जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली: लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज संसदीय सौध में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सी.पी.ए) भारत क्षेत्र की कार्यकारी समिति और भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों की बैठकों की अध्यक्षता की।
दोनों बैठकों के समाप्त होने के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए बिरला ने कहा कि भारत में विधायी निकायों के तीस (30) पीठासीन अधिकारियों ने आज की बैठक में विचार-विमर्श किया और इस दौरान विभिन्न विषयों पर सार्थक चर्चाएं हुईं। बिरला ने कहा कि सभी पीठासीन अधिकारियों की यह आम राय थी कि संसद और राज्य विधानमंडल जनता के प्रति जवाबदेह हैं तथा अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े मामलों पर सभा में सार्थक चर्चा और विचार-विमर्श होना चाहिए। श्री बिरला ने यह जानकारी दी कि राज्य विधानमंडलों की बैठकों की सख्या बढ़ाने के साथ-साथ विधायी कार्य की उपयोगिता बढ़ाने को लेकर पीठासीन अधिकारियों के बीच आम राय थी। यह भी महसूस किया गया कि कानूनों को पारित करने के लिए विधानमंडलों में व्यापक और स्वस्थ चर्चा करने की आवश्यकता है और सभा को बिना किसी व्यवधान के अपना कार्य करने की जरूरत है। बिरला ने यह बताया कि पीठासीन अधिकारियों के बीच बनी आम सहमति को देखते हुए, व्यवधानों पर रोक लगाने के लिए विधायी निकायों के लिए समान आचार संहिता बनाई जाएगी। इसके लिए पीठासीन अधिकारियों की एक समिति बनाई जाएगी जो विधान सभाओं के अध्यक्षों और विधान परिषदों के सभापतियों के साथ परामर्श करके पीठासीन अधिकारियों के नवंबर 2019 में देहरादून में होने वाले अगले सम्मेलन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
यह देखते हुए कि इस डिजिटल युग में, जहां डिजिटल दुनिया में नए बदलाव होते रहते हैं, लोक सभा और सभी राज्य विधानमंडलों में ‘एक भारत’ की संकल्पना के अनुरूप एक जैसी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है, श्री बिरला ने बताया कि सभी पीठासीन अधिकारियों ने सर्वसम्मति से इस बात से सहमति जताई है कि एक समिति इस मुद्दे पर विचार करेगी कि ‘नेशनल ई-विधान एप्लीकेशन (नेवा)’ को राज्य विधानमंडलों में कैसे लागू किया जाए।
यह देखते हुए कि सरकारी धन को समझदारी से और कुशलतापूर्वक खर्च किया जाना चाहिए, बिरला ने यह भी कहा कि राज्य विधानमंडलों की कुशलता को बेहतर बनाने के लिए एक ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ तैयार की जाएगी। बिरला ने यह भी कहा कि पीठासीन अधिकारियों का यह मत है कि बेहतर शोध की मदद से विधायी प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाया जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गुणात्मक दृष्टि से बेहतर शोध पत्र सदस्यों को उपलब्ध कराये जाएँ जिससे अपने-अपने सदन में उनके प्रदर्शन में और अधिक सुधार हो।