कोरोना इस देश के लिए मौका था नफरतों को सदा के लिए दफनाने का लेकिन पूरी ताकत नफरत के वायरसों के गर्भाधारण पर लगा दी गई है. यकीनन भविष्य में यह भारत की सबसे ऐतिहासिक घटनाओं की सूची में उपर रहेगा.
जसविंदर सिद्धू
मार्च- अप्रैल 2020 ने हम सब ने देखा कि महामारी का रूप कायम कर चुके कोरोना वायरस ने कैसे खुदा के बनाए हर इनसान की जिंदगी को हिला कर रख दिया. कोरोना वायरस का कहर इस बात का दस्तावेज भी है कि कुदरत के बड़ा कोई नहीं. हालांकि जिस तरह से आम आदमी ने दुनिया भर में इस महामारी के खिलाफ मिनट-दर-मिनट अपनी जंग छेड़ रखी है, इतिहास में इसका जिक्र मिसाल के तौर पर होगा.
भारत भी इस महामारी से उबरने की कोशिश कर रहा है लेकिन जिस तरह से कोरोना वायरस को संप्रादायिक रंग दे दिया गया है, इसके नतीजे मौजूदा स्थिति से भी ज्यादा संगीन हो सकते हैं.
इसमें कोई शक ही नहीं है कि जमातियों का निजामुद्दीन में सम्मेलन करना किसी भी तरह के तर्कसंगत नहीं था. खासकर जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आ चुका हो तो इतने लोगों का एक जगह एकत्र होना अपराध था.
लेकिन कुछ सवाल हैं, जिसका जबाव कोई देना नहीं चाहता और एक पूरे संप्रदाय को नफरत की तरफ धकेल चुका मीडिया का एक वर्ग भी सरकार से पूछना नहीं चाहता.
यह भी सही है कि मरकज पूरी तरह के लॉकडाउन के फैसले से पहले की खत्म हो चुका था. लेकिन इस बात का पता लगना चाहिए कि आखिर गृह मंत्रालय ने इसकी इजाजत कैसे दी? दिल्ली पुलिस से अलावा दिल्ली सरकार भी इस सवाल पर अपना पल्ला झाड़ने की स्थिति में नहीं है.
क्या कोई यह बताएगा कि अगर विदेश से आने वालों की जांच बहुत पहले से शुरु हो गई थी तो हजार से भी ज्यादा जमाती दिल्ली कैसे पहुंचे, पहुंचे भी तो क्या उनकी मेडिकल सक्रीनिंग हुई थी? मेडिकल स्क्रीनिंग हुई थी तो क्या कोई एक भी पकड़ में नहीं आया?
या फिर यह मान लिया जाए कि कोरोना विदेशी जमातियों के जरिए नहीं आया. ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि यह भारत में पहले से ही मौजूद था और किसी को खबर नहीं थी ?
देश के हर हिस्से के खबर आ रही है कि कोरोना वायरस के मरीजों को उबारने में लगे डॉक्टरों के पास पर्सनल प्रोटेक्टिव किट (पीपीई) नहीं है. इस किट में शरीर को ढकने के लिए चशमा, कोट और दस्ताने आदि शामिल होते है तांकि संक्रमित मरीज से वायरस डॉक्टर, नर्स या वार्ड में काम करने वाले किसी सहायक में प्रसारित ना हो सके.
कई जगह डॉक्टर बरसाती पहन कर इलाज कर रहे हैं.
मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस सवाल पर बहस करने की बजाय हिंदू-मुस्लिम खेल रहा है जो कि भविष्य में जाकर काफी घातक सिद्ध हो सकता है.
सवाल यह है कि किसी समुदाय के कुछ चुनिंदा लोगों की शर्मनाक करतूत के कारण उस पूरे समुदाय को ही अपराधी करार देना कितना सही है ?
यकीनी तौर कर कोरोना खतरनाक है. लेकिन यह अपने साथ एक मौका लेकर आया था कि पूरा देश अपना धर्म,जाति भूल कर इसके खिलाफ खड़ा होता और हर बाशिंदा एक दूसरे की मदद करता.
लेकिन भारत के मामले में सांप्रदयिकता का वायरस कोरोना पर हावी रहा है. सभी ने देखा कि कई जगह लोगों के जरुरतमंदों के लिए अपने घर, रसोई और बटुए खोल दिए. लेकिन जिस समय इनसानियत के वायरस को तगड़ा करके समाज में छोड़ना चाहिए था, एयरकंड़िशनर स्टूडियों से प्रसारित नफरत की आग ने सब स्वाहा कर दिया.
कोरोना इस देश के लिए मौका था नफरतों को सदा के लिए दफनाने का लेकिन पूरी ताकत नफरत के वायरसों के गर्भाधारण पर लगा दी गई है. यकीनन भविष्य में यह भारत की सबसे ऐतिहासिक घटनाओं की सूची में उपर रहेगा.