जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : भारत के चीफ जस्टिस का दायरा सूचना के अधिकार के तहत आता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को आ सकता है फैसला। संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद अप्रैल में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच जजों की पीठ ने चार अप्रैल को उस अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें सीजेआई ऑफिस को आरटीआई के तहत लाने की अनुमति देने के लिए याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका को आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने दाखिल किया है।
जजों के कामकाज को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए सबसे बड़ी दलील यह रही है कि इससे जनता में न्यायपालिका के लिए विश्वसनीयता बढ़ेगी और सिस्टम में अधिक पारदर्शिता आएगी।
सीआईसी ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में आता है। सीआईसी और हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने 2010 में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी हुई है जिसमें सीआईसी के आदेश को सही ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे कर दिया था और मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था।
प्रशांत भूषण ने RTI के दायरे में लाने की पैरवी की थी
इस मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने पैरवी करते हुए तर्क दिया था कि सूचना के अधिकार के तहत जजों का कामकाज सार्वजनिक दायरे में आना चाहिए। वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा था कि चीफ जस्टिस समते कलीजियम के अन्य जज बेहतरीन काम करते हैं, लेकिन इसके बावजूद इस बारे में जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए।