मृत्युंजय कुमार / नई दिल्ली। लॉकडाउन 3.0 में शराब बेचने के लिए राज्य सरकारें शराब पीने वालों से ज्यादा बेचैन दिखी. जबकि कोरोना से मरने वालों के आंकड़े कई गुना बढ़ गए हैं. सोमवार को जब शराब की दुकानें खुलीं तो देशभर में ख़रीददार अहले सुबह से ही लोग लाइनों में खड़े हो गए. सरकार की बेचैनी इससे जानी जा सकती है कि शराब की बिक्री तो शुरू कर दी लेकिन बाक़ी कारोबार को बंद रखी हैं. ऐसे में सवाल उठा है कि शराब की बिक्री सरकारों के लिए इतनी ज़रूरी क्यों हैं.
भारत में पिछले 10 साल में शराब की खपत दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी, जो 2016 में बढ़कर 5.7 लीटर हो गई. 2025 तक इसमें और इजाफा होगा. रिपोर्ट के मुताबिक, शराब पीने से 2016 में दुनिया में 30 लाख लोगों की मौत हुई, जो एड्स, हिंसा और सड़क हादसों में होने वाली मौतों के आंकड़े से भी ज्यादा है.
वर्तमान में करीब 23.7 करोड़ पुरुष और 4.6 करोड़ महिलाएं शराब से जुड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर यूरोप और अमेरिका में रहने वाले हैं. यूरोप में प्रति व्यक्ति शराब की खपत पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 10 लीटर है, जबकि वहां 2010 के मुकाबले अब शराब की खपत में 10 फीसदी तक की कमी आई है. रिपोर्ट के मुताबिक, शराब पीने की वजह से लीवर सिरोसिस और कुछ कैंसर समेत 200 से ज्यादा स्वास्थ्य विकार होते हैं.
भारत में प्रति व्यक्ति खराब की खपत
वर्ष खपत
2005 2.4 लीटर
2016 5.7 लीटर
2025 7.9 लीटर
-4.2 लीटर शराब पीते हैं भारतीय पुरुष, जबकि महिलाएं 1.5 लीटर शराब पीती हैं
-10 लीटर प्रति व्यक्ति शराब की खपत है यूरोप में, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है
इसका प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के रिसर्च कहती है कि लॉकडाउन से पहले 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते थे, उनमें से तीन करोड़ लोगों को शराब की लत थी. छत्तीबसगढ़ में पिछले 15 सालों में शराब से होने वाली आय में 100 गुना इजाफा देख सरकार ने खुद शराब बेचने को फैसला किया.
अपवाद की बात की जाए तो गुजरात, बिहार, मिज़ोरम और नागालैंड में पूर्ण रूप से शराबबंदी है। हरियाणा और आंध्रप्रदेश में शराबबंदी फेल साबित हुई. बता दें कि केंद्रीय जीएसटी में से राज्यों को भी कुछ हिस्सा दिया जाता है. हालांकि कुछ महीने से राज्यों को उनका हिस्सा नहीं मिल पाया.
दरअसल, शराब और पेट्रोल ये दो ऐसे उत्पाद हैं जिन पर राज्य सरकारें अपनी ज़रूरत के हिसाब से टैक्स लगाकर सबसे ज़्यादा राजस्व वसूलती हैं. माना जा रहा है कि राज्य सरकारों को हो रहे राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए ही लॉकडाउन के बावजूद शराब की दुकानें खोली गई हैं.
जरा शराब से राज्यों को होने वाली आय को भी देखिए. राज्योंं के आंकड़ों पर बात की जाए तो 2019 में महाराष्ट्र ने 24,000 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपये, राजस्थान ने 7,800 करोड़ रुपये और पंजाब ने 5,600 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था. दिल्ली ने इस दौरान करीब 5,500 करोड़ रुपये का आबकारी शुल्क हासिल किया था. राज्य के कुल राजस्व का यह करीब 14 फीसदी है.
जिन राज्यों में शराब बिकती हैं वहां सरकार के कुल राजस्व का पंद्रह से पच्चीस फ़ीसदी हिस्सा शराब से ही आता है. यही वजह है कि लॉकडाउन के बावजूद राज्य सरकारों ने शराब बेचने में जल्दबाज़ी दिखाई है. यूपी, कर्नाटक और उत्तराखंड अपने कुल राजस्व का बीस फ़ीसदी से अधिक सिर्फ़ शराब की बिक्री से हासिल करते हैं.
हालांकि केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सरकार कुल राजस्व का दस फ़ीसदी से कम शराब बिक्री से हासिल करती है क्योंकि यहां शराब पर टैक्स दूसरे प्रांतों के मुक़ाबले कम है.
दरअसल शराब को जीएसटी से बाहर रखा गया है. यानी राज्य अपने हिसाब से कर निर्धारित करते हैं. गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर रोक है और इन राज्यों में सरकार को शराब से कोई राजस्व हासिल नहीं होता.
आंध्र प्रदेश में जहां आज से साढ़े तीन हज़ार के क़रीब शराब दुकानों को खोला जा रहा है वहीं नया शराबबंदी टैक्स भी लगाया जा रहा है.
हालांकि सरकार ने अभी टैक्स की दर निर्धारित नहीं की है. राज्य के विशेष सचिव रजत भार्गव ने कल एक प्रेस वार्ता में कहा, ‘हम राजस्व वसूली की वजह से राज्य में शराब की दुकानें तो खोलने जा रहे हैं लेकिन सरकार शराब पीने के बुरे प्रभावों को लेकर भी चिंतित है. हमारे मुख्यमंत्री शराब के बुरे प्रभावों के लेकर ख़ास तौर पर चिंतित है और यही वजह है कि हम शराबबंदी कर भी लगाने जा रहे हैं. इसकी दर जल्द ही तय कर दी जाएगी.’
गुजरात, बिहार और आंध्र प्रदेश को छोड़कर देश के सोलह बड़े राज्यों ने वित्त वर्ष 2020-21 के अपने बजट अनुमान में बताया था कि वो शराब की बिक्री से कुल मिलाकर 1.65 लाख करोड़ रुपए राजस्व हासिल करना चाहते हैं.
शराब बिक्री से अधिक राजस्व हासिल करने के उद्देश्य से हाल ही में राजस्थान ने कर बढ़ा दिया था. भारत में बनने वाली 900 रुपए से कम क़ीमत की विदेशी शराब (आईएमएफ़एल) पर कर पच्चीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतीस फ़ीसदी कर दिया गया था वहीं 900 रुपए से अधिक क़ीमत वाली बोतल पर कर पैंतीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतालीस फ़ीसदी कर दिया गया था.
यहीं नहीं राजस्थान में बीयर पर टैक्स भी पैंतीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतालीस फ़ीसदी कर दिया गया था. यानी कि यदि कोई सौ रुपए की बीयर ख़रीदता है तो वो पैंतालीस रुपए इस पर सरकार को कर देता है.
लॉकडाउन के पहले दिन जब राजस्थान में शराब की दुकानें खुलीं तो ख़रीददारों की भारी भीड़ लग गई. कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि राजस्थान सरकार लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री को फिर से रोक सकती है.
वहीं हरियाणा में सोमवार को शराब की दुकानें नहीं खुली. इसकी वजह शराब विक्रेताओं और सरकार के बीच टकराव को माना जा रहा है. शराब दुकानदार लाइसेंस फ़ीस में रियायत की मांग कर रहे हैं.
वहीं मनोहर लाल खट्टर सरकार ने हरियाणा में प्रति बोतल 2 से 20 रुपये तक कोरोना सेस लगाने का निर्णय लिया है. उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने रविवार को पत्रकारों से कहा था कि सरकार दो रुपए से बीस रुपए प्रति बोतल तक कोविड-19 सेस लगाएगी.
इसी बीच राजधानी दिल्ली में पुलिस को भीड़ की वजह से कुछ शराब दुकानों को बंद कराना पड़ा. राजधानी में चौबीस मार्च के बाद से पहली बार शराब की दुकानें खुलीं तो ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ी.
शराब की दुकानें खुलने से जहां पीने वालों ने राहत की सांस ली हैं वहीं दूसरे कारोबार करने वाले लोगों का कहना है कि जब शराब की दुकानें खुल सकती हैं तो उनके कारोबार क्यों नहीं खुल सकते.