जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । हरियाणा कांग्रेस में लंबे समय बाद दमखम दिख रहा है। सालों से सुस्त पडी कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जान डाल दी है। ऐसा तब संभव हो सका जब पार्टी ने हुड्डा की अहमियत को समझा। यही कारण है कि हुड्डा ने अपने समर्थकों की फौज को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे।
सोनिया गांधी ने हाशिए पर गई हरियाणा कांग्रेस की कमान तो कुमारी शैलजा को सौंपी है लेकिन विधानसभा चुनाव कि जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कंधे पर है। माना जा रहा है कि यह विधानसभा चुनाव हुड्डा के राजनीतिक सफर का अंतिन चुनाव है। यही कारण है कि अपनी वजूद के लिए हुड्डा ने कुछ समय के लिए बागी तेवर भी दिखाए थे। कांग्रेस हाईकमान पर उनके बागी तेवरों का असर इतना ज्यादा हुआ कि पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर को भी किनारे लगा दिया गया।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी दस सीटें, जिसमें से दो सीटों पर वे खुद और उनका बेटा उम्मीदवार था, हारने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अगस्त माह में बागी तेवर अख्तियार कर लिए थे। उनके समर्थकों का दबाव था कि वे प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालें। इसके लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक कई बार कांग्रेस हाईकमान के पास भी पहुंचे थे। जब कहीं से कोई बात नहीं बनी, तो हुड्डा अनुच्छेद 370 का समर्थन कर बागी बनने की राह पर चल पड़े। रोहतक में रैली कर हुड्डा ने न केवल शक्तिप्रदर्शन किया, बल्कि बागी तेवर दिखाते हुए कांग्रेस पार्टी पर भी हमला बोल दिया। हुड्डा ने कह दिया कि कांग्रेस पार्टी रास्ते से भटक गई है।
उनकी रैली में पार्टी के अधिकांश मौजूदा विधायक, 60 से अधिक पूर्व मंत्री एवं विधायक और दूसरे पदाधिकारी पहुंचे थे। नतीजा, एक सप्ताह के भीतर कांग्रेस हाईकमान को हुड्डा के कद और ताकत का अंदाजा हो गया। हाईकमान को भी उनका यह संदेश समझ में आ गया था कि पार्टी के बुरे दौर में हुड्डा का जाना हरियाणा में कांग्रेस के लिए बहुत नुकसानदायक होगा। इसके बाद सोनिया गांधी ने हुड्डा को बुलाकर उनसे बातचीत की थी।
कांग्रेस हाईकमान किस तरह से हुड्डा के दबाव में है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके समर्थक और महम से विधायक रहे आनंद सिंह दांगी ने सूची आने के तीन दिन पहले ही अपना नामांकन भरने की घोषणा कर दी थी। उन्होंने उम्मीदवारों की सूची आने से पहले ही नामांकन दाखिल भी कर दिया। इसके अलावा हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने बुधवार शाम को सूची आने से पहले ही कार्यकर्ताओं को एसएमएस भेजकर बता दिया कि हुड्डा साहब गुरुवार को दस बजे नामांकन भरेंगे। हालांकि अब उनका दूसरा एसएमएस आया है कि वे शुक्रवार को नामांकन दाखिल करेंगे। गुरुवार को जब पार्टी की सूची आई, तो उसमें इन दोनों का नाम था।
हुड्डा के इन खास लोगों को मिला टिकट
हुड्डा के विश्वस्त अकरम खान, अनिल धंतौडी, दिल्लू राम बाजीगर, जयप्रकाश, सतबीर सिंह जांगड़ा, बंताराम बाल्मीकि, त्रिलोचन सिंह, अनिल राणा, ओपी जैन, बलबीर बाल्मीकि, धर्म सिंह छोक्कर, कुलदीप शर्मा, जयतीर्थ दहिया, जयबीर बाल्मीकि, सुरेंद्र पंवार, जगबीर मलिक, श्रीकृष्ण हुड्डा, धर्मेंद्र ढुल, सुभाष देसवाल, अंशुल सिंगला, परमवीर सिंह, जरनैल सिंह, शीशपाल केहरवाला, अमित सिहाग, विनीत कंबोज, होशियारी लाल शर्मा, भरत सिंह बेनीवाल, बलजीत सिहाग, सोमबीर सिंह, रणबीर महेंद्रा, मेजर नपेंद्र सिंह सांगवान, रामकिशन फौजी, आनंद सिंह दांगी, बीबी बत्रा, शकुंतला खटक, राजिंदर जून, कुलदीप वत्स, गीता भुक्कल, रघुबीर कादियान, नरेंद्र सिंह, राव दान सिंह, एमएल रंगा, यदुवेंद्र यादव, सुखबीर कटारिया, शमशुद्दीन, आफताब अहमद, उदयभान, करण दलाल, रघुबीर तेवतिया, नीरज शर्मा, विजय प्रताप सिंह, आनंद कौशिक और ललित नागर को टिकट मिला है।
हुड्डा के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस की लंबे समय तक कमान संभालने वाले अशोक तंवर पार्टी में खुद की बेरुखी से नाराज और अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के मकसद से रातभर सोनिया गांधी के आवास के बाहर नारेबाजी करते रहे। उन्होंने हुड्डा और शैलजा पर टिकटें बेचने का आरोप भी लगा दिया, लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी। न ही सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी उनसे मिले। पार्टी उम्मीदवारों की पहली सूची में उनके किसी भी समर्थक का नाम नहीं है।
कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, दरअसल, कांग्रेस हाईकमान को हवा लग चुकी है अशोक तंवर हरियाणा में पार्टी को मजबूत करने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं। उन्हें लंबा वक्त भी दिया गया, लेकिन वे भाजपा के खिलाफ कोई माहौल बनाने में असफल रहे। पार्टी यह भी जानती है कि हरियाणा में हुड्डा के जनाधार के सामने तंवर कहीं नहीं ठहरते। यह बात सही है कि तंवर के कार्यकाल में कांग्रेसियों की गुटबाजी चरम पर रही। तंवर के साथ केवल किरण चौधरी नजर आईं। बिश्नोई खेमा अपनी अलग गोटियां फिट करता रहा, कुमारी शैलजा भी अलग थलग रहीं। भूपेंद्र हुड्डा और तंवर के बीच 36 का आंकड़ा जगजाहिर है। ऐसे में तंवर के लिए भी पार्टी को दोबारा से पुराने तेवर में लाना आसान नहीं था।