जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । पैदा होते ही लगने वाला BCG का टीका कोरोना वायरस से बचाने में कारगर है? ICMR के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेड़कर का कहना है कि ऐसा संभव नहीं है। दरअसल, सोशल मीडिया पर भी ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि भारतीयों की कोरोना से कम मौत इसलिए हो रही है क्योंकि यहां पैदा होते ही BCG का टीका लगा दिया जाता है जो अब कोरोना के खिलाफ कवच का काम कर रहा है।
कोरोना पर सवाल का जवाब देते हुए गंगाखेड़कर ने कहा, ‘बीसीजी वैक्सीन पैदा होते ही दी जाती है। इससे टीबी होने का खतरा भी नहीं रुकता है। नए जंतु से टीबी होने का खतरा खत्म नहीं होगा। कुछ स्टडीज हैं कि कैंसर पीड़ति कुछ लोगों को बीसीजी टीका दिए जाने पर उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। लेकिन, कोरोना के खिलाफ बीसीजी का प्रभाव दिखने का चांस बहुत कम है क्योंकि बीसीजी का असर 15 साल तक ही रहता है।‘
गुजरात बायोटेक का रिसर्च कितना कामयाब?
प्रेस ब्रीफिंग में गुजरात बायोटेक्नॉलजी रिसर्च सेंटर में कोरोना वायरस की अलग-अलग सिक्वेसिंग के तीन वायरस पाए जाने की भी चर्चा हुई और सवाल किया गया कि क्या इस रिसर्च से दवाई बनाने में मदद मिलेगी? इस पर गंगाखेड़कर ने कहा कि यह देश का पहला जिनोम सिक्वेंसिंग नहीं है। उन्होंने बताया, ‘हमारे यहां जो चीन से आए, उनमें वुहान के नजदीक का वायरस पाया गया। उनमें वायरस का सिक्वेंसिंग देखा तो वुहान के नजदीक का मिला।‘
भारत में किस-किस जाति का कोरोना?
उन्होंने आगे कहा कि भारत में कोरोना वायरस लाने वाले लोग इटली और ईरान से भी आए। ईरान से आने वाले सिक्वेंसेज में भी चीन की झांकी मिली। इटली वालों में यूरोप और अमेरिका के लोगों के थोड़े-थोड़े वायरस दिखाई दिए।‘ उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि भारत में अभी भी अलग-अलग जाति के वायरस हैं। अब सवाल पैदा होता है कि भारत में प्रीडॉमिनेंट क्वासि स्पेसीज क्या होगी? अब तक के अनुभव से यही लगता है कि क्वासि स्पेसीज (वायरस की उपजाति) जो भी हो, वैक्सीन बन गई तो उस पर काम करेगी।‘