जनजीवन ब्यूरो / कानपुर । एक दिन पहले तक कानपुर के बिकरू गांव में 3 जुलाई को हुए हत्याकांड के बाद शोक मनाया जा रहा था। लेकिन 9 जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन में गिरफ्तारी और 10 जुलाई को विकास दुबे का एनकाउंटर के बाद खुशी का माहौल है। विकास दुबे की दहशत उसके रिश्तेदारों, गांववालों में भी थी। अपराध का यह किस्सा खत्म होते ही बिकरू गांव में लोग खुशी मनाने लगे।
कानपुर के बिकरू गांव में लोगों ने विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद मिठाइयां बांटीं। स्थानीय लोगों ने कहा, ‘यह पूरा क्षेत्र बहुत खुश है। ऐसा लगता है कि आखिरकार हम आजाद हो गए हैं। यह आतंक के एक युग का खात्मा है। हर शख्स आज बहुत खुश है।’
स्थानीय लोगों का कहना है, विकास शुरू से ही क्रूर था। 1990 में विकास ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए पास के ही डिब्बा नवादा गांव में घुसकर लोगों की पिटाई की थी।
ग्रामीण बताते हैं कि 1992 में गांव में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। विकास ने यहां खूब कहर बरपाया था। कई लोग अपनी याददाश्त खो बैठे। कई सदमे में चल बसे।
क्षेत्र में स्थित फैक्ट्रियों से वसूली हो या फिर चलते ट्रकों को लूटना, विकास दुबे की जिंदगी का यह आम किस्सा था। बताया जाता है कि कुछ वक्त पहले गांव में पानी के नल नहीं थे। मजबूरन लोगों को विकास दुबे के घर के करीब बने कुएं से पानी लेने आना पड़ता था। इसके लिए बाकायदा विकास दुबे इजाजत देता था। कहा जाता है कि ऐसा न करने पर वह लोगों की बुरी तरह से पिटाई करता।