जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। विकास और जंगलराज के नारे के बीच शुरु होने वाले बिहार चुनाव को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने ब्राहमण बनाम यदुवंशी करार देकर ‘महाभारत’ बना दिया है। आरक्षण का खौफ दिखाते हुए लालू यादव ने यदुवंशियों को अपने झंडे के नीचे एकजुट करने का प्रयास कर रहे हें। लेकिन ऐसा नहीं है कि बिहार की राजनीति में जब से लालू चमके हैं तब से हमेशा यदुवंशियों ने उनका साथ निभाया है। क्योंकि 2०14 में उनका प्रदर्शन मायूसी भरा था।
हालांकि बिहार की राजनीति में जातिवाद का जोर शुरू से रहा है, तब भी जब लालू, पासवान या नीतीश का नामोनिशान भी नहीं था। चुनाव के समय जातिवाद अपने वीभत्स रूप में दिखता है। लेकिन इस बार मोहन भागवत ने आरक्षण की नई बहस छेड़कर बिहार की जातिवादी ज्वाला को ज्वालामुखी में तब्दील कर दिया है। 2०15 का चुनाव पूरी तरह से जातिवादी-युद्ध बन चुका है। इसीलिए लालू यादव अब इसे खुल्लमखुल्ला अगड़ों-पिछड़ों की महाभारत बता रहे हैं। उनका नारा है यदुवंशियों का एकजुट रहना।
ऊपर-ऊपर हरेक पार्टी जातिवादी रूढ़ियों को तोड़ने की बात करती है। लेकिन अंदर ही अंदर सभी जातिगत जहर वाली भट्ठी को हवा देने में लगी हैं, ताकि उसकी आग चुनाव तक खूब जमकर धधकती रहे। बिहार के चुनाव का ऐसा ही चेहरा कहीं बाह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ और बनियों जैसी सर्वणों की जातियों के रूप में मुखरित होता है तो कहीं पिछड़े, दलित, महादलित और इन सबकी उपजातियों के रूप में एकता दिखाने की कोशिश होती है।
लालू ने ‘बिहार चुनाव को अगड़ों और पिछड़ों के बीच होने वाला धर्म-युद्ध’ करार देते हुए ब्राह्मणों के खिलाफ भी बिगुल फूँक दिया है। यदुवंशियों को आगाह करते फिर रहे हैं कि ‘जाग जाओ और ब्राह्मणों के खिलाफ एकजुट हो जाओ’। लालू ने ताल ठोककर कहा है कि आरएसएस में ब्राह्मण भरे पड़े हैं, यही ब्राह्मण आरक्षण को खत्म करना चाहता है। उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत को जिस खांटी देसी अंदाज में ललकारा है,वैसा कहने की जुर्रत पहले कभी किसी नेता ने नहीं की। बकौल लालू, ये लड़ाई है पिछड़े और अगड़े की। लालू ने कहा है कि मैंने मोहन भागवत को कह दिया है कि मूंछ में दम है तो आरक्षण खत्म करो। ये तिरंगा नहीं भगवा झंडा फहरानाचाहता है। लालू की मुहावरों और कहावतों के इस्तेमाल वाली शैली जनमानस पर बहुत गहरी मार करती है। माँ का दूध पीया है तो… और मूंछ में दम है तो… ये दोनों ही हिंदी पट्टी में ललकारने के लिए इस्तेमाल होने वाला सर्वोच्च कोटि का मुहावरा है। लालू ने अपने प्रचार का सारा फोकस जंगलराज से यदुवंशी एकता की ओर घुमा दिया है। इसके लिए उन्हें मोहन भागवत को ताजा बयानों और उसे लेकर संघ और भाजपा की ओर से पेश हुई साफ-सफाई ने भरपूर खुराक दे दी है। इसी खुराक से लालू अब जमीन पर चलने के बजाय हवा में उड़ने लगे हैं, क्योंकि उन्हें अब ये दिखने लगा कि उनका यदुवंशी वोट बैंक उनकी बातों में अपने लिए गौरव ढूंढ़ने में सफल हो रहा है।
इससे लालू के उलट मोदी समर्थकों की दलील अब पस्त पड़ने लगी हैं। वो घूम-फिरकर सिर्फ इस बात पर अटक जाते हैं कि भाई, इस बार तो बदलाव होना ही चाहिए। बदलाव के अलावा राजग खेमे में कोई बात ऐसी नहीं है जो सर्वणों को भी बहुत लुभा रही हो। बाकि सारे कलंक और खूबियाँ दोनों ही खेमों में एक जैसी ही हैं। सियासी दीन-ईमान के मोर्चे पर दोनों खेमे के पास कोई निराली बात नहीं है। चुनावी वादों के लिहाज से दोनों ही खेमों ने एक से बढ़कर एक बातें उछाली हैं। कोई भी सच के करीब नहीं है। जातीय तुष्टिकरण का ख्याल रखते हुए सभी पार्टियों ने टिकट बांटे हैं। जातीय उन्माद चरम ही ओर बढ़ रहा है। इसीलिए लालू का पूरा जोर यदुवंशी एकता पर है।
ये भी नहीं माना जा सकता है कि लालू को यदुवंशी अपना इकलौता क्षत्रप मानेंगे और भाजपा या पप्पू यादव जैसे नेताओं को कोई यदुवंशी समर्थन नहीं मिलेगा। विभिन्न धड़ों के यदुवंशी उम्मीदवारों में कहीं-कहीं जातिगत वोटों का बंटवारा भी होगा, लेकिन वो पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार की अपनी छवि पर निर्भर करेगा।