. 2012-2016 तक के आंकड़ों के अनुसार इन पांच सालों के दौरान गुजरात में साढ़े बाइस लाख से ज्यादा बेरोजगारों ने रोजगार कार्यालय में नाम लिखाया. इनमें से 15 लाख के करीब गुजरातियों को प्लेसमेंट दी गई है.
. पांच सालों में यूपी राज्य में 77 लाख से भी अधिक युवाओं ने नौकारी का आस में रोजगार कार्यालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन इनमें से यह दरवाजा करीब सात हजार के लिए ही खुला.
गुजरात मॉडल पिछले छह सालों से वायग्रा की तरह बेचा जा रहा है. पंगु अर्थव्यवस्था और जमीं की ओर लटक रहा जीडीपी का ग्राफ साबित करता है कि यह मॉडल महज मार्केटिंग स्टंट है. हालांकि जिस गुजरात मॉडल को लागू करना सबसे जरुरी है, उससे मुल्क को महरुम जा रहा है. मसला नौकरियां पैदा करने और देने का है. इस मामले में गुजरात के सामने पूरा मुल्क दलित से भी बदतर है.
राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी का रुतबा युवाओं के प्रदेश गुजरात की सफलता और नाकामी पर भी निर्भर है.
संभवत यही कारण है कि गुजरात से इस पकड़ को और मजबूती देने के लिए भाजपा सरकार ने व्यापक स्तर पर नौकरियां पैदा की और बांटी हैं. लेकिन भाजपा शासित या अन्य राज्यों में ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई है.
रोजगार महानिदेशालय के आंकड़ें बताते हैं कि एक्सचेंज में रजिस्ट्रेशन करवाने वाले करीब 70 फीसदी से ज्यादा गुजरातियों को नौकरी मिली है जबकि अन्य, जिसमें भाजपा शासित प्रदेश भी शामिल हैं, इसका औसत 1 से दो फीसदी से कभी उपर नहीं गया है.
2012-2016 तक के आंकड़ों का दावा है कि इन पांच सालों के दौरान गुजरात में साढ़े बाइस लाख से ज्यादा बेरोजगारों ने रोजगार कार्यालय में नाम लिखाया. इनमें से 15 लाख के करीब गुजरातियों को प्लेसमेंट दी गई है. सिर्फ 2016 में 4 लाख 46 हजार लोगों ने पंजीकरण किया था और आंकड़ों के अनुसार 3 लाख 30 हजार को काम दे दिया गया.
कोई और राज्य ऐसा करने के आस-पास भी नहीं है. यहां तक की भाजपा शासित प्रदेश भी.
हाल ही में राजस्थान में भाजपा की सरकार पांच साल पूरा करने के बाद हारी. 2012-2016 में प्रदेश के साढ़े छह लाख युवाओं ने नौकारी की आस में रोजगार कार्यालय के रजिस्टर्ड कराया लेकिन सिर्फ 17 को ही कहीं काम मिला. 2016 में 1 लाख 13 हजार से ज्यादा लोगों ने काम के लिए नाम दर्ज करवाया जिसमें एक ही भाग्यशाली निकला.
पंजाब में भाजपा अकाली दल की सांझेदार रही है. यहां पंजीकरण करवाने वाले लाखों बेरोजगारों में से दो फीसदी ही काम हासिल कर पाए.
हरियाणा में 2013 से 2016 तक साढ़े चार लाख में से सिर्फ 16 आवेदक की भाग्यशाली रहे. वैसे प्रदेश 2012 में 98 हजार में से 12 हजार से ज्यादा नौकरियां देने में सफल रहा.
गुजरात की तुलना इन राज्यों के आंकड़ें देखने के बाद एक सवाल लाजिमी है कि नौकरियां पैदा करने और देने का मॉडल अगर गुजरात में सफल है तो बाकि जगहों पर इसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मुख्यमंत्रियों को ज्ञान क्यों नहीं दिया.
पहली नजर में इसका राजनैतिक पहलू साफ नजर आता है.
2012 के गुजरात चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार कुल 3.78 करोड़ वोटरों में के एक तिहाई 18 से 29 साल के युवा थे. इनमें से 13.36 लाख ने पहली बार वोट डालना था. इन वोटरों की उम्र 18 से 19 साल थी.
इतने युवा प्रदेश को कोई भी स्याना राजनेता किसी भी तरह से बहका नहीं सकता और ना ही किसी तरह के असंतोष के चलते वह इस कारण से राष्ट्रीय स्तर पर गढ़े गए अपने तिल्सम को टूटने दे सकता है.
ऐसा ना होता तो बाकी के राज्यों में भी यह आंकड़ें गुजरात के आसपास के नहीं तो कम से कम जिक्र करने लायक तो होते.
महाराष्ट्र का उदहारण ले सकते हैं. 2016 में 6 लाख 28 हजार में से करीब 38 हजार पार्थियों की प्लेसमेंट हुई.
उत्तर प्रदेश केस स्टडी हो सकता है. दिल्ली में 7 लोक कल्याण मार्ग का बंगला किसको मिलेगा, यूपी तय करता है. लेकिन नौकरियों के मामले में देश के इस सबसे बड़े प्रदेश की हालत कालाहांडी से भी बुरी है.
इन पांच सालों में यूपी राज्य में 77 लाख से भी अधिक युवाओं ने नौकारी का आस में रोजगार कार्यालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन इनमें से यह दरवाजा करीब सात हजार के लिए ही खुला.
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी कई लाख ने एप्लाई किया लेकिन कामयाब आवेदकों को औसत एक या दो फीसदी से उपर नहीं गया.
साफ है कि गुजरात को छोड़ कर बाकी सभी राज्यों में नौकरियों को सूखा है और यह आगे अकाल में बदलेगा. क्योंकि सरकार रोजगार को लेकर अभी सिर्फ कागजी दावे ही दिखा रही है.
प्रधानमंत्री रोजगार प्रोस्तसाहन योजना या मुद्रा योजना से कितने लोगों को रोजगार मिला है, संसद में इस सवाल पर कोई आंकड़ा पेश नहीं किया गया है.
2019 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी अपनी मुद्रा योजना की कामयाबी को बेच रहे थे। 2015 में शुरु की गई इस योजना के तहत युवा रोजगार के लिए दस लाख रुपये तक का लोन ले सकते हैं.
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की वेबसाइट के ताजा आंकड़ों के अनुसार साल 2018-2019 के दौरान 59870318 लोन पास किए गए. इसके तहत 246437.40 करोड़ रुपए बतौर कर्ज बंटे.
लेकिन अब रिजर्व बैंक ने ही कहना शुरु कर दिया है कि इस योजना के तहत लिए गए लोन नॉन पर्फोमिंग एसेट्स में बदला शुरु हो गए हैं.
हाल में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एम के जैन ने एक कार्यक्रम में कहा कि मुद्रा लोन से गरीबी बेशक थोड़ी कम हुई है लेकिन इस कर्जे में नॉन पर्फोमिंग एसेट्स का बढ़ता स्तर चिंतित करने वाला है.
इस सब के बाद की कोई कहे की ‘सब चंगा सी’ तो समझ लेना चाहिए कि मुल्क को आगे और कैसे हालात भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.
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