जनजीवन ब्यूरो / लखनऊ । बलात्कार व छेड़छाड़ करने वालों से निपटने के लिए यूपी की योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार के इस फैसले के तहत महिलाओं से छेड़खानी, दुर्व्यवहार या बलात्कार करने वालों के पोस्टर शहरों के चौराहे पर लगाए जाएंगे। योगी ने कहा कि कहीं भी महिलाओं के साथ कोई आपराधिक घटना हुई तो संबंधित बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सीओ जिम्मेदार होंगे। माना जा रहा है कि इससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
सीएम योगी ने कहा कि महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वाले अपराधियों को महिला पुलिस कर्मियों से ही दंडित कराओ। ऐसे अपराधियों और दुराचारियों के मददगारों के भी नाम उजागर करने का आदेश दिया।
सीएम योगी ने कहा कि महिलाओं और बच्चियों के साथ किसी भी तरह की घटना को अंजाम देने वालों को समाज जाने, इसलिए चौराहों चौराहों पर लगाओ ऐसे अपराधियों के पोस्टर लगवाएं।
इस आदेश के तहत अब महिलाओं से दुर्व्यवहार करने वालों को महिला पुलिसकर्मियों से ही दंडित कराया जाएगा। सरकार का कहना है कि ऐसा कदम इसलिए उठाया जा रहा है जिससे कि महिलाओं व बच्चियों से दुर्व्यवहार करने वालों को पूरा समाज जान सके।
सरकार का मकसद है कि दुराचियों के नाम व पहचान उजागर की जाए। सरकार का दावा है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए एंटी रोमियो स्क्वायड ने बेहतरीन काम किया है। स्क्वायड ने मनचलों और महिलाओं के साथ अपराध करने वालों की कमर तोड़ दी है। इसी तर्ज पर हर जनपद की पुलिस को काम करने की जरूरत है।
हिंसा करने पर लगे थे पोस्टर
बता दें कि ये काम उसी तर्ज पर किया जाएगा जैसे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले आरोपियों के पोस्टर शहरों के प्रमुख चौराहों पर लगाए गए थे।
राज्य सरकार ने भरपाई उपद्रवियों से करवाए जाने की बात कही थी। इसके बाद पुलिस ने फोटो-वीडियो के आधार पर 150 से अधिक लोगों को नोटिस भेजे थे। इनमें जांच के बाद मिले सबूतों के आधार पर प्रशासन ने 57 लोगों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया था।
कोर्ट पहुंचा था मामला
पोस्टर लगने के बाद मामला हाईकोट पहुंचा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की विशेष पीठ ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को सीएए के विरोध में उपद्रव करने वालों के लगाए गए पोस्टर अविलंब हटाने के आदेश दिए थे।
विशेष खंडपीठ ने 14 पेज के फैसले में राज्य सरकार की कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार (मौलिक अधिकार) के विपरीत करार दिया था। अदालत ने कहा था कि मौलिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है। ऐसा कोई भी कानून नहीं है जो उन आरोपियों की निजी सूचनाओं को पोस्टर-बैनर लगाकर सार्वजनिक करने की अनुमति देता है, जिनसे क्षतिपूर्ति ली जानी है।
इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई ।