जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। टिकटों के समीकरण में बिहार में विकास का मुद्दा सिर्फ भाषण और नारे तक सीमित रह गया है। जीतने के लिए दोनों गठबंधन जातीय गणित ही दुरुस्त कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों की उम्मीदवारों की सूची में पिछड़ी जातियों पर ज्यादा भरोसा जताया गया है । राज्य में सवर्णों की आबादी मात्र 15-16 फीसदी रहने के कारण दलों ने उम्मीदवार भी 16 फीसदी ही उतारे हैं। सबसे खासबात यह है कि लालू प्रसाद ने एक भी भूमिहार जाति को टिकट नहीं दिया। लालू ने सबसे ज्यादा राजपूतों को टिकट देकर भाजपा के मजबूत वोट में सेंधमारी की कोशिश की है । पिछड़े वर्ग को सवसे ज्यादा 55 फीसदी टिकट दिया गया है जिसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग भी शामिल हैं।
भाजपा के घोषित 153 उम्मीदवारों में से 65 सवर्णों को टिकट दिया गया है, इनमें सबसे ज्यादा 30 राजपूत, 18 भूमिहार, 14 ब्राह्मण और 3 कायस्थ हैं। जबकि लालू के वोट में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने 22 यादव उम्मीदवार उतारे हैं।
कांग्रेस, जदयू और राजद के महागठबंधन ने सबसे ज्यादा यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। घोषित उम्मीदवारों में तीनों पार्टियों ने 64 यादवों को उतारा है। 33 मुसलमानों को टिकट दिया गया है। नीतीश का आधार वोट माने जाना वाले 38 (16+22) कुर्मी -कोइरी को टिकट दिया गया है। महागठबंधन का आधार वोट में मुस्लिम, यादव, कुर्मी, कोइरी जाति के 135 लोगों को टिकट दिया गया है। कोइरी को इसलिए ज्यादा टिकट दिया गया है क्योंकि नीतीश को खतरा है कि उपेंद्र कुशवाहा की वजह से उनका ये आधार वोट खिसक न जाए। लिहाजा कुशवाहा मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए नीतीश ने ज्यादा कोइरी उम्मीदवार उतारे गए हैं।
सवर्णों में सेंध लगाने के लिए 39 उम्मीदवार महागठबंधन की ओर से उतारे गए हैं। एनडीए में सबसे ज्यादा सवर्णों को ही टिकट दिया गया है। उसी सवर्ण कार्ड को घेरने के लिए लालू-नीतीश और कांग्रेस की तिकड़ी ने 39 सवर्ण उम्मीदवार दिये हैं। हालांकि लालू ने एक भी भूमिहार को टिकट नहीं दिया है लेकिन नीतीश और कांग्रेस ने 13 भूमिहार उतारे हैं।
दलित-महादलित वोटों के लिए नीतीश और मांझी में जंग छिड़ी हुई है। एनडीए ने दलित-महादलित मिलाकर अब तक 34 टिकट दिये हैं . जबकि महागठबंधन ने 38 उम्मीदवार उतारे हैं।
टिकट देने में नीतीश और लालू ने एक और चालाकी की है। 2005 और 2010 के विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने नीतीश को जमकर वोट किए थे। नीतीश ने महिला वोटों पर पकड़ मजबूत रखने के लिए ही 25 महिला उम्मीदवारों को उतारा है। सवर्णों को जिन 20 सीटों पर महागठबंधन ने टिकट दिया है वहां उनका मुकाबला एनडीए के सवर्ण उम्मीदवार से ही है।
उम्मीदवारों के चुनाव में नीतीश ने जहां ज्यादातर अपने पुराने साथियों पर दांव लगाया है, वहीं लालू ने ज्यादातर नए उम्मीदवार उतारे हैं। लालू का मानना है कि पुराने लोगों की गलतियों को छिपाने का मौका मिलेगा। दूसरी तरफ नुकसान ये होने की आशंका है कि जिनका टिकट कटा है वो बागी होकर खेल बिगाड़ सकते हैं।