जनजीवन ब्यूरो / पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में यादव वोटबैंक को लेकर असली संग्राम शुरू हो गया है. एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और बीजेपी ने टिकट बंटवारे में यादवों पर जमकर दांव खेला है. खासकर जेडीयू ने इस बार के चुनाव में 18 यादव प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. वहीं बीजेपी ने पहले चरण के लिए 27 उम्मीदवारों की लिस्ट में सबसे अधिक 16 सीटों पर सवर्ण चेहरों पर भरोसा जताया है. पहले चरण के लिए बीजेपी ने अब तक सिर्फ तीन सीटों पर यादव प्रत्याशियों पर दांव खेला है. बीजेपी ने 7 टिकट राजपूत, 6 भूमिहार और 3 ब्राह्मणों को टिकट दिया है. वहीं, आरजेडी ने पहले चरण की 41 सीटों के लिए सबसे ज्यादा भरोसा यादवों पर दिखाया है. आरजेडी ने सबसे अधिक 23 पिछड़े समुदाय के कैंडिडेट उतारे हैं, जिनमें से 20 यादव हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में तेजस्वी यादव अपने परंपरागत वोटबैंक को संभाल पाएंगे?
समझिए आरजेडी की यादव पॉलिटिक्स को
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यादवों का एक वर्ग तेजस्वी यादव के द्वारा कुछ अगड़ी जातियों को साथ लेने से नाराज है. खासकर भूमिहार और ब्राह्मण जातियों पर तेजस्वी यादव अप्रत्यक्ष तौर पर मेहरबान हैं, जिसका फायदा जेडीयू विशेषतौर पर उठाना चाह रही है. हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘पहले चरण के चुनाव के लिए महागठबंधन ने टिकट बंटवारे में समाजिक संतुलन का विशेष ख्याल रखा है. महागठबंधन के टिकट बंटवारे में फारवर्ड और बैकवर्ड दोनों में सामंजस्य रखा गया है. महागठबंधन में आरजेडी ने कांग्रेस को ऊंची जातियों को साधने की जिम्मेवारी दी है. कांग्रेस ने पहले चरण के लिए अपने हिस्से में आई अधिकांश सीटों पर ऊंची जातियों के उम्मीदवारों को तवज्जो दिया है. साथ ही महागठबंधन के और घटक दल सीपीआई और सीपीएम ने भी टिकट बंटवारे में अगड़ी जातियों को तवज्जो दिया है. आरजेडी ने खुद एक भूमिहार और एक ब्राह्मण को टिकट दे कर यादवों को मैसेज दे दिया है कि वह यादव और मुस्लिम पर अभी भी ज्यादा भरोसा करते हैं.’
बीते 30 सालों से आरजेडी का मजबूत वोटबैंक रहा यादव
गौरतलब है कि पिछले 30 सालों में बिहार में हुए सभी चुनावों का रिकॉर्ड खंगालने पर पता चलता है कि यादव वोटरों पर लालू प्रसाद यादव का दबदबा रहा है. बीजेपी में भी यादव जाति के कई नेताओं की मौजूदगी के बावजूद आरजेडी का पलड़ा भारी रहता है. बीजेपी में नित्यानंद राय, नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव और हुकुमदेव नारायण यादव जैसे नेताओं की मौजूदगी के बावजूद आरजेडी यादव वोटरों पर 20 ही साबित होती है. वही हाल जेडीयू का भी है. विजेंद्र यादव जैसे बड़े नेता के बावजूद जेडीयू यादव वोटरों पर प्रभाव नहीं छोड़ पाई है. हालांकि, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की आंधी ने इस समीकरण को तोड़ दिया था, लेकिन विधानसभा चुनावों में यादव वोटर लालू यादव के साथ गोलबंद रहे हैं.
पिछले विधानसभा में 61 यादव जाति के MLA
पिछले बिहार विधानसभा चुनावों में यादव जाति का विधानसभा में दबदबा रहा है. विधानसभा चुनाव 2015 में 61 यादव विधायक जीत कर आए थे. यानी विधानसभा का हर चौथा विधायक यादव था. इस लिहाज से देखें तो इस बार भी यादवों का दबदबा होने की संभावना है, क्योंकि सभी पार्टियों ने यादवों पर जमकर दांव खेला है.