जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । 1972 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में बैंकों का विलय करने की शुरुआत की थी। सबसे पहले एसबीआई में सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय किया गया था। इसके बाद सरकार ने पिछले साल नवंबर में बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक व विजया बैंक का विलय किया था।
अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार बैंकों का विलय क्यों कर रही है? इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं, जिसकी वजह से सरकार ने यह कदम उठाया है।
यह है बड़ा कारण
कई सरकारी बैंकों का एनपीए काफी बढ़ गया है। ऐसे में सरकार के पास विलय करना मजबूरी है। जानकारों के मुताबिक कई बैंकों का एनपीए सात फीसदी के पार जा चुका है। ऐसे में विलय करने से सरकार बैंकों के एनपीए को कम कर सकेगी। रिसर्च कंपनी कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के सीईओ राजीव सिंह ने बताया कि बैंकों के लिए एनपीए बड़ी समस्या है। बैंकों के विलय से एनपीए की समस्या से निजात मिलेगी। अभी सरकारी बैंकों का 88 फीसदी बिजनेस इन 10 बैंकों से चार बैंकों के पास चला जाएगा। इससे इन 10 सरकारी बैंकों का एनपीए पांच से सात फीसदी तक कम होने की उम्मीद है।
इन बैंकों के विलय की घोषणा
पंजाब नेशनल बैंक में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक का विलय होगा। ये दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक होगा, जो पीएनबी से 1.5 गुना बड़ा होगा। वहीं केनरा बैंक का विलय सिंडिकेट बैंक में होगा, जो देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक होगा। जबकि इंडियन बैंक का विलय इलाहाबाद में बैंक में किया गया है। इसके अलावा यूनियन बैंक, आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक का विलय होगा, जो देश का पांचवां सबसे बड़ा सरकारी बैंक बनेगा।
बैंक 1: यूनियन बैंक ऑफ इंडिया+कॉरपोरेशन बैंक+आंध्रा बैंक
बैंक 2: इंडियन बैंक+इलाहाबाद बैंक
बैंक 3: यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया+ओरियंटल बैंक ऑफ इंडिया+पंजाब नेशनल बैंक
बैंक 4: केनरा बैंक+सिंडिकेट बैंक
अंतरराष्ट्रीय कारण
अब इस विलय का अंतरराष्ट्रीय कारण भी जान लीजिए। किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था (जिनकी जीडीपी काफी अच्छी है) वाले देशों में ज्यादा बैंक नहीं होते हैं। कई देशों में माना जाता है कि अर्थव्यवस्था को सही तौर पर चलाने के लिए पांच से 10 बड़े बैंक भी पर्याप्त हैं। सरकार ने पहले ही बजट में घोषणा की थी, कि वो पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर काम कर रही है। मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए जितने कम बैंक होंगे, उतना ही देश को फायदा होगा।
इससे पहले भी हो चुका है विलय
मोदी सरकार ने ही सबसे पहले बैंकों के विलय की शुरुआत की थी। सबसे पहले भारतीय स्टेट बैंक में अपने सहयोगी पांच बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय किया था उनमें स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एवं जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, बैंक स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) शामिल हैं। इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक का विलय हुआ था।
2024 का लक्ष्य
पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था को बनाने के लिए सरकार ने 2024 का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 23 फरवरी को कहा था कि उनकी सरकार भारत को 10 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर काम कर रही है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि हमने 2014 के बाद से व्यापार करने के लिए देशवासियों के सहयोग से कई नामुमकिन कामों को मुमकिन करके दिखाया।
सुधरी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
मोदी ने कहा कि 2014 से पहले कहा जाता था कि भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को सुधारना नामुमकिन है, लेकिन आज भारत देश की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ग्लोबल कंपिटिटीव इंडेक्स में भारत 2013 में 65वें स्थान पर था, जो 2017 पर 14वें स्थान पर पहुंच गया। भारत की करीब-करीब सभी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग और सूचकांकों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं।