जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। क्या कांग्रेस पार्टी के लिए मध्य प्रदेश भी उत्तर प्रदेश, बिहार,तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल तो नहीं बनने जा रहा है। क्योंकि व्यापम घोटाले जैसे धारदार मुद्दे संसद से लेकर सड़को तक उछालने के बावजूद कांग्रेस पार्टी को शहरी निकायों के चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है । हालांकि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव की तुलना में अपनी छवि सुधारने में कामयाब रही है। गुजरात में पटेल समुदाय के आरक्षण की मांग राज्य में जोरदार तरीके से उठाने के कारण कांग्रेस पार्टी को स्थिति सुधरने की आशा दिख रही है। साथ ही नरेंद्र मोदी के गुजरात छोड़ने से सत्ता में वापसी के प्रति कांग्रेस आशान्वित है।
कांग्रेस पार्टी के आंतरिक रणनीतिकारों का मानना है कि मध्य प्रदेश में मतदाताओं द्वारा कांग्रेस को नकारना बेहद चिंता का विषय है। हाल ही में शहरी निकायों के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई है और भाजपा को भारी विजय हासिल हुई है। व्यापम मामले को कांग्रेस ने राज्य के कोने कोने से लेकर संसद तक में उछाला और संसद के मानसून सत्र को कांग्रेस ने नहीं चलने दिया। कांग्रेस की आक्रामकता से माना जा रहा था कि भाजपा की जमीन सरक रही है और कांग्रेस की स्थिति सुधर रही है, लेकिन मध्य प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव ने कांग्रेस को एकबार फिर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि मतदाताओं का विश्वास जीत पाने में वह क्यों नही कामयाब नहीं हो पा रही है। शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य की जनता का दिल जीतने में कामयाब रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों की माने तो मध्य प्रदेश भी कांग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार,तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल बनने जा रहा है।
सौ साल सेज्यादा पुरानी देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस तमिलनाडु में 1967 से,पश्चिम बंगाल में 1977 से, उत्तर प्रदेश और बिहार 1989 से सत्ता से बाहर है। इसी तरह ओडीशा और गुजरात में भी पार्टी लगातार हार का मुंह देख रही है। राजस्थान में कांग्रेस कई बार सत्ता में वापसी कर चुकी है लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी अपनी स्थिति सुधारने के बावजूद सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है। पार्टी सूत्रों की माने तो महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब में हारने के बावजूद पार्टी के लिए चुनौती नहीं है लेकिन मध्य प्रदेश की हार गंभीर संकेत दे रहा है।
बताया जाता है कि राज्य के सभी कद्दावर कांग्रेसी नेताओं को पार्टी हाई कमान ने राज्य में पांच दिनों तक रहने का निर्देश दिया है ताकि लोगों के बीच पार्टी की छवि बन सके। रणनीतिकारों का कहना है कि कांग्रेस के लिए सुखद बात यह है कि राज्य में न तो तीसरे मोर्चे का उदय हो रहा है और न ही क्षेत्रीय दलों का उदय हो रहा है।