जनजीवन ब्यूरो/ पटना । जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के बाद राज्यसभा सांसद व मुंगेर पुलिस फायरिंग के विवादास्पद एसपी लिपि सिंह के पिता रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी RCP Singh पार्टी में नंबर दो पर हैं। चुनावों में रणनीति तय करना, प्रदेश की अफसरशाही को कंट्रोल करना, सरकार की नीतियां बनाना और उनको लागू करने जैसे सभी कामों का जिम्मा आरसीपी सिंह के कंधों पर है।
आरसीपी सिंह, नीतीश कुमार के अच्छे दोस्त ही नहीं हैं बल्कि, उनके बड़े सियासी सलाहकारों में शामिल हैं।
दरअसल, मुंगेर में 26 अक्टूबर की रात दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस-पब्लिक के बीच झड़प और पुलिस फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हुई और कई लोग घायल हो गए। उस समय जिले की एसपी लिपि सिंह थीं, जो कि आरसीपी सिंह की बेटी हैं। लिपि सिंह पर आरोप लगे कि उनके ही आदेश पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक शख्स की मौत हुई। इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए और लिपि सिंह पर कार्रवाई की मांग की गई। घटना के बाद भी कार्रवाई नहीं होने पर 29 अक्टूबर को एक बार फिर मुंगेर में जमकर हंगामा देखने को मिला। नाराज लोगों ने आगजनी और तोड़फोड़ की। बवाल बढ़ने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई करते हुए तुरंत ही एसपी लिपि सिंह और डीएम राजेश मीणा को हटा दिया और नए अधिकारियों की तैनाती की। जिसके बाद हालात सामान्य हुए।
राज्यसभा सांसद और पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार
मुंगेर मामले में एसपी लिपि सिंह पर कार्रवाई में देरी के पीछे लोगों का आरोप यही था कि उनके पिता आरसीपी सिंह जेडीयू के बड़े नेता हैं। नीतीश कुमार का करीबी होने की वजह से लिपि सिंह पर कार्रवाई में देरी हुई। विपक्षी पार्टियों ने भी इस मुद्दे को लेकर जेडीयू पर निशाना साधा। यही नहीं बेगूसराय में आरसीपी सिंह के दौरे के समय उन्हें आक्रोशित लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था। इतने विरोध के बाद भी अभी तक जेडीयू या फिर बीजेपी की ओर से आरसीपी सिंह को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई। इसी से उनकी जेडीयू में मजबूत पकड़ का अंदाजा लगाया जा सकता है।
1996 में पहली बार नीतीश कुमार के संपर्क में आए, फिर…
जेडीयू से राज्यसभा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार के बाद नंबर दो की हैसियत रखते हैं। चुनावों में रणनीति तय करना, प्रदेश की अफसरशाही को कंट्रोल करना, सरकार की नीतियां बनाना और उनको लागू करने जैसे सभी कामों का जिम्मा उनके कंधों पर है। इसीलिए अगर उन्हें ‘जेडीयू का चाणक्य’ भी कहा जाता है। यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी सिंह पहली बार नीतीश के संपर्क में तब आए जब वो 1996 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव के रूप में तैनात थे।
इसलिए गहरी होती गई नीतीश-आरसीपी सिंह की दोस्ती
नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच दोस्ती इसलिए भी गहरी हुई क्योंकि दोनों ही बिहार के नालंदा से हैं और एक ही जाति आते हैं। कहा ये भी जाता है कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह के नौकरशाह के तौर पर उनकी भूमिका से काफी प्रभावित थे। बाद में नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को अपने साथ ले आए। जब नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो सिंह को विशेष सचिव बनाया। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को साथ लेकर बिहार भी आए और प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद आरसीपी की जेडीयू में पकड़ मजबूत होने लगी। 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस लिया, फिर जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा के नामित किया। 2016 में पार्टी ने उन्हें फिर से राज्यसभा भेजा।