीमा पर गोलीबारी के मामले में भारत सरकार ने पाक उच्चायुक्त को तलब किया, तो उन्होंने भारत पर जुलाई-अगस्त में 70 से अधिक बार युद्धविराम के उल्लंघन का आरोप मढ़ दिया. उधर, पाक के गृह मंत्री चौधरी निसार ने भारत पर पाकिस्तान में आतंकियों को धन देने का भी आरोप लगाया है.
कश्मीर में अलगाववादी हिंसा भड़काने से लेकर भारत में प्रशिक्षित आतंकी भेजने तक में पाकिस्तान की भूमिका जगजाहिर है. मुंबई हमले के जिम्मेवार कसाब से लेकर उधमपुर के हमलावर नावेद तक इसके कई उदाहरण सामने आ चुके हैं. दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, हाफिज सईद, मसूद अजहर जैसे 48 खतरनाक आतंकियों के पाकिस्तान में होने के सबूत भारत 2012 में ही उसे दे चुका है.
अब यह संख्या 60 तक पहुंच चुकी है. 2009 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान ने पहले अपने रणनीतिक हितों के मद्देनजर अनेक आतंकी गिरोह बनाये थे.
अक्तूबर, 2010 में पूर्व राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने भी माना था कि कश्मीरी उग्रवादियों को पाक ने प्रशिक्षण दिया था. आतंक को शह देने के कारण संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन कई बार पाकिस्तान को झिड़क चुके हैं. तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में मचायी तबाही में पाक सेना, खासकर उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ, की भूमिका दुनिया के सामने है.
दक्षिण एशिया में आतंक को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश में खुद पाकिस्तान भी आतंक की चपेट में है. हाल ही में पंजाब सूबे के गृह मंत्री को उनके घर में मार डाला गया. सितंबर, 2001 से मई, 2011 तक वहां 35 हजार से अधिक लोग आतंकी हमलों में मारे गये थे.
एक तरफ पाक सरकार ने हिंसा की तरफदारी करनेवाले चरमपंथी संगठनों को जहर फैलाने की खुली छूट दे रखी है, दूसरी तरफ निरीह पाकिस्तानी अपनी जान से हाथ धो रहे हैं. पाकिस्तानी सेना को पिछले साल कुछ आतंकी संगठनों पर सैन्य कार्रवाई भी करनी पड़ी थी.
पड़ोसी देशों को तबाह करने के इरादे से बनाये गये आतंकवादी अब पाकिस्तान के लिए ही भस्मासुर साबित हो रहे हैं. इसके बावजूद, पाकिस्तान अतिवादी और हिंसक गुटों को संरक्षण और सहयोग देने की अपनी नीति को बदलने के लिए तैयार नहीं है.
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि पाकिस्तानी सरकार सेना और मजहबी संगठनों के भारत-विरोधी तत्वों के दबाव में रहती है, लेकिन जब पाकिस्तानी उच्चायुक्त, गृह मंत्री और अन्य सरकारी पदधारी भारत के विरुद्ध अतिवादी और आतंकी गुटों के सुर-में-सुर मिला कर बात करने लगते हैं, तो इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि पाकिस्तान इस महाद्वीप में शांति और विकास की कोशिशों के प्रति ईमानदार नहीं है. पड़ोसी देशों के साथ भारत ने हमेशा मैत्रीपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बहाल करने की कोशिश की है. लेकिन, पाकिस्तान उकसाने और भड़काने की दशकों पुरानी नीति पर ही चल रहा है.
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज के सामने आतंकी शिविरों, आतंकवाद के सरगनाओं और वहां शरण पाये खतरनाक हत्यारों के सबूत रखने के साथ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल को यह चेतावनी भी देनी चाहिए कि पाकिस्तान भारत के धैर्य की परीक्षा लेना तुरंत बंद करे. देश को अस्थिर कर उसके विकास की गति को बाधित करने की सीमा पार की कोशिशें अब बर्दाश्त की हर हद से बाहर जा रही हैं.