जनजीवन ब्यूरो / रांची : क्या आपने कभी पीले रंग का तरबूज खाया या देखा है! अधिकतर लोगों का जवाब होगा नहीं। लेकिन, आपको बता दें कि लाल रंग का यह फल अब पीले रंग में भी आने लगा है। झारखंड के एक किसान ने इसकी फसल लगायी है और अब बाजार में भी यह उपलब्ध हो गया है। यह कमाल किया है झारखंड की राजधानी रांची से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ जिला के एक किसान ने।
रामगढ़ जिला के गोला प्रखंड में रहने वाले इस किसान का नाम है राजेंद्र बेदिया। गोला प्रखंड के चोकड़बेड़ा के किसान राजेंद्र ने अपने खेत के एक हिस्से में इसकी ऑर्गेनिक खेती की है। इसका बीज ताईवान से मंगवाया था। इसकी खेती में किसी प्रकार के रसायन का इस्तेमाल नहीं हुआ। कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं किया गया।
पीले रंग के तरबूज की खेती करने की वजह से रामगढ़ के किसान राजेंद्र बेदिया की चर्चा आज देश भर में हो रही है। आसपास के जिलों के लोग उनके खेत में उगे तरबूज को देखने आ रहे हैं। इसका स्वाद चखना चाहते हैं। कई किसानों भी राजेंद्र के पास पहुंचे हैं, जो उनसे इस तरबूज की खेती के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं।
यह तरबूज अनमोल हाइब्रिड किस्म का है। इसका रंग बाहर से सामान्य तरबूज की तरह हरा है, लेकिन काटने पर अंदर में गूदा लाल नहीं है। इस तरबूज का गूदा पीले रंग का है। यह बेहद मीठा और रसीला भी है। राजेंद्र कहते हैं कि लाल तरबूज के मुकाबले इसमें ज्यादा पोषक तत्व हैं।
स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद राजेंद्र ने प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। इसके साथ ही वह खेती में भी जुट गये। खेती में नये-नये प्रयोग करना उनका शौक है। राजेंद्र बेदिया कहते हैं कि बागवानी और कृषि से उन्हें काफी लगाव है। बचपन से ही। ढाई एकड़ में आम की बागवानी की है। इस बगीचे में बहुफसलीय खेती करते हैं।
राजेंद्र बेदिया ने बताया कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बिग हाट के माध्यम से ताईवान से बीज मंगवाया। ‘अनमोल’ किस्म के 10 ग्राम बीज की कीमत 800 रुपये है। यानी यह बीज बाजार में 80,000 रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है। 10 ग्राम बीज को 15 डिसमिल जमीन पर बोया और उससे 15 क्विंटल पीले तरबूज की उपज हासिल की।
माइक्रो इरीगेशन टपक सिंचाई और मल्चिंग पद्धति से खेती की। राजेंद्र को उम्मीद है कि अगर सही कीमत मिले, तो वह कम से कम 22 हजार रुपये तक कमा सकते हैं। यह लागत मूल्य से तीन गुणा अधिक होगा। राजेंद्र के खेत में पीले तरबूज की पैदावार से इलाके के लोग भी दंग हैं। वह टपक सिंचाई और मल्चिंग पद्धति से टमाटर, करेला एवं मिर्च की भी खेती कर रहे हैं।
किसान राजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने तरबूज की खेती पानी की क्यारी बनाकर ड्रिप सिस्टम से की। इसमें उन्होंने विदेश की टपक सिंचाई यानी बूंद-बूंद पानी के इस्तेमाल की पद्धति को अपनाया। इस पद्धति से पानी की बचत करके पौधों का विकास किया। इससे पानी की बर्बादी कम हुई। साथ ही पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचा।
राजेंद्र की मानें, तो झारखंड में पहली बार ऐसा प्रयोग किया गया है। दो एकड़ के प्लॉट में विभिन्न फसलों के अलावा 15 डिसमिल जमीन पर तरबूज की खेती की। यहां साढ़े चार किलो से लेकर पांच किलो तक वजन का पीला तरबूज हो रहा है। उन्होंने बोकारो के व्यापारियों को अपना तरबूज सैंपल के तौर पर दिया है।
पीले तरबूज की खेती का प्रयोग करने वाले राजेंद्र ने इससे कमाई के बारे में सोचा ही नहीं। उन्होंने मात्र 10 रुपये प्रति किलो की दर से इसे बाजार में बेच दिया। उनका भतीजा बोकारो के फल कारोबारियों के पास इसके सैंपल लेकर गया, तो उसकी काफी डिमांड थी। तब तक तरबूज बहुत कम रह गया था। सो उन्होंने इसे बेचने से ही मना कर दिया। आसपास के जो भी लोग आते हैं, उन्हें यूं ही खाने के लिए दे देते हैं। अब तो तरबूज बचा ही नहीं। जो कुछ बचा है, उसकी बिक्री वह नहीं कर रहे।