वैसे तो कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के कई इलाके का दौरा कर राजनीति में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं लेकिन जब वह 10 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचकर यह संदेश देने में कामयाब रही कि उनका इरादा उत्तर प्रदेश में पार्टी को खड़ा करने का है। इतना ही नहीं वाराणसी के बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर उतरकर राजघाट जाने के दौरान उन्होंने कज्जाकपुरा इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोगों से मिलकर उनकी परेशानियां जानीं। राजघाट पहुंचकर वहां संत रविदास मंदिर में मत्था टेका।
काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान के दर्शन करने के साथ प्रियंका ने मोटरबोट से गंगा में सफर करने के दौरान गंगा जल को सिर-माथे लगाया। इस तरह प्रियंका गांधी में उत्तर प्रदेश ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बनाए सोशल इंजीनियरिंग के ताने-बाने पर चोट करने की कोशिश की।
अपने वोट बैंक को खिसकते देख मायावती प्रियंका गांधी पर आक्रमण तेज कर दिया है। मायावती कांग्रेस को दलित विरोधी साबित करने पर तुली हुई हैं। उन्होंने 2 जनवरी को एक बयान जारी कर प्रियंका को निशाने पर लिया। हालांकि, उन्होंने अपने इस बयान में कहीं भी प्रियंका गांधी का नाम सीधे नहीं लिखकर उन्हें कांग्रेस की महिला राष्ट्रीय महासचिव लिखा। बयान में मायावती कहती हैं, ”उत्तर प्रदेश में किसी भी मामले में पीडि़त परिवारों से मिलना राजनैतिक स्वार्थ और कोरी नाटकबाजी है। इससे जनता को सतर्क रहना होगा।”
लगभग 20 फीसदी दलित वोट की हिस्सेदारी के लिए उत्तर प्रदेश में शुरू हुई होड़ के साथ ही राजनीति का नया दांव नजर आ रहा है। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की शिद्दत से मुखालफत और अब दलित आरक्षण के हक में मुहिम छेड़ कांग्रेस ने इशारा कर दिया है कि वह दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरना चाहती है। इधर, बसपा के प्राण इसी गठजोड़ में बसते हैं तो सपा को भी मुस्लिम वोट का आसरा है। ऐसे में बसपा के लिए हालात और कठिन होने जा रहे हैं तो अपने दलित वोट को मजबूती से थामे रखने की चुनौती भाजपा के लिए भी होगी।
उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत हद तक जातीय समीकरणों पर ही टिकी है। लिहाजा, दलों की रणनीति भी इसी पर है। अपनी मुट्ठी से हर वोट बैंक को गंवा चुकी कांग्रेस अब लगातार प्रयासरत है। उत्तराखंड के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नौकरियों में दलित-आदिवासियों को आरक्षण के खिलाफ आया तो कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया। उत्तर प्रदेश के हर ब्लॉक में संविधान पंचायत का अभियान शुरू कर दिया। प्रयास यही है कि दलितों को भाजपा से दूर किया जाए।
कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव पर है। इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रियंका वाड्रा सहित पूरी पार्टी यूपी में माहौल बनाने का प्रयास करती रही। कांग्रेस के यह कदम बताते हैं कि वर्ष 2022 के दंगल में वह किस रास्ते पहुंचना चाहती है। वह उसी दलित-मुस्लिम गठजोड़ के नुस्खे को अपनाना चाहती है, जिसने बसपा की मदद यहां तक के सफर में की है, मगर इस गठजोड़ की उम्मीदों में तमाम गांठें हैं।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 312 सीटें भाजपा जीती और बसपा 19 पर सिमट गई। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 17 सुरक्षित सीटों में से 15 जीत लीं। इससे साफ है कि भाजपा दलित वोट बैंक में मजबूत सेंध लगा चुकी है। अब इसमें हिस्सेदारी के कांग्रेस के प्रयास बसपा के लिए नई चुनौती खड़ी करेंगे तो भाजपा को भी सतर्कता बरतनी ही होगी।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिशों में जुटी प्रियंका गांधी ने दो स्तरों पर प्रयास शुरू किए हैं। संगठन में बड़े बदलाव करने के साथ उन्होंने कांग्रेस को सड़क पर भी उतारा है। प्रियंका के प्रयास कुछ रंग लाते दिखाई भी दिए हैं। पिछले वर्ष अक्तूबर में प्रदेश की 11 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस हालांकि कोई सीट तो नहीं जीत सकी लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत 2017 के विधानसभा चुनाव में मिले छह प्रतिशत वोट से दुगुना था।
पार्टी को नया रूप देने के चलते प्रियंका गांधी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का आकार बहुत छोटा कर दिया है। पिछली बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी में 500 सदस्य थे, अब इसमें प्रदेश अध्यक्ष के साथ कुल 41 सदस्य हैं। इसमें चार नेताओं को उपाध्यक्ष, 12 को महासचिव और 24 को सचिव की जिम्मेदारी दी गई है। पिछड़ी जाति से आने वाले युवा नेता अजय कुमार ‘लल्लू’ को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर प्रियंका गांधी ने प्रदेश कार्यकारिणी में भी 45 फीसद प्रतिनिधित्व पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को दिया है। कार्यकारिणी में 20 फीसद दलित और सामान्य जाति और 15 फीसद मुसलमान नेताओं को जगह दी गई है।
पिछले वर्ष सोनभद्र में जमीन विवाद के चलते हुए नरसंहार के बाद देश-दुनिया में चर्चा में आए उम्भा गांव के रामराज गोंड़ को जिलाध्यक्ष बनाकर प्रियंका गांधी ने अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है। प्रदेश कांग्रेस को प्रभावी बनाने के लिए प्रियंका ने संगठनात्मक लिहाज से भी कई प्रयोग किए हैं।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने पार्टी के भीतर समन्वय के लिहाज से संगठन को आठ जोन में बांट दिया था। प्रियंका गांधी ने इन सभी जोन को खत्म करते हुए अब संगठनात्मक लिहाज से प्रदेश को दो भागों में बांट दिया है—पूर्वी और पश्चिमी जोन।
प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष के साथ चार उपाध्यक्ष तैनात किए गए हैं। दो उपाध्यक्षों को संगठन और दो को फ्रंटल या प्रकोष्ठ का कार्य सौंपा गया है। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष वीरेंद्र चौधरी को पूर्वी जोन का प्रभारी बनाया गया है। संगठन की दृष्टिï से पूर्वी जोन को तीन भागों में बांटा गया है—अवध जोन, पूर्वांचल जोन और बुंदेलखंड जोन। युवा नेता और प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष पंकज मलिक को पश्चिमी जोन का प्रभारी बनाया गया है।
यूपी की राजनीति में भूचाल आ गया जब प्रियंका गांधी को रेप के बाद जलाई गई युवती की मौत की जानकारी मिली, वे उसके घरवालों से मिलने उन्नाव की ओर निकल पड़ीं। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लखनऊ में विधान भवन के मुख्य द्वार पर धरने पर बैठ गए। वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने भी राजभवन पहुंचकर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को ज्ञापन सौंपा।
प्रियंका के अचानक उन्नाव में पीडि़ता के घर जाने की सूचना मिलते ही प्रदेश की भाजपा सरकार भी हरकत में आई। प्रदेश सरकार के श्रम और सेवायोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और उन्नाव जिले की प्रभारी मंत्री कमलारानी वरुण ने प्रियंका गांधी के जाने के बाद पीडि़ता के घर पर पहुंचकर उसके पिता को 25 लाख रुपए का चेक दिया।
सोनभद्र के उम्भा गांव में हुए नरसंहार के बाद प्रियंका गांधी की सक्रियता ने ही इस प्रकरण पर सरकार को बैकफुट पर ला दिया था। दिसंबर में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शन में मारे गए लोगों के परिवार वालों के बीच प्रियंका जिस तरह पहुंचीं, उसने न केवल प्रदेश सरकार बल्कि दूसरी विपक्षी पाटियों को भी हरकत में ला दिया।
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध प्रदर्शन में जेल गए लोगों को कानूनी मदद दिलाने के लिए प्रियंका गांधी ने हर जिले में दो वकीलों का पैनल बनाया। प्रियंका ने जिस तरह से हिंसक प्रदर्शन में मारे गए एक-एक व्यक्ति के परिवारवालों के घर पहुंचना शुरू किया, उससे सपा के साथ बसपा भी दबाव में आ गई। प्रियंका के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी प्रदर्शन में मारे गए लोगों के दरवाजे पर पहुंचे। प्रदेश में प्रियंका गांधी की सक्रियता ने बसपा प्रमुख मायावती को बेचैन कर दिया है।