मृत्युंजय कुमार / नई दिल्ली । पू्र्वी लद्दाख में 15-16 जून को हुई सैन्य हिंसा के दो दिन बाद तक चीन हमेशा की तरह दो तरफा बातें करता रहा। एक तरफ शांति की दुहाई दे रहे ड्रैगन ने दूसरी ओर गलवान घाटी पर दावा ठोंक किया। अपने 20 जवानों को गंवाने के बाद अब भारत ने फैसला कर लिया है कि चीन अगर चालबाजी से अपने कदम आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा तो उसे कीमत भी चुकानी पड़ेगी।
अधिकारी ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत की सीमा प्रबंधन के लिए शांति बनाए रखने की नीति बदल गई है। वहीं पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के लिए जब चाहे चले आने का विकल्प खत्म हो गया है। भारतीय सेना इस वक्त 3,488 किमी की वास्तविक नियंत्रण रेखा और पूर्वी क्षेत्र पर अब तक की सबसे ज्यादा अलर्ट पोजिशन में तैनात है। चीन ने भी LAC पर सेना बढ़ा दी है, खासकर गलवान, दौलत बेग ओल्डी, देपसान्ग, चुशुल और पूर्वी लद्दाख के दूसरे इलाकों में लेकिन भारत की सेना मानो युद्ध जैसे अलर्ट पर तैनात है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक LAC पर सेना किसी भी तरह की स्थिति के लिए मुस्तैद खड़ी है। पूर्वी लद्दाख में LAC पर 15 हजार सैनिक फॉरवर्ड इलाकों में हैं और इससे भी ज्यादा उनके पीछे खड़े हैं।
यूं तो PLA लंबे वक्त से LAC के अंदर आती रहती है, जून-अगस्त 2017 में सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राई-जंक्शन पर डोकलाम के पास 73 तक चले गतिरोध के बाद से उसकी यह हरकत बढ़ गई है। इससे पहले 2016 में PLA 296 बार भारत की सीमा में आई लेकिन 2017 में 473, 2018 में 404 और 2019 में तो 663 बार इसने यह जुर्रत की है। PLA गलवान घाटी और सिक्कम के नाकू ला सेक्टर में बेहद आक्रामक रवैया भी अपना रही है। 5 मई को पैन्गॉन्ग सो में चीन और भारत की सेना के बीच झड़प के बाद 9 मई को नाकू ला पर भी ऐसी घटना हुई।
चीन ने भी एलएसी पर अपनी सेना बढ़ाई है खासतौर से गलवां, बेग ओल्डी, देपसान्ग, चुशुल और पूर्वी लद्दाख के दूसरे इलाकों में। मगर ऐसा लग रहा है कि भारतीय सेना युद्ध के लिए पूरी तरह से अलर्ट पर है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एलएसी पर सेना किसी भी तरह की स्थिति का सामना करने के लिए मुस्तैद है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर 15 हजार सैनिक फॉरवर्ड इलाकों में हैं और इससे भी ज्यादा उनके पीछे खड़े हैं।
चीन जमीन पर इस तरह की आक्रामकता लंबे समय से कई बार दिखा चुका है। वे हमारे क्षेत्र में आते हैं, बेफिजूल के दावे करते हैं और उन्हें सच मानकर दोहराते रहते हैं और फिर भारत को आक्रामक बताने की कोशिश करते हैं। अब इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। पीएलए को अब क्षेत्र छीनने की अपनी हर कोशिश का नुकसान भुगतना होगा।’
चीन ने डी-एस्केलेशन प्रक्रिया के बीच अपने सैन्य निर्माण को तेज कर दिया है। चित्र दिखाते हैं कि चीनी सैनिकों को तीन भागों में बांटा गया है। फॉरवर्ड बिल्ड अप के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की ओर निर्देशित दो ट्रेल्स हैं। मंगलवार से प्राप्त चित्रों में सैकड़ों सैन्य वाहनों को दिखाया गया है जो चीनी ओर अस्तर के साथ-साथ चीनी निशान के मध्य और पिछड़े भागों में बांटे गए हैं।
सैटेलाइट से तस्वीरें मिलने के बाद चीन की नापाक चाल सामने आ गई है। चीन लगातर भारतीय इलाकों में घुसपैठ करना चाहता है। कई तस्वीरों में चीन के सैन्य वाहनों को भी देखा गया और आर्मी कैंप भी नजर आ रहे हैं। 16 जून की हैं। गलवान घाटी में ही दोनों सेनाओं के बीच झड़प हुई थी। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। हालांकि दोनों पक्षों को उम्मीद है कि बातचीत से मसला हल हो जाएगा।
एक सूत्र का कहना है, ‘हमारे सैनिक हटेंगे नहीं। हमारी क्षेत्रीय प्रभुता से कोई समझौता नहीं होगा। चीन जमीन पर यह आक्रामकता लंबे वक्त से कई बार दिखा चुका है। वे हमारे क्षेत्र में आते हैं, फिजूल के दावे करते हैं और उन्हें सच मानकर दोहराते रहते हैं और फिर भारत को आक्रामक बताने की कोशिश करते हैं।’ उनका कहना है कि अब इसकी इजाजत नहीं होगी और PLA को क्षेत्र छीनने की हर कोशिश का नुकसान भुगतना पड़ेगा।
माना जा रहा है कि बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बैठक समेत चलीं कई सारी बैठकों के नतीजतन यह कड़ा रवैया देखा जा रहा है। भारतीय डिफेंस इस प्रोटोकॉल पर भी दोबारा विचार कर रहा है जिसके तहत सैनिक LAC के फॉरवर्ड इलाकों में फायरआर्म्स नहीं लेकर जाते हैं। चीन की PLA युद्ध की तैयारी में रहती है। ऐसे में इस प्रोटोकॉल पर फैसला किया जा सकता है। सूत्र का कहना है, ‘PLA ने द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन किया है और सीमा प्रबंधन नियमों को तोड़ा है, जिसमें सीमा रक्षा सहयोग समझौता (BDCA), 2013 शामिल है।’
1962 के युद्ध की शुरुआती चीन के संदर्भ में गलवान नदी के क्षेत्र का बेहद दर्दनाक इतिहास है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने जुलाई 1962 में भारतीय सेना के पोस्ट को घेर लिया था। यह उन घटनाओं में से एक थी जिनके बाद चीन और भारत के बीच हुए भयानक युद्ध की नींव रखी गई थी। 1962 में गलवान के आर्मी पोस्ट में 33 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई दर्जनों को बंदी बना लिया गया था। लद्दाख में हुई ताजा झड़पों में गोली नहीं चली लेकिन इतनी जानें चली गईं। दरअसल, चीन के सैनिकों ने कांटेदार डंडों से भारतीय सेना पर हमला किया। चीन ऐसा पहले भी कर चुका है। इससे पहले डोकलाम में 2017 में जब तनावपूर्ण स्थिति बनी थी तब भी पैन्गॉन्ग सो झील के पास डंडों और पत्थरों का ही सहारा लिया गया था।
पूर्वी लद्दाख में बने हालात को ज्यादा गंभीर माना जा रहा है। करीब 6000 चीनी टुकड़ियां टैंक और हथियारों के साथ भारतीय सेना के सामने खड़ी हैं। सिर्फ लद्दाख ही नहीं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्कम और अरुणाचल में भी सैन्य तैनाती की जा चुकी है। 5 मई से दोनों देशों के बीच लद्दाख में तनाव जारी है और दोनों देशों के अधिकारी शांति स्थापना की कोशिश में वार्ता कर चुके हैं। इसी दौरान इस बात पर सहमति जताई गई थी कि LAC पर सेनाएं पीछे हटेंगी।