जनजीवन ब्यूरो / चंडीगढ़ : मनोहर लाल खट्टर ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के 18 दिन बाद गुरुवार को पहला मंत्रिमंडल विस्तार किया। 6 कैबिनेट और 4 राज्यमंत्रियों में खट्टर ने हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। 3 मंत्री जाट, 2 पंजाबी, 2 अनुसूचित जाति, एक यादव और एक गुर्जर समाज से है। खट्टर खुद पंजाबी हैं और उनके साथ शपथ लेने वाले डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला जाट हैं। भाजपा-जजपा सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में राजनीतिक मजबूरी की झलक साफ नजर आई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जिस सोशल इंजीनियरिंग के लिए पहचाने जाते थे, उसका स्वरूप इस बार काफी हद तक बदल चुका है। खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग में जाटों का दबदबा दिखाई पड़ रहा है।
इस विस्तार के बाद खट्टर समेत कैबिनेट में 12 मंत्री हो गए हैं। खट्टर ने अभी मंत्रियों में विभागों का बंटवारा नहीं किया है। 90 सीटों वाली विधानसभा में अभी दो मंत्री और बनाए जा सकते हैं। 40 सीटें जीतने वाली भाजपा ने जजपा (10 सीट) और निर्दलीय (7) के समर्थन से सरकार बनाई है।
खट्टर के पिछले कार्यकाल के दौरान भाजपा सरकार में दो जाट मंत्री थे। इस बार डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को मिलाकर तीन कैबिनेट मंत्री हो गए हैं।अगर एक राज्यमंत्री को भी मिलाएं तो इनकी संख्या चार पर पहुंच जाती है। पंजाबी समुदाय से दो, एक ब्राह्मण, एक अनुसूचित जाति से, एक अहीर, एक धानक और एक सिख (सैनी) समुदाय से मंत्री बनाया गया है। इस बार वैश्य समाज का कोई भी प्रतिनिधि खट्टर सरकार में बतौर मंत्री शामिल नहीं है। हालांकि इस समुदाय के विधायक ज्ञानचंद गुप्ता को पहले ही विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया है।
सभी जातियों को जगह
मनोहर लाल खट्टर की नई कैबिनेट में जाट समुदाय से आने वाले दुष्यंत चौटाला, रणजीत सिंह, जेपी दलाल और कमलेश ढांढा शामिल हैं। ब्राह्मण समुदाय से मूलचंद शर्मा और पंजाबी समुदाय से सीएम मनोहर लाल खट्टर व अनिल विज आते हैं। गुर्जर समुदाय से कंवरपाल गुर्जर और अनुसूचित जाति के कोटे से डॉ. बनवारी लाल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। अहीर यानी यादव समुदाय से ओमप्रकाश यादव को राज्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली है। धानक समाज से अनूप को राज्यमंत्री और सिख सैनी समुदाय से संदीप सिंह को बतौर राज्यमंत्री खट्टर सरकार में शामिल किया गया है।
हालांकि खट्टर ने कैबिनेट विस्तार में अपनी जिस नई सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला बनाया है, उसमें लगभग सभी जातियों को जगह मिल गई है। यह अलग बात है कि राजनीतिक मजबूरी के चलते सीएम खट्टर कुछ लोगों को चाहते हुए भी कैबिनेट में शामिल नहीं कर सके। पिछली सरकार में यादव समुदाय से कैबिनेट में एक विधायक को जगह मिली थी। इस बार यादव समुदाय को राज्यमंत्री से ही संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है।
कितनी सफल होगी खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग?
प्रदेश की राजनीति के जानकार रविंद्र कुमार का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में सीएम खट्टर की मजबूरी साफ दिखाई पड़ रही है। पिछली सरकार में जाट समुदाय से दो कैबिनेट मंत्री थे, इस बार डिप्टी सीएम समेत चार हो गए हैं। अभी निगमों एवं बोर्डों के चेयरमैन पदों पर भी नियुक्तियां होनी हैं। जजपा और जाट समुदाय के कई निर्दलीय विधायकों को एडजस्ट करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री खट्टर भले ही कैबिनेट विस्तार के बाद खुद को नई सोशल इंजीनियरिंग का जनक कह रहे हैं, लेकिन वे अभी इसके भावी परिणामों से वाकिफ नहीं हैं। वे अपनी और भाजपा की छवि यह कह कर उभार रहे हैं कि उन्होंने जाट समुदाय के नेताओं को अपनी सरकार में पर्याप्त हिस्सेदारी दी है।