जनजीवन ब्यूरो / पटना। बिहार में चुनावी शंखनाद हो चुका है। एनडीए और महागठबंधन के साथ ही दूसरे दल और गठबंधन जोर-आजमाइश में जुटे हैं। सबकी कोशिश अधिकाधिक सीटें जीतने की है। मगर, बिहार की सात सीटें ऐसी हैं, जिन पर पिछली बार कांटे की टक्कर थी। हार-जीत का फासला महज 850 वोटों से भी कम था। दो सीटों पर तो यह अंतर 500 वोटों का भी नहीं था। इस बार भी इन सीटों पर सबकी निगाहें रहेंगी। हालांकि अबकी बार दलीय परिस्थितियां पहले से जुदा हैं और कई जगह लड़ाके भी बदल जाएंगे।
वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो राज्य में ऐसी सात सीटें थीं जहां कोई जीतते-जीतते हार गया था। वहीं किसी के सिर अप्रत्याशित रूप से जीत का सेहरा बंधा था। इन सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम था। इनमें पहली सीट है चनपटिया, जहां हार-जीत का अंतर महज 464 वोट का था। वहां बीजेपी के प्रकाश राय ने जेडीयू के एनएन शाही को हराया था।
बीजेपी उम्मीदवार को 61304 वोट और जदयू प्रत्याशी को 60840 वोट मिले थे। शिवहर सीट पर जदयू के सैफुद्दीन ने 461 वोटों से जीत दर्ज की थी। उन्होंने जीतनराम मांझी की पार्टी हम की प्रत्याशी लवली आनंद को मामूली अंतर से पराजित किया था।
बरौली विधानसभा सीट पर तो जीत का अंतर महज 504 वोट का रहा था। यहां आरजेडी के मोहम्मद नेमतुल्लाह को 61690 वोट तो दूसरे नंबर पर रहे बीजेपी के रामप्रवेश राय को 61186 वोट मिले थे। आरा सीट पर राजद के मोहम्मद नवाज आलम ने भाजपा के अमरेंद्र प्रताप सिंह को सिर्फ 666 वोटों से शिकस्त दी थी। जबकि चैनपुर विधानसभा सीट पर 671 वोटों से जीत-हार का फैसला हुआ था। इस सीट पर बीजेपी के ब्रजकिशोर बिंद ने बसपा के मोहम्मद जमा खान को शिकस्त दी थी।