जनजीवन ब्यूरो / पटना : पूरे देश में मोदी लहर रहने के बावजूद साल 2015 के विस चुनाव में भाजपा 14 जिलों में खाता तक नहीं खोल पाई थी. महागठबंधन की ताकत के सामने भाजपा की परंपरागत सीटों पर भी पराजय हो गयी थी. शिवहर, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, मुंगेर, शेखपुरा, भोजपुर, जहानाबाद, अरवल व बक्सर में उसके दिग्गज उम्मीदवार परास्त हो गये थे.
14 जिलों की 61 सीटों पर महागठबंधन के जदयू, राजद व कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत हुई थी और सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया था. इस बार के चुनाव में एनडीए के निशाने पर राजद व कांग्रेस है. इनमें 31 सीटों पर इन्हीं दो दलों का कब्जा है. कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां के विधायक अब सांसद बन चुके हैं. भोजपुर जिले की एक सीट तरारी पर भाकपा-माले को जीत मिली. इस बार के चुनाव में भाजपा अपनी परंपरागत सीटों पर जीत की रणनीति बना रही है. सीटों के बटवारे में उसे जो भी क्षेत्र मिले, पर इस बार उसके निशाने पर राजद ही होगा.
भागलपुर में जहां अश्वनि चौबे के बेटे की पराजय हुई थी. वहीं, आरा की सीट पर विस के पूर्व उपाध्यक्ष अमरेंद्र प्रताप सिंह भी चुनाव में पराजित हो गये थे. भाजपा इस बार अपनी खोयी ताकत पाने को बेताब है. जदयू व लोजपा के साथ गठबंधन में राजद की कब्जे वाली सीटों को पाने के लिए रणनीति बन रही है. किशनगंज की सीटों पर जदयू व कांग्रेस का पलरा भारी रहा था.
वहीं, कोसी की सीटों पर जदयू की जीत हुई थी. मधेपुरा की चार में तीन सीटें जदयू को व एक सीट सिंहेश्वर राजद की जीत हुई. इसी प्रकार सहरसा जिले की चार सीटों में दो पर जदयू व दो पर राजद का कब्जा रहा. भाजपा के खाते में इन जिलें की एक भी सीटें नहीं आयी. भाजपा को बढ़त चंपारण की सीटों पर मिली थी. जहां की अधिकतर सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते थे.