जनजीवन ब्यूरो / पटना : बिहार चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को जीत दिलाने पहुंचे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दावा किया कि बिहार में कांग्रेस 50 से अधिक सीटें जीतेगी और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री होंगे। सरकार बनने के बाद महागठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में जो भी वादे किये गये हैं उसे शब्दश: लागू किया जाएगा। कांग्रेस जो कहती है, उसे करती है, देखना हो एक बार छत्तीसगढ़ जरूर आएं। वहां किसानों से गोबर तक दो रुपये किलो सरकार खरीदती है। हर किसान को सरकार दस हजार रुपये प्रति एकड़ देती है। समर्थन मूल्य पर अनाज भी खरीदती है। 19 लाख किसानों का दस हजार करोड़ रुपये माफ किया गया। बिहार में तो अनाज की तय सरकारी कीमत भी नहीं मिलती है।
बघेल रविवार को सदाकत आश्रम में कांग्रेस का अभियान गीत ‘बोले बिहार, बदले सरकार’ लांच करने के बाद प्रेसवार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बिहार का इतिहास स्वर्णिम रहा है। आरोप लगाया कि सुशासन बाबू (नीतीश कुमार) ने बदहाल बना दिया। राज्य रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा सहित सभी मामलों में सबसे निचले पायदान पर है। जनता सवाल पूछ रही है। पीएम नरेन्द्र मोदी को झटका देने की आदत है। नोटबंदी, जीएसटी और अब लॉकडाउन। बिना सोचे-समझे लॉकडाउन से परेशानी ऐसी बढ़ी कि दिल्ली की सड़कों पर लोग उतर आये। 17 लाख मजदूर बिहार लौटकर आए।
बघेल ने कहा कि बाजार समितियों को भंग करने से किसानों को क्या लाभ हुआ, कोई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछे। इसी का अनुकरण केन्द्र कर रहा है। सरकार किसानों को उन्हीं के खेत में मजदूर बना देना चाहती है। छोटे व्यापारी को चंद बड़े व्यापारियों का एजेन्ट बनना होगा। एक बड़े व्यापारी ने तैयारी अभी से शुरू कर दी है। नागपुर में एक लाख टन का गोदाम भी तैयार कर लिया। व्यापारी खेत से लेकर सारे मेड़ तोड़ देंगे। किसान अपना खेत भी भूल जाएंगे। अगर सरकार किसान का हित चाहती है तो कानून में यह प्रावधान करे कि समर्थन मूल्य से कम पर किसी को खरीद करने नहीं दिया जाएगा।
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। जो आज साथ हैं कल विरोधी हो सकते हैं और जो कल तक धुर विरोधी थे वे कभी भी साथ आ सकते हैं। बिहार की राजनीति में महागठबंधन का हिस्सा बनकर कांग्रेस, मंडल राजनीति से पहले के दौर जैसी मजबूत स्थिति में लौटने के लिए कसमसा रही है। 2015 में 41 सीटों पर लड़कर 27 सीटें जीत लेने से उसके हौसले बुलंद हैं। राजनीति का यह संयोग भी दिलचस्प है कि मंडल राजनीति के जिस दौर मे प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया था, उस दौर के नायक रहे लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने ही आज महागठबंधन की कमान सम्भाल रखी है। अब देखना ये है कि लालू के लाल का समर्थन पाकर कांग्रेस अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में किस हद तक कामयाब हो पाती है।
2015 के चुनाव परिणामों से मिले अनुकूल संकेतों ने पार्टी के रणनीतिकारों को नई उम्मीद से भर दिया है। देश की आजादी के बाद के पांच दशकों मे ज्यादातर वक्त तक बिहार पर कांग्रेस ने राज किया। 1952 से 2015 तक बिहार के 23 मुख्यमंत्रियों में से 18 कांग्रेेस के हुए। लेकिन 90 के दौर में मंडल की सियासत ने नए सामाजिक समीकरणों की ऐसी बयार बहाई कि सूबे से कांग्रेस का तंबू-कनात उखड़ गया। तबसे आज तक पार्टी कभी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। हालांकि आगे चलकर राममंदिर आंदोलन के साथ भाजपा की बढ़त ने समीकरणों में ऐसा उलट-फेर किया कि बिहार में कांग्रेस विरोध और मंडल सियासत की बयार बहाने वाले लालू यादव केंद्र में कांग्रेस और यूपीए के सबसे बड़े संकटमोचकों में शुमार हो गए। लालू तबसे यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के हिमायती बने हुए हैं। यहां तक कि बिहार में राजद और कांग्रेस के गठबंधन को अब प्राकृतिक और स्वाभाविक गठबंधन की संज्ञा दी जाने लगी है।
मंडल सियासत में अलग-थलग पड़ गई कांग्रेस, बंट गया वोट बैंक
मंडल की सियासत में कांग्रेस राज्य में बिल्कुल अलग-थलग पड़ गई। उसका वोट बैंक पहले जनता दल फिर नीतीश और लालू की अगुवाई में उससे अलग हुए जनता दल यू और राजद में बंट गया। 1989 के भागलपुर दंगे से पहले मुस्लिम कांग्रेस के लिए ही वोट करते थे। बाद के समय में लालू यादव ने अपना ‘माय’ समीकरण बनाया और मुस्लिम वोटरों में अपनी गहरी पैठ बना ली। मुस्लिम उधर गए तो सवर्णों ने भाजपा का रुख कर लिया। राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में ऐसा होने की वजह कांग्रेस का असमंजस था। कांग्रेस तय नहीं कर पाई कि वह सवर्णों का साथ दे या पिछड़ों के साथ खुलकर खड़ी हो जाए। उधर, राममंदिर आंदोलन के चलते भाजपा की अगुवाई में एक नए तरह का ध्रुवीकरण हुआ और जनता यू और राजद ने अपने-अपने आधार वोट बैंक पर फोकस कर लिया। लिहाजा, अगले चुनावों में कांग्रेस बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होती चली गई।
तीन दशक बाद जमीन तैयार करने की कवायद
तीन दशक के बाद बिहार में कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी जमीन तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है। पार्टी, जद यू और राजद से नाराज वोटरों को अपना बनाने और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशों में पिछले कई वर्षों से जुटी है। वर्ष 2015 के चुनाव में इसका असर भी दिखा जब महागठबंधन में मिलीं 41 सीटों पर लड़कर कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत हासिल की।