नई दिल्ली । बिहार में विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगरमी बढ़ गई है.सत्तारुढ़ जनता दल यू यानि जदयू व भाजपा को जहां नीतीश कुमार से चुनावी नैया पार लगने की उम्मीद लगी हुई है वहीं राष्ट्रीय जनता दल यानि राजद को लालू प्रसाद यादव से. चुनाव में कांग्रेस को अपने प्रदेश अध्यक्ष से बहुत बड़ी आस लगी हुई है क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदनमोहन झा ना सिर्फ लालू यादव बल्कि नीतीश कुमार जैसे कद्दावर नेता माने जाते हैं. चुनाव आयोग ने तो चुनाव की घोषणा 25 सितंबर को की है लेकिन कांग्रेस पार्टी ने चुनाव की तैयारी साल 2018 से ही कर चुकी है. बिहार में अपनी स्थिति सुधारने का ख्वाब देख रही कांग्रेस ने भी राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए काफी पहले ही अपनी गोटियां बिठानी शुरू कर दी थी. माना जाता है कि इसी वजह से पार्टी संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए कांग्रेस हाईकमान ने मदन मोहन झा को प्रदेश की कमान सौंपी थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री डॉ. मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का असर पूरे मिथिलांचल में पड़ा है. मिथिलांचल की राजधानी दरभंगा से पहली बार किसी व्यक्ति को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपी गई है. जिसके कारण लोगों में काफी प्रसन्नता है, समझा जाता है कि पीढ़ी से कांग्रेसी एवं सदा पार्टी के प्रति समर्पित होने के कारण डॉ. झा को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. माना जा रहा है कि कांग्रेस ने डॉ. झा के माध्यम से पूरे ब्राह्मण समाज को अपने ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है. बिहार में करीब 8 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. कांग्रेस का ये परंपरागत वोट माना जाता था, लेकिन बीजेपी के उभार के बाद ये वोट कांग्रेस से छिटक गया था. अब कांग्रेस अपना खोया जनाधार वापस लाना चाहती है.
मदन मोहन झा के जरिए कांग्रेस ने बिहार के ब्राह्मण मतदाताओं को साधने की रणनीति बनाई है. आरजेडी जहां यादव, मुस्लिम, दलित और ओबीसी मतों को साधने में जुटी है. वहीं कांग्रेस ने अपने ब्राह्मण कार्ड के जरिए महागठबंधन के मतों को और मजबूत करने की कोशिश की है.
मदन मोहन झा का असर
डॉ. झा को बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का असर नीतीश कुमार व राजद पर भी पड़ा. नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में किसी भी ब्राह्मण को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन डॉ. झा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश कुमार को संजय झा को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए वाध्य होना पड़ा.
यादवों की पार्टी के लिए मशहूर और भूरा बाल साफ करने का नारा देने वाली राजद भी अपनी सोच में बदलाव लाई और ब्राहमणों पर डोरे डालने के लिए डॉ. मनोज झा को राज्यसभा भेजा. यानि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार के दो और ब्राह्मणों की नैया पार कर दी.
समर्पण से मिला सम्मान : पार्टी में पूर्ण समर्पण के कारण ही डॉ. मदन मोहन झा को कांग्रेस ने सम्मान दिया. प्रदेश में 2005 के चुनाव में डॉ. झा के ऊपर कांग्रेस छोड़ने का बहुत दबाव था. उनके परिवार से लेकर सभी शुभचिंतक उन्हें कांग्रेस छोड़ने के लिए कह रहे थे. दूसरी ओर नीतीश कुमार की ओर से भी उन्हें पार्टी में शामिल होकर चुनाव लड़ने को कहा था. लेकिन, डॉ. झा नहीं माने. उनका कहना था कि उनके पिताजी आजीवन कांग्रेसी रहे. अगर वे कांग्रेस छोड़ेंगे तो उनकी आत्मा को कष्ट होगा. फिर उन्होंने भी अपना संपूर्ण जीवन जो इस पार्टी के लिए समर्पित किया था उसका भी कोई महत्व नहीं रहेगा.
मदन मोहन का राजनीतिक सफरनामा
डॉ. झा के पिता स्व. डॉ. नागेंद्र झा कांग्रेस के कदावर नेता रहे हैं. प्रदेश में कई बार मंत्री बने. लेकिन, शिक्षा मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल काफी चर्चित रहा. नारी शिक्षा के प्रति काफी संवेदनशील रहे स्व. डॉ. झा संयुक्त बिहार में प्रोजेक्ट गर्ल्स हाई स्कूल खोलकर अभी ¨जिदा बने हुए हैं। स्व. डॉ. झा 1967 से 1985 तक मनीगाछी विधान सभा के सदस्य रहे. अपने जीवन में स्व. झा को कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा. 1985 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्व. राजीव गांधी ने बुजुर्ग नेताओं को टिकट काट दिए. लेकिन, उनके उस समय स्व. झा के पुत्र डॉ. मदन मोहन झा को मनीगाछी से टिकट मिल गया. वे दो टर्म यानी 1985 से 1995 तक मनीगाछी के विधायक रहे. लेकिन, 1995 के चुनाव में ललित कुमार यादव से उन्हें हारना पड़ा.
सियासत के आंगन में पले मदन मोहन झा ने छात्र जीवन से राजनीति में कदम रख दिया था. उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के जरिए अपनी सियासी पारी को आगे बढ़ाया. 1985 से 1995 तक विधायक रहे. 2014 में कांग्रेस ने उन्हें विधान परिषद पहुंचाया. वे शिक्षक कोटे से एमएलसी चुने गए थे. उनका निर्वाचन क्षेत्र दरभंगा शिक्षक था. एमएलसी का उनका कार्यकाल 9 अप्रैल 2020 को समाप्त हो चुका है. मदन मोहन झा कांग्रेस के भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के राष्ट्रीय महासचिव रहे. इसके बाद वे बिहार प्रदेश युवक कांग्रेस के महासचिव बने. बाद में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव और फिर उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उठाई.