अमलेंदु भूषण खां
हिंदू हो या मुसलमान, यहूदी हो या इसाई सभी धर्मों में शवों को सजाने और अपने परिजनों की उपस्थिति में अंतिम संस्कार करने की परंपरा है। शवों को जलाने या दफनाने के लिए लोग स्वेच्छा से जगह उपलब्ध करा देते हैं लेकिन कोरोना वायरस ने ऐसा कोहराम मचाया है कि कोरोना से मरे लोगों को अपने गांव या आसपास की जगहों में अंतिम संस्कार करने तक की इजाजत नहीं दे रहे हैं।
पहले यह बीमारी मरने से ठीक पहले आपको अपने सभी प्रियजनों से अलग-थलग करती है। फिर ये किसी को आपके पास आने नहीं देती। परिवारों के लिए ये बेहद मुश्किल समय होता है और उनके लिए ये स्वीकार करना दुखदायक होता है।
दिल्ली में जब कोरोना ने अपना शिकार एक महिला को बनाया तो निगम बोध घाट के पुरोहितों व अन्य लोगों ने अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। स्थानीय प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ही नगर निगम के स्वास्थ्यकर्मियों ने विशेष पोशाक में अंतिम संस्कार किया।
आम तौर पर अस्पताल में जब किसी की मौत होती है तो पोस्टमार्टम किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मौत की सही वजह क्या थी। लेकिन भीलवाड़ा में जब कोरोना पीड़ितों की मौत हुई तो पोस्टमार्टम नहीं किया गया। मेडिकल टीम ने शवों की अंतिम क्रिया के लिए विशेष गाउन पहना ताकि कोई फ्लूइड या संक्रमण उनके न लग पाए। शवों को प्लास्टिक किट में पैक किया गया। चार-पांच परिजनों को अंतिम दर्शन के लिए हॉस्पिटल बुलाया गया था। पूरे मेडिकल प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए शवों को मोक्षधाम ले जाया गया।
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि शव में वायरस का संक्रमण नहीं होता, लेकिन फिर भी ये वायरस मरने वाले व्यक्ति के कपड़ों पर कुछ घंटों के लिए जीवित रह सकता है। इसका मतलब ये है कि शव को तुरंत सील किया जाना ज़रूरी है।
दिल्ली में जहां कोरोना को हिंदू-मुसलमान के बीच बांट दिया गया वही सूरत का एक मुसलमान व्यक्ति बहुत से परिवारों का सहारा बन गया है। कोरोना वायरस से मर रहे सभी जाति-धर्म के लोगों का अंतिम संस्कार अब्दुल मालाबरी ही करवा रहे हैं। संक्रमण के डर की वजह से परिजन लाशों के पास तक नहीं आ रहे हैं।
अब्दुल तीस सालों से लावारिस या छोड़ दिए गए शवों का अंतिम संस्कार कर रहा है। सड़कों पर रह रहे लोग, भिखारी, या फिर आत्महत्या करने वाले लोग जिन्हें अंतिम विदाई देने वाला कोई नहीं होता उनका अंतिम संस्कार अब्दुल ही करते हैं।
अब्दुल बताते हैं वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं और बॉडी सूट, मास्क और दास्ताने पहनते हैं। शव पर रसायन छिड़का जाता है और फिर उसे पूरी तरह ढक दिया जाता है। हमारे पास शव ले जाने के लिए पांच वाहन हैं। इनमें से दो को हम सिर्फ़ कोरोना पीड़ितों के लिए ही आरक्षित रखते हैं। इन वाहनों को हम नियमित तौर पर सेनेटाइज़ करते हैं।
वायरस कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वायरस को फैलने से रोकने के लिए इटली ने एक आपातकालीन राष्ट्रीय क़ानून लागू कर जनाज़ा निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया। रोमन कैथोलिक मूल्यों को मामने वाले किसी देश के लिए ये अभूतपूर्व है।
न्यूयॉर्क में रोज़ाना कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 1000 है। अस्पतालों में लाशों के ढेर लगे हुए हैं। बर्फ़वाली ट्रकों में लाशें रखी जा रही हैं।कुछ दिन इंतज़ार किया जा रहा है कि परिजन आकर लाशे ले जाएं। अगर परिजन नहीं आते हैं तो क़रीब छह सात दिन बाद हार्ट आइलैंड टापू पर अस्थायी तौर पर क़ब्रों में लाशों को दफ़ना दिया जाता है। प्रशासन ने यहां लाशों को अस्थायी क़ब्रों में दफ़नाने का इंतज़ाम किया है।
कुछ क़ब्रिस्तानों में एक साथ ही दर्जनों लाशों को अंत्योष्टि के लिए लाया जा रहा है। न्यूयॉर्क शहर प्रशासन ने अंतिम संस्कार स्थलों को तीस जून तक चौबीस घंटे खुले रहने के लिए कहा है। शहर के बड़े अंतिम संस्कार स्थलों में जितनी लाशें पूरे महीने में आती थीं उतनी लाशें अब कोरोना वायरस की वजह से दो-तीन दिनों में ही आ जाती हैं। मुसलमानों की ओर से संचालित कई इस्लामिक सेंटरों में लाशों को अंतिम स्नान कराने में भी दिक़्क़तें आ रही हैं
यूरोपियन देश आयरलैंड में अंतिम संस्कार को लेकर गाइडलाइन जारी की गई है। इसके अनुसार मृतक को छूना, चूमना, गले लगाना और यहां कि तक बिना बॉडी बैग के उसे देखने की भी मनाही हो चुकी है। इस बारे में कैथोलिक चर्चों और अंतिम क्रिया करवाने वाली संस्थाओं को भी सख्त हिदायत दी गई है। आयरलैंड में किसी को खो चुके परिवार से मिलने-मिलाने की रस्म भी अंतिम संस्कार का हिस्सा हुआ करती थी लेकिन अब पड़ोसी या बेहद आत्मीय भी एक-दूसरे को तसल्ली देने नहीं जा पा रहे। संक्रमित की मौत अस्पताल में होती है तो उसे तुरंत ही बॉडी बैग में सील कर दिया जाता है।
इटली का आलम यह है कि अस्पतालों में हो रही मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ही मृतकों को दफना रहा है और परिवारों को सूचित कर देता है। अगर संक्रमित की मौत अस्पताल में होती है तो उसे तुरंत ही बॉडी बैग में सील कर दिया जाता है और कॉफिन में रखकर सीधे कब्रिस्तान पहुंचा दिया जाता है।शहर के शवदाहगृह चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। यहां तक कि शवों को जलाने के लिए वेटिंग लिस्ट तैयार हो चुकी है। अस्पतालों के मुर्दाघरों में मृतकों के शव बॉडी बैग में अपनी बारी का इंतजार करते पड़े हैं। यहां तक कि शवों को उन शहरों में ले जाकर दफनाया जा रहा है, जहां के हालात कुछ कम खराब हैं।
इटली में शवों को आइसोलेशन से निकालकर कब्रगाह तक पहुंचाने के लिए मिलिट्री ट्रकों की तैनाती की गई है ताकि शवों से किसी का संपर्क न हो पाए। बताया जाता है कि यहां पर अंतिम क्रिया करने वाली एक संस्था वीडियो के जरिए क्वारंटाइन में रह रहे परिवारों को उनके प्रियजनों का अंतिम संस्कार दिखा रही है। इससे परिवार के लोगों को सांत्वना मिल रही है कि अंतिम संस्कार के दौरान प्रार्थना पढ़ने के लिए कम से कम एक पादरी तो था।
दक्षिण कोरिया के हालात और भी खराब हैं। यहां पर कोरोना पॉजिटिव की मौत के बाद संक्रमण फैलने के डर से परिवार वाले भी अंतिम संस्कार में आने से डर रहे हैं, जिसकी वजह से फ्यूनरल में केटरिंग सर्विंस देने वालों का काम-धंधा बंद पड़ गया है।
ईरान में कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार करने के लिए स्टाफ कम पड़ रहा है और लगातार नए लोगों की नियुक्ति की जा रही है। लाशें लाई जा रही हैं और बिना किसी अंत्येष्टि कर्म के दफनाई जा रही हैं।
अमरीका की हालत तो दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। कोरोना से लगातार बढ़ती मौतों की संख्या के बीच न्यूयॉर्क में सामूहिक रूप से शवों को दफ़नाने की तस्वीरें सामने आई हैं। हार्ट आइलैंड की इन तस्वीरों में सुरक्षित कपड़े पहने हुए कर्मचारी गहरे खाईनुमा गड्ढों में लकड़ियों के ताबूतों को रखते हुए नज़र आते हैं।
ड्रोन से ली गई ये तस्वीरें जिस जगह की हैं वहाँ डेढ़ सौ से ज़्यादा सालों से ऐसे लोगों को सामूहिक तौर पर दफ़नाया जाता रहा है जिनका कोई क़रीबी या रिश्तेदार नहीं होता या जो बेहद ग़रीब होते हैं।
अमरीका में न्यूयॉर्क की हालत सबसे गंभीर है. इस एक शहर में कोरोना संक्रमित रोगियों की संख्या अमरीका के अलावा दुनिया के किसी भी एक देश में संक्रमित रोगियों की संख्या से ज़्यादा है।
बताया जाता है कि हार्ट आइलैंड पर सामान्यतः एक हफ़्ते में लगभग 25 लाशें आया करती थीं और अंत्येष्टियाँ हफ़्ते में एक ही दिन होती थीं। मगर सुधारगृह विभाग के प्रवक्ता जेसन कर्स्टन का कहना है कि अब यहां हफ़्ते में पांच दिन लाशों को दफ़नाया जा रहा है और हर दिन लगभग 25 लाशें आ रही हैं।
यहां लाशों को दफ़नाने का काम शहर की मुख्य जेल राइकर्स आइलैंड के क़ैदियों से करवाया जाता था, लेकिन काम बढ़ने के बाद अब ये काम ठेकेदारों को सुपुर्द कर दिया गया है। मुर्दाघरों में जगह की कमी के कारण लावारिस लाशों को सुरक्षित रखने का समय कम कर दिया गया है।
ईरान में भी हालात बहुत खराब हैं। राजधानी तेहरान के बेहश्त-ए-जाहरा कब्रिस्तान के एक प्रबंधक का कहना है कि कब्रें खोदने के लिए नए लोगों को काम पर लगाया गया है। आलम यह है कि अंतिम संस्कार की रस्में भी नहीं हो रही हैं। ज्यादातर शव ट्रकों के जरिए आ रहे हैं और उन्हें इस्लामी रस्मों के बिना ही जमीन में दफन किया जा रहा है।
ईरान में संदेह यह जताया जा रहा है कि अधिकारी इसलिए भी लोगों को तुरत फुरत दफना रहे हैं ताकि मरने वालों का सही आंकड़ा पता ना चल सके। ईरान की सरकार पर कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए पर्याप्त कदम न उठाने के आरोप भी लग रहे हैं। ईरान में कोरोना वायरस से होने वाली मौतों का कारण दिल का दौरा या फिर फेंफड़ों का संक्रमण दर्ज किया जा रहा है। ईरानी अस्पतालों में काम करने वाली दो नर्सों का कहना है कि मरने वालों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है जितना सरकार बता रही है