नाजियों की तरह मुसलिम समुदाय के खिलाफ यहूदियों जैसा भविष्य तैयार करने की लगातार कोशिश कर रहे एक चैनल के झूठ-फरेब और नफरत से भरे कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने का सुकून भरा फैसला किया है.
जसविंदर सिद्धू
कोराना की मार, देश की जर्जर होती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, चीन के साथ सीमा विवाद और आपस में दिलों में बढ़ चुकी दूरियों के बीच बेहद बुरे दौर में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुकून भरा फैसला सुनाया.
नाजियों की तरह मुसलिम समुदाय के खिलाफ यहूदियों जैसा भविष्य तैयार करने की लगातार कोशिश कर रहे एक चैनल के झूठ-फरेब और नफरत से भरे कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने का फैसला किया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वह प्रेस की आजादी के नाम पर भाईचारे को खराब करने के लिए किसी एक समुदाय के खिलाफ टिप्पणीयों की इजाजत नहीं दे सकती और कोई भी एक समुदाय को निशाना नहीं बना सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह सच पर आधारित नहीं है कि जामिया के छात्रों का सिविल सेवाओं में आना एक साजिश का हिस्सा है. इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती. ऐसा करते समय आप संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की प्रतिष्ठा को भी कलंकित करते हैं”.
चैनल ने अपने प्रोमों में कार्यक्रम को “यूपीएससी जिहाद” के तौर पर प्रचारित किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने समय लिया लेकिन इस तरह की फर्जी खबरे फैलाने के वाले इस चैनल के खिलाफ अहम फैसला किया. लेकिन चिंतित करने वाला है कि इस कार्यक्रम के विरोध के बावजूद सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इसके प्रसारण की मंजूरी दी थी.
यकीनी तौर पर एक समुदाय के खिलाफ माहौल बना कर किसी राजनैतिक पार्टी को फायदा हो सकता है लेकिन सभी को इस मुद्दे पर अपने जहन पर जोर डालना चाहिए कि क्या यह देश के हित में है!
साफ है कि जो भी मुसलिमों के खिलाफ हो रही हिंसा का समर्थन करते हैं, वह 1984 में सिख विरोधी दंगांईयों के साथ भी खड़े हैं. वे गोदरा में ट्रेन में आग लगाने वालों का भी समर्थन करते हैं. उऩके लिए उसके बाद हुए गुजरात के दंगों में कोई बुराई नहीं है होगी.
किसी एक समुदाय से नफरत भारत जैसे देश के ताने-बाने को तार-तार करने की दिशा में अंधा कदम है. इसे रोकना जरुरी है. सरकार को इसके बारे में पहल करनी चाहिए. सबका साथ, सबका विकास. यही नारा था इस सरकार का. ऐसे में सभी समुदायों की रक्षा सरकार का दायित्व है. यह राजधर्म का हिस्सा है.
किसी एक खास समुदाय के खिलाफ जहर उगलने और उसे निशाना बनाने का कोई ठोस कारण साफ दिखाई नहीं देता.
अगर विश्व भर में फैला आतंकवाद अपने दूसरे समुदाय के पड़ोसी के घर को फूंक कर या उसकी हत्या करके खत्म होता तो आतंवाद कब का क्रब में होता.
जिस तरह का देश में नफरत का माहौल बना है, उसे आग देने और उसका समर्थऩ करने वाले एकबारगी अपने आसपास जरुर देखें.
अगली बार जब वे अपने बच्चे का प्राइमरी स्कूल या कॉलेज में एडमीशन करवाने जाएं तो एक बार जरुर आंकलन करें की उनके सामने फैसले लेने वाला कौन खड़ा है और क्यों अपने ही मुल्क में एडमीशन लेने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. सिफारिशें लगानी पड़ती. लाखों की डोनेशन देना मजबूरी बन जाती है !
या फिर समझने का कोशिश करें कि जिस कोरोना का इलाज सरकारी अस्पतालों में 8-10 हजार में हो रहा है, प्राइवेट हॉस्पिटल 10-15 लाख क्यों ले रहे हैं और उनके मालिक कौन है! इस सब में कोई एक समुदाय नहीं, सभी पिस रहे हैं.
कोराना देश की आजादी के बाद का सबसे बड़ा संकट है. इसमें देश और और उसके नागरिकों की बीमारी को कैश करने वाला हर कोई आज देश का सबसे खालिस दुश्मन है.
हम सभी को मिलकर उससे लड़ना है, ना कि आपस में.