आज समस्त संसार कोरोना वायरस की आपातकालीन स्थिति से गुजर रहा है। यह विकराल राक्षस विश्व में असंख्य लोगों की जान ले चुका है और निरन्तर ले रहा है। इसे चीन द्वारा पैदा किया हुआ माना जा रहा है। जो भी हो, इस समय सारा संसार किंकर्तव्यविमूढ है, परन्तु इस तथ्य को अवश्य स्वीकार करना होगा कि यह प्रकृति से छेड़छाड़ करने का ही नतीजा है।
मानव ने परस्पर जीतने के लिए प्रकृति से विनाशात्मक खोजें तो की हैं, परन्तु सृजनात्मक पालनात्मक खोजें नहीं की हैं, क्योंकि यह प्रकृति ही दूसरे शब्दों में दुर्गा कही गई है। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि प्रकृतिस्त्वं हि सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी अर्थात् यह प्रकृति मां दुर्गा के तीनों गुणों से युक्त है। वे हैं सत्व, रजस् और तमस्। इसमें सत्व पालनात्मक शक्ति है, रजस् सृजनात्मक शक्ति है और तमस् विनाशात्मक शक्ति है। यह जो सर्वत्र विज्ञान का विकास दिखाई दे रहा है। उनमें बहुत कुछ सृजनात्मक और पालनात्मक है, जिससे मां दुर्गा प्रसन्न हैं, परन्तु विनाशात्मक खोजें कर मानव ने मां दुर्गा को क्रोधित कर दिया है।
मनुष्य ने विनाशकारी शस्त्र बना कर प्रकृति को रुष्ट कर दिया है। संसार आज बारूद के ढेर पर बैठा है। अभी तो परीक्षण ही हुए हैं, प्रयोग होगा तो क्या होगा। इन परीक्षणों के नतीजे हैं कि आज कैंसर, इबोला, स्वाइनफ्लू, इपोह एवं कोरोना वायरस जैसी अनेक प्रकार की वीमारियां फैली हुई हैं। आज भी एक नया भयंकर रोग कोरोना वायरस फैला है।
यह समस्त विश्व में फैला हुआ है। भारत में तो यह बहुत ही कम है, जिसका कारण है कि भारत में यदा-कदा यत्र-तत्र मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ (हवन) होते रहते हैं। आज यदि ऐसे रोगों से मुक्ति पानी है तो यज्ञ का सहारा लेना होगा। जैसा कि पुराणों में कहा गया है कि महामृत्युंजय मंत्र के जप से भगवान् शिव ने मृकण्डु के पुत्र मार्कण्डेय की मृत्यु को टाल दिया था। अतः इस में कोई भी सन्देह नहीं कि इस मंत्र के अर्थ के अनुसार कार्य किया जाएगा तो मृत्यु टल सकती है तथा यह वाइरस समाप्त हो सकता है। कहा गया है-
त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
इस का अर्थ कुछ विद्वानों ने किया है कि हम तीन नेत्रों वाले भगवान शिव का पूजन सम्मान करते हैं। यहां यजामहे का अर्थ पूजा या सम्मान किया गया है, जो उचित नहीं है। इसका सीधा सा अर्थ है कि हम भगवान् शिव के लिए सुन्दर गन्ध वाला और शरीरों को पूरा पुष्ट करने वाला यज्ञ करते हैं, जो कि उर्वारुकमिव = ककड़ी के समान शीघ्र पुष्टि करता है। वह यज्ञ हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त करे।
अब यहां पर यजामहे = हम यज्ञ करते हैं। यह नहीं होगा तो त्रयम्बक प्रसन्न कैसे होंगे। जब शिव प्रसन्न नहीं होंगे तो उनकी शक्ति (प्रकृति) दुर्गा कैसे प्रसन्न होंगी।
अतः यज्ञ से प्रकृति लक्ष्मी प्रसन्न होती है तब वह जीवनदायिनी मां दुर्गा प्राणियों को ही नहीं बल्कि वनस्पतियों को भी रोगमुक्त करती हैं। इसीलिए बहुत अनुभव के आधार पर हमारे वेदों में यज्ञों का वर्णन है। इन यज्ञों का वै ज्ञानिक महत्व है ,क्यों कि कोई भी वस्तु नष्ट नहीं होती। उसका रूप बदलता है ,क्यों कि वस् (रहना) धातु में तुन् प्रत्यय से वस्तु शब्द बना है ,जिसका अर्थ है = रहने वाली। अर्थात् जो सदा रहेगी, वही वस्तु है। इसका प्रमाण है कि मिर्च को जब आग में जला दिया गया तो पता चलता है कि मिर्च नष्ट नहीं हुई ,उसका रूप बदल गया है। यहां तक कि उसका प्रभाव और अधिक बढ़ गया है।।
अतः यह मानना होगा कि यज्ञों में आहूत द्रव्य (वस्तु) का गुण औ रअधिक बढ़ जाता है ।सभी को यह मानना पडे़ गा कि जिस घी, गोला, लौंग, जाइफर, जावित्री, केसर आदि की जितनी मात्रा एक व्यक्ति लेता है यज्ञ में आहुति देने से उस द्रव्य की उतनी ही मात्रा हजारों लोगों को भी प्राप्त हो जाती है ।इसीलिए तो हमारे वेदों में यज्ञों में कुछ ही वृक्षों की लकड़ी जलाने का विधान है। विस्तार भय से सबका वर्णन तो सम्भव नहीं परन्तु बेल (श्रीफल) और आम तो मधुमेह नाशक है ।संस्कार विधि में स्वामी दयानंद सरस्वती ने होम के चार द्रव्य बताए हैं। प्रथम-सुगन्ध वाले, घृत, केसर, अगर, मगर, चंदन, इलायची, जाइफर, जावित्री आदि।
द्वितीय- पुष्टिकारक-घृत, दूध, कन्द-मूल, फल, गेहूं ,जौ ,चावल, उड़द आदि।
तृतीय-मिष्ट, मीठे-मीठे चीनी आदि।
चतुर्थ रोगनाशक = सोमलता अर्थात् गिलोय आदि।
यह मानना अत्यावश्यक है कि जिस रोगनाशक जो वनस्पति आयुर्वेद में बताई गई है ,उसके यज्ञ से वह रोग अवश्य नष्ट हो जाएगा।
यह माना जा रहा है कि भारत में लोग गरम मसाला पाउडर का इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण उनकी रोग निरोधक शक्ति अधिक है। इसीलिए यहां कोरोना वायरस का प्रभाव कम है। अतः जब खाने से शक्ति है तो आग में जलाने से औ रभी अधिक बढ़ जाएगी, क्यों कि जलाने पर द्रव्य वस्तु की शक्ति बढ़ जाती है। यह मिर्च ने जलकर बता दिया है।
भारत में अभी कम ही सही परन्तु यज्ञों का अनुष्ठान है ।इसीलिए यहां कोरोना वायरस का प्रभाव कम है ।अन्यथा क्या होता, क्यों कि हमने मूर्तियां, मन्दिर, गुरुद्वारे, मस्जिदे ंबनायी हैं, अस्पताल बहुत कम।
अतः देशवासियों से अनुरोध है कि विभिन्न उपलक्ष में घर-घर हवन कर मां दुर्गा (प्रकृति) को प्रसन्न करें ।साथ ही हवन में गिलोय की आहुति अवश्य दें और मृत्युंजय मंत्र की 108 आहुतियां दें ।पूर्णिमा को अवश्य हवन करें ।सफलता मिलेगी तो ठीक नहीं तो न भी मिले तो हर्ज भी कुछ नहीं है ,क्यों कि पर्यावरण तो अवश्य स्वच्छ होगा ही होगा।
(लेखक किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य हैं)