जसविंदर सिद्धू
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग चुका है. आने वाले दिनों में शिव सेना और बिलकुल अलग विचारधारा रखने वाली एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाने के लिए सहमत होंगे या नहीं या फिर शिव सेना फिर से भारतीय जनता पार्टी के दरवाजे पर खड़ी होगी, यह भविष्य के गर्भ में है. लेकिन इस सब में अगर किसी ने कुछ हारा है तो वह कांग्रेस है.
आम चुनावों के नतीजे कांग्रेस को बताने के लिए काफी हैं कि उसकी देश की राजनीति में क्या स्थिति है. उसे कोई बताने वाला नहीं है कि पूर्ण बहुमत की अंधी ताकत के नशे में चूर भाजपा की मजबूती पर वार करने का एक भी मौका छोड़ना उसके लिए राजनैतिक आत्महत्या है.
आम चुनावों में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ सीटों के समझौते के थका देने वाला इंतजार कराने वाली कांग्रेस का क्या कीमत चुकानी पड़ी, इसको दोहराने की जरुरत नहीं है. लेकिन कांग्रेस कुछ सीखने को तैयार नहीं.
महाराष्ट्र में भी उसने यही किया. हो सकता है कि आने वाले दिनों में वह सरकार का हिस्सा हो भी जाए लेकिन जिस तरह का व्यवहार वह कर रही है, उसकी राजनैतिक अपरिपक्वता को दिखाता है.
राजनीति में कोई भी दल किसी के लिए अछूत नहीं है. यूपी में सपा और बसपा के गठबंधन के बाद जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीएफ की सरकार सबसे ताजा नमूना है. ऐसे में शिव सेना या किसी दूसरे दल के साथ सहय़ोगी होने के मौके को छोड़ना अकलमंदी नहीं कही जा सकता. खासकर, जब इससे भाजपा को नुकसान पहुंचता हो.
किसी भी खेल में सबसे अहम होता है मिलने वाले मौके को भुनाना. राजनीति में भी ऐसा ही है. कांग्रेस को जब भी ऐसा मौका मिल रहा है, उसका अहम और ढीलापन उसका दुश्मन साबित हुआ.
आम वोटरों की सोच में अंतर आ रहा है. पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के बाद अब महाराष्ट्र व हरियाणा ने भी दिखा दिया है कि वह बेशक भाजपा पर भरोसा करती है लेकिन वह उसे झटका भी दे सकती है. भाजपा से ज्यादा उसका विश्वास प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी पर बना हुआ है. यानि कि लोग भाजपा के स्थानीय सांसदों और विधायकों को गरिया रहे हैं लेकिन वोट मोदी की छवि पर पड़ रहा है.
इस बदलाव को कांग्रेस को कैश करना चाहिए जिसमें वह नाकाम रही है.
कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए यह राजनैतिक तौर पर उसके लिए सबसे अहम समय है जब वह भाजपा को कांग्रेस मुक्त नारे की हत्या कर कर सकती है लेकिन उसके लिए राहुल गांधी को साबित करना होगा कि उन पर लगा पप्पु का लेबल महज भाजपा के प्रोपगंडे का नतीजा है.
इसके लिए उसे महाराष्ट्र जैसे भाजपा को आघात पहुंचाने के मौके नहीं छोड़ने नहीं चाहिएं. साथ ही राहुल को यह समझना चाहिए कि उनके नाम के पीछे गांधी लगा है. आजादी के लिए संघर्ष और अंग्रेजों से बिना हिंसा के देश को आजादी की धूरी गांधी शब्द को आसपास ही घूमती है.
इस सरकार के खुद के आंकड़ें बता रहे हैं कि जीडीपी को डेंगू हो चुका है और बेरोजगारी का हैजे में बदलने का खतरा है.. लेकिन कांग्रेस या राहुल गांधी की विरोध में सड़क पर नहीं हैं. यह कब होगा, सिर्फ कांग्रेस ही बता सकती है. वैसे यह भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने का सबसे उपयुक्त समय है.