जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। 24 जुलाई 2017 को बतौर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल का अंतिम दिन था। उनके सम्मान में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा था, यहां पढ़ें उन्हें शब्दश:
आदरणीय राष्ट्रपति महोदय, श्रीमान प्रणब मुखर्जी जी; नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महोदय, श्रीमान रामनाथ कोविंद जी, आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, उपस्थित सभी आदरणीय महानुभाव।
मिश्र भावनाओं से भरा हुआ ये पल है। प्रणब दा के कार्यकाल का ये राष्ट्रपति भवन का आखिरी दिन है। एक प्रकार से इस समारोह में जब मैं खड़ा हुआ हूं तो ढेर सारी समृतियां उजागर होना बहुत स्वाभाविक है। उनका व्यक्तित्व, उनका करतत्व; इससे हम भलीभांति परिचित हैं। लेकिन मुनष्य का एक स्वाभाविक स्वभाव रहता है, और सहज भी है कि वह अपने भूतकाल के साथ वतर्मान का आकलन करने के मोह से बच नहीं सकता है। हर घटना को, हर निर्णय को, हर इनिशिएटिव को, अपने जीवन के कार्यकाल के साथ तुलना करना बड़ा स्वाभाविक होता है। मेरे तीन साल के अनुभव में मेरे लिए बड़ा अचरज था कि इतने साल तक सरकारों में रहे, सरकारों के निर्णायक पदों पर रहे, लेकिन वर्तमान सरकार के किसी निर्णय को उन्होंने अपने उन भूतकाल के साथ न कभी तराजू से तोला, न कभी उसका उस रूप में मूल्यांकन किया, हर बात का उन्होंने वर्तमान के संदर्भ में ही मूल्यांकन किया; मैं समझता हूं ये एक बहुत बड़ी उनकी पहचान है।
सरकार कई इनिशिएटिव लेती थी, और मेरा ये सब नसीब रहा कि मुझे हर पल उनसे मिलने का अवसर मिलता था, खुल करके बात करने का मौका मिलता था, और बड़े ध्यान से हर चीज वो सुनते भी थे। कहीं सुधार की जरूरत होती तो सुझाव देते थे; ज्यादातर प्रोत्साहन देते थे। यानी अभिभावक के रूप में पितातुल्य राष्ट्रपति की भूमिका क्या होती है, उसको कायदा-कानून से, दायरे से कहीं ऊपर, अपनत्व से, प्यार से और इस पूरे राष्ट्रजीवन के परिवार के मुखिया के रूप में जिस प्रकार का उनका मार्गदर्शन रहता था। मुझ जैसे नए व्यक्ति को, जिसके पास इस तरह का कोई अनुभव नहीं था; मैं एक राज्य में काम करके आया था। ये उन्हीं का कारण था कि मुझे चीजें समझने में, निर्णय करने में उनकी बहुत मदद रही। और उसी के कारण कई महत्वपूर्ण काम पिछले तीन साल में हम कर पाए।
ज्ञान का भंडार, सहजता, सरलता, ये चीजें किसी भी व्यक्ति को आकर्षित करती हैं। लेकिन हम दोनों का लालन-पालन अलग विचारधारा में हुआ, अलग कार्य-संस्कृति में हुआ। अनुभव में भी हमारे; मेरे और उनके बीच में बहुत बड़ा फासला है। लेकिन मुझे कभी ये उन्होंने महसूस नहीं होने दिया। और वो एक बात कहते हैं कि भाई देखिए मैं राष्ट्रपति जब बना तब बना, आज राष्ट्रपति हूं, लेकिन लोकतंत्र कहता है कि देश कि जनता ने तुम पर भरोसा किया है, तुम्हारा दायित्व है, और मेरा काम है कि तुम इस काम को अच्छे ढंग से करो। राष्ट्रपति पद, राष्ट्रपति भवन और प्रणब मुखर्जी स्वयं, उसके लिए जो भी कर सकते हैं, करेंगे। ये अपने आप में एक बहुत बड़ा संबल था, एक बहुत बड़ा संबल था और इसलिए मैं राष्ट्रपति जी का हृदय से बहुत आभारी हूं।
उनकी हर बात मेरे जीवन में एक पथ-प्रदर्शक के रूप में रहेगी, ऐसा मुझे, मैं खुद महसूस करता हूं। और शायद जिन-जिन लोगों ने उनके साथ काम किया है, वो सबको ये सौभाग्य प्राप्त हआ होगा। मेरे लिए एक बहुत बड़ी अमानत है, जो अमानत मेरी व्यक्तिगत बहुत बड़ी पूंजी है और इसके लिए भी मैं उनका बड़ा आभारी हूं।
आज यहां कई रिपोर्ट्स वगैरह सबमिट किए गए। राष्ट्रपति भवन को लोक-भवन बनाना, ये इसलिए संभव हुआ कि प्रणब दा धरती से जुड़े हुए, जनता के बीच से उभरे हुए, उन्हीं के बीच में रहकर अपना राजनीतिक यात्रा करने के कारण; लोक-शक्ति क्या होती है, लोक-भावनाएं क्या होती हैं- उसको उन्हें किताबों में पढ़ने की जरूरत नहीं थी। उसको अनुभव भी करते थे और उसको लागू करने का भी प्रयास करते थे, उसी का कारण था कि भारत का राष्ट्रपति भवन लोक-भवन बन गया। जनता-जनार्दन के लिए एक प्रकार से इसके द्वार खुल गए।
स्वयं इतिहास के विद्यार्थी रहे हैं। और मैंने देखा है कि इतिहास की हर घटना उनकी उंगलियां पर होती हैं, कभी विषय निकालो तो वो तिथिवार बता देते हैं। लेकिन वो ज्ञान को, इतिहास के माहत्मय को आगे कैसे ले जाया जाए और ये राष्ट्रपति भवन में जिस प्रकार से, अभी ओमिता जी पूरी रिपोर्ट दे रही थीं, बहुत बड़ा इतिहास के लिए अमूल्य खजाना तैयार हुआ है उनके कार्यकाल में। और मैं कह सकता हूं कि यहां के पेड़ हों, पंथी हो, पत्थर हो; हर किसी के लिए कुछ न कुछ इतिहास है, हर किसी की अपनी विशेषता है और वो सारी किताबों में अब उपलब्ध है।
ये बहुत बड़ा काम यहां हुआ है। और मैं इसके लिए उनके और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं फिर एक बार प्रणब दा को लम्बी आयु के लिए शुभकामनाएं देता हूं, और उनका उतना लंबा तवज्जो, लम्बा अनुभव, उनकी नई पारी में भी मुझ जैसे लोगों को व्यक्तिगत रूप से, और देश को स्वाभाविक रूप से हमेशा ऐसा उपकारक होता रहेगा, ये मेरा विश्वास है।