अमित आनंद / नई दिल्ली । कोरोनावायरस से निपटने के लिए देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन तो कर दिया गया लेकिन नीति निर्धारकों ने बेघरों के बारे में शायद नहीं सोचा। शायद वही कारण है जिसके कारण आनंद विहार बस अड्डे पर शनिवार को लगभग 150000 लोग जमा हो गए। घर लौटने की चाह रखने वाले लोगों की यूपी गेट बॉर्डर पर कतार लग गई है। उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार हरकत में आई। बसों के इंतजाम कर लोगों को रवाना करवाया गया। शाम तक दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार की कुल 400 बसों के जरिए लोगों को गाजियाबाद के यूपी गेट बॉर्डर और दिल्ली के आनंद विहार से रवाना किया जा चुका था। फिर भी रात 9 बजे तक आनंद विहार बस टर्मिनल पर हजारों की तादाद में लोग इंतजार करते रह गए। दो राज्यों की सरकारों के इंतजाम भी नाकाफी साबित हुए। पुलिस अपील करती रही कि एकदूसरे से दूरी बनाकर रखें और धीरे-धीरे आगे बढ़ें, लेकिन यह अपील बेअसर नजर आई। यह भीड़ उन लोगों की थी, जो उत्तर प्रदेश, राजस्थान या बिहार के रहने वाले हैं और रोजी-रोटी के लिए दिल्ली में रहते हैं। लॉकडाउन की वजह से उनके सामने अब रोजी से ज्यादा रोटी की चिंता है।
महिलाएं मासूम बच्चों को गोद में लेकर पैदल ही अपने गांव के लिए निकल पड़ी हैं। गोद में बच्चे और हाथ में सामान लिए यह महिलाएं चली जा रही हैं। जो लोग यहां रिक्शा चलाते थे वो उसी रिक्शे पर अपने परिवार को लेकर जा रहे हैं। दिल्ली के बॉर्डर गाजीपुर से गाजियाबाद तक सड़कों पर लोगों का मेला सा लगा हुआ है।
नोएडा के सेक्टर 62 के चौराहे पर एक मासूम बच्ची को गोद में लिए खड़ी एक महिला ने बताया कि वो जलालाबाद की रहने वाली है। वह पिछले दो घंटों से यहां खड़ी है लेकिन कोई सवारी नहीं मिली। महिला ने बताया कि वो दिल्ली से पैदल चलकर नोएडा तक आई है और अगर कोई सवारी नहीं मिली तो आगे भी पैदल ही जाएगी।
यूपी के सुल्तानपुर के रहने वाले महेश बताते हैं कि लगभग 15 दिन हो गए, उनके पास कोई काम नहीं है। खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है। दिल्ली सरकार के रैन बसेरों या स्कूलों में भी उन्हें खाने की कोई व्यवस्था होती नहीं दिखी तो पैदल ही घर जाने का निर्णय कर लिया। अब वे अपने चार अन्य साथियों के साथ सुल्तानपुर के लिए निकल चुके हैं। लगभग 650 किलोमीटर का दिल्ली से सुल्तानपुर का उनका सफर कैसे गुजरेगा, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है।
क्या आपने किसी सरकारी अधिकारी या पुलिस से इस बात की शिकायत की कि आपको भोजन नहीं मिल रहा है? इस सवाल पर महेश का कहना है कि शिकायत किससे करते। उनकी कोई नहीं सुन रहा है। सबके साथ एक ही समस्या है। ऐसे में किसी से शिकायत करने की बजाय अपने घर की राह पकड़ ली। उनके साथ जा रहे बस्ती के नान्ह्क बताते हैं कि किसी को कोई सुविधा नहीं मिल रही है।
जब मच गई भगदड़
शनिवार शाम तक ऐसी खबर आई कि यूपी सरकार ने लोगों को उनके घरों तक जाने के लिए बसें उपलब्ध करवा दी हैं। इस एक खबर ने यूपी-बिहार के गरीब मजदूरों में भगदड़ जैसी स्थिति पैदा कर दी। सभी लोगों को लगा कि अब उनके लिए बसें मिल जाएंगी। यही कारण है कि शनिवार शाम को भारी संख्या में लोग आनंद विहार बस अड्डे पहुंचने के लिए निकल पड़े। लेकिन बस अड्डे पर ऐसे यात्रियों की संख्या बहुत ज्यादा है और बसें नाम मात्र की हैं, लिहाजा लोग किसी भी हालत में यहां से निकल जाना चाहते हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा है कि सरकार 550 रैन बसेरों/सेंटरों में 4.50 लाख गरीबों को दोनों समय का खाना उपलब्ध करा रही है। कई सामाजिक-धार्मिक संगठन भी गरीब मजदूरों को खाना उपलब्ध करा रहे हैं। मगर दिल्ली से भागते गरीबों की सुनें तो समझ में आता है कि सरकार की यह मदद अभी भी सभी जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है।
मकान मालिक ने सामान फेंक दिया
लखनऊ के मलीहाबाद की रहने वाली गुड़िया ने रुंधे गले से सवाल किया कि अगर उन्हें खाना मिल ही जाता तो रात में चोरों की तरह क्यों भागते? मकान मालिक ने उनका सामान निकालकर बाहर फेंक दिया था। लेकिन अगर खाना मिल गया होता तो कहीं टेंट में ही रहकर जिंदगी गुजार लेते। जब खाना नहीं मिला तो वे अपनी किस्मत के भरोसे तीनों बच्चों के साथ निकल पड़ीं। वे आनंद विहार रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों के सहारे लखनऊ के लिए निकल चुकी हैं। सड़क से जाते समय उन्हें पकड़े जाने का डर है। उन्हें अपनी मंजिल कब मिलेगी, अपने घर तक कैसे पहुंचेंगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है। रास्ते में बच्चों की भूख कैसे मिटेगी, इस सवाल पर उनकी आंखें केवल आसमान की ओर उठ जाती हैं। उनके गले से कोई आवाज नहीं निकलती।