झारखंड देश का पहला राज्य है जहां सिर्फ एक विधायक वाली पार्टी होने के बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। फिलहाल देश के 28वें राज्य झारखंड में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है। 19 वर्ष पूर्व 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना हुई थी। बीते 19 सालों में झारखंड प्रदेश में अधिकतर कई दलों के गठबंधन से बनी मिली जुली सरकारें ही चलती रही थीं। यह पहला अवसर था जो पिछले 5 वर्ष से जरूर झारखंड में मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।
झारखंड का राजनीतिक इतिहास देखें तो 19 साल के छोटे से समय में ही झारखंड ने 10 मुख्यमंत्री देखे हैं। अब तक यहां तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है। झारखंड गठन के साथ ही 15 नवंबर 2000 को भारतीय जनता पार्टी के बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने थे। जिनको 28 माह बाद कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। बाबूलाल मरांडी के बाद भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने जिनका कार्यकाल 23 माह 15 दिन का रहा। उसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री रहे लेकिन दुर्भाग्य से उनको 10 दिन बाद ही पद छोड़ना पड़ा था। 12 मई 2005 को भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा ने प्रदेश के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में फिर से शपथ ली मगर कार्यकाल पूरा करने से पूर्व ही 16 माह 6 दिन के बाद उनको पद छोड़ना पड़ा।
अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व राष्ट्रीय लोक दल ने मिल कर निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को झारखंड का पांचवां मुख्यमंत्री बनाया। जिनका कार्यकाल घोटालों व बदनामी से भरा रहा। उनकी सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर काफी बदनामी बदनामी हुई। 23 माह 12 दिन के बाद मधु कोड़ा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। मधु कोड़ा के इस्तीफे के बाद एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन ने झारखंड के छठे मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन इस बार फिर भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और 4 माह 20 दिनों के बाद ही उन्हें पद से हटाकर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। करीबन 11 माह 10 दिन तक चले राष्ट्रपति शासन के बाद एक बार फिर शिबू सोरेन का भारतीय जनता पार्टी से समझौता हुआ। फलस्वरूप शिबू सोरेन ने झारखंड के सातवें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन इस बार भी उनकी सरकार सिर्फ 5 माह एक दिन ही चल पाई। उसके बाद झारखंड में फिर से राष्ट्रपति शासन लगाया गया जो तीन माह 9 दिन तक चला।
राष्ट्रपति शासन की समाप्ति के बाद भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा ने आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। जिनका कार्यकाल 28 माह 7 दिन का रहा। अर्जुन मुंडा के इस्तीफे के बाद प्रदेश में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगाया गया जो 5 माह 25 दिन तक चला। राष्ट्रपति शासन के दौरान एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल नजदीक आए और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में फिर से गठबंधन सरकार बनाई गई जो 17 माह 10 दिन तक चली। उसके बाद हुये विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भारतीय जनता पार्टी ने रघुबर दास के नेतृत्व में 28 दिसंबर 2014 को नई सरकार का गठन किया जो वर्तमान में चल रही है।
2014 के विधानसभा चुनाव के बाद जब भारतीय जनता पार्टी के नेता रघुबर दास झारखंड के दसवें मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तब उनके पास अपनी पार्टी का पूर्ण बहुमत नहीं था। उन्होंने आजसू के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा पार्टी के 6 विधायकों को तोड़कर भारतीय जनता पार्टी में मिला लिया था। जिससे विधानसभा में उनके विधायकों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई और भारतीय जनता पार्टी अकेले ही पूर्ण बहुमत में आ गई थी। इसी कारण उनकी सरकार अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने जा रही है।
झारखंड में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है तथा अगले माह नई सरकार का गठन होने जा रहा है। लेकिन उपरोक्त बातों को देखने से पता लगता है कि 19 साल के झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के चलते 10 बार मुख्यमंत्री बदले गए और 3 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। झारखंड में अब तक 5 बार भारतीय जनता पार्टी, चार बार झारखंड मुक्ति मोर्चा व एक बार निर्दलीय मुख्यमंत्री बना है।
प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस बार अपने गठबंधन की सहयोगी आजसू से अलग होकर अपने दम पर अकेले ही चुनाव लड़ने जा रही है। विपक्षी खेमे में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का झारखंड विकास मोर्चा अकेले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहा है। कम्युनिस्ट पार्टियां भी अपने दम पर चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा से हाल ही में अलग हुए आजसू के नेता सुदेश महतो ने भी प्रदेश की अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
अब देखना होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन स्पष्ट बहुमत लाकर अपने बल पर सरकार बना पाते हैं या प्रदेश में फिर से गठबंधन सरकारों का दौर शुरू होता है। इस बात का फैसला तो झारखंड के दो करोड़ 26 लाख मतदाता ही करेंगे जिनके हाथों में झारखंड की सत्ता की चाबी है। मगर गत पांच वर्षों के कार्यकाल को देखकर लगता है कि झारखंड के लोग अब गठबंधन की राजनीति से ऊब चुके हैं, उनको स्थिर सरकार के महत्व का पता चल गया है। इसलिये आगामी विधानसभा चुनावों में फिर से स्थिर सरकार बनने के आसार हैं।
देश में सबसे अधिक खनिज संपदा से भरपूर राज्य झारखंड अपनी राजनीतिक अस्थिरता की वजह से ही विकास की दौड़ में आगे नहीं निकल पाया है। प्रदेश में प्रचुर मात्रा में खनन संपदा की उपलब्धता के बावजूद राजनीतिक नेतृत्व की कमी के चलते झारखंड आज भी पिछड़े प्रदेशों की श्रेणी में शामिल है। पिछले 5 वर्षों में जरूर भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में स्थिर सरकार दी है, जिससे प्रदेश में विकास की गति भी तेज हुई है व कई मामलों में झारखंड देश के अन्य विकसित प्रदेशों के साथ कदमताल करता नजर आने लगा है। यदि झारखंड के लोगों को अपने प्रदेश का समुचित तरीके से विकास करवाना है तो उन्हें किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत देकर सरकार बनवानी होगी। ताकि प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे और प्रदेश विकास के मामले में देश की मुख्यधारा में शामिल हो सके।