जनजीवन ब्यूरो / रांची : आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर बना राजनीतिक दल झारखंड पार्टी (झापा) ने आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में दमदार उपस्थिति दर्ज की थी. उस समय यूनाइटेड झारखंड पार्टी के रूप में जाना जाता है. 1948 में जस्टिन रिचर्ड ने हूल झारखंड पार्टी की स्थापना की थी. बाद में जयपाल सिंह मुंडा इसमें शामिल हुए.
1949 में जयपाल सिंह झारखंड पार्टी के अध्यक्ष बने. 1951 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 352 सीटों में से 32 सीटें जीत कर एक प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गयी. उस समय झापा ने 53 सीटों पर प्रत्याशी दिया था. 1957 में झापा 70 सीटों पर चुनाव लड़ कर 31 जीत गयी. 1962 में 75 पर लड़ कर 20 सीटें जीती. इसी साल झारखंड पार्टी ने राज्य पुनर्गठन आयोग को झारखंड अलग राज्य निर्माण के लिए ज्ञापन सौंपा था. लेकिन, उनकी मांग स्वीकार नहीं की गयी थी.
जयपाल सिंह को झारखंड पार्टी की घटती लोकप्रियता और राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा राज्य की मांग को अस्वीकार करने के कारण काफी निराशा हुई. 1963 में उन्होंने झारखंड पार्टी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय कर दिया.
लेकिन, इससे पार्टी के दूसरे नेता संतुष्ट नहीं हुए. झारखंड पार्टी कई हिस्सों में टूट गयी. ऑल इंडिया झारखंड पार्टी, द प्रोग्रेसिव हूल झारखंड पार्टी जैसे कई नामों से पार्टी बन गयी. 1967 में एनइ होरो ने ऑल इंडिया झारखंड पार्टी के नाम से अलग दल गठित किया. हालांकि, अगले दो चुनाव में वह पार्टी के नाम से उम्मीदवारों को नहीं लड़ा सके.
एनइ होरो समेत झारखंड पार्टी के सभी उम्मीदवारों को निर्दलीय ही चुनाव लड़ना पड़ा. 1972 में ऑल इंडिया झारखंड पार्टी को चुनाव चिह्न आवंटित किया गया. कांग्रेस में विलय के पूर्व झारखंड पार्टी का चुनाव चिह्न मुर्गा था. एनइ होरो द्वारा गठित नयी झारखंड पार्टी का चुनाव चिह्न नगाड़ा था. लेकिन, इसके अलावा भी झारखंड नामधारी कई छोटे दलों का भी गठन हो गया था. ऑल इंडिया झारखंड पार्टी के नाम से एक और दल बन गया.
इस बार झारखंड पार्टी 42 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन केवल तीन ही प्रत्याशी जीत सके. 1977 में 21 सीटों पर लड़ कर पार्टी का केवल एक ही प्रत्याशी चुनाव जीता. 1980 के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोरचा बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. झामुमो के प्रत्याशी 31 सीटों पर लड़ कर 11 जीत गये. जबकि, 26 सीटों पर लड़नेवाली झारखंड पार्टी को कहीं जीत नहीं मिली. उसके बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया झारखंड मुक्ति मोरचा ने झारखंड पार्टी की जगह ले ली. झारखंड पार्टी अब भी है. लेकिन, उसका प्रभाव कम हो चुका है. अभी झापा का कोई प्रतिनिधि नहीं है.