जनजीवन ब्यूरो / धनबाद : बेटी होने या पालने से लाचार एक मां भले ही अपने कलेजे के टुकड़े को कंपकंपाती ठंड में मंदिर के गेट पर छोड़ दिया । लेकिन गेट पर पड़ी उस बेटी को दो मां अपनाने को जद्दोजहद कर रही है। ठंड के कारण नवजात बच्ची की स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उस बच्ची को पाने के लिए दोनो महिलाएं अस्पताल के चौखट पर टकी टकी लगाई हुई हैं।
घटना के बारे में मिली जानकारी के अनुसार मंगलवार को तिसरा थाना क्षेत्र को गोल्डन पहाड़ी शिव मंदिर के गेट पर एक नवजात बच्ची लोगों को पड़ी दिखी। देखते ही देखते लोगों की भीड़ जमा हो गई। वहीं की रहनेवाली एक महिला ने उस बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया। इसी बीच तीसरा थाना की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। थाने में ही चौकीदार के पद पर तैनात महिला ने उस बच्ची को अपने गोद मे ले लिया। ठंड के चलते बच्ची की तबीयत बिगड़ गई थी।
बच्ची की स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए पुलिस ने बच्ची को एसएनएमएमसीएच अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया। अस्पताल में बच्ची का पीडियाट्रिक्स वार्ड के एनआईसीयू में इलाज चल रहा है। स्थानीय पिंकी देवी नाम की महिला और तीसरा थाना की चौकीदार जया देवी बच्ची को पाने की जिद में एनआईसीयू के बाहर आस लगाए खड़ी है। पिंकी देवी का कहना है कि ‘शादी के दस सालों बाद भी हमें कोई बच्चा नहीं हुआ है। ये बच्ची मुझे एक तरह से भगवान ने दी है। शिव मंदिर के गेट के पास बच्ची मुझे मिली है। मैं खुद इसे गाड़ी से यहां अस्पताल लेकर पहुंची हूं। मेरा कोई बच्चा नहीं है।स्वस्थ हो जाने पर मैं इसे ले जाऊंगी और सही से लालन पालन करूंगी।
वहीं तीसरा थाना की चौकीदार जया देवी का कहना है कि ‘मेरी बेटी को कोई बच्चा नहीं है। मैं इसे अपनी बेटी को इसके लालन पालन के लिए देना चाहती हूं।मेरी बेटी इस बच्ची का लालन पालन करने के लिए बेहद उत्साहित है।’
वहीं एसएनएमएमसीएच अधीक्षक डॉ एके चौधरी ने कहा है कि बच्ची का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। फिलहाल उसका इलाज चल रहा है। लावारिश बच्ची के बारे चाइल्ड वेलफेयर को सूचना दे दी गई है। वहीं इस पूरे मामले पर बाल कल्याण समिति के पदाधिकारी विद्योत्तमा बंसल ने कहा कि जिसे भी बच्ची को गोद लेना है उसे पहले सरकारी प्रकिया से गुजरना पड़ेगी। कारा(CARA) में उन्हें रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा। कारा उस परिवार की वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी करेगा। पूरी जांच के बाद ही बच्ची को कानूनी प्रक्रिया के तहत चुने गए परिवार को सौंपा जाएगा।
लेकिन नसीब देखिए, एक मां न जाने किन मजबूरियों के चलते अपनी बेटी को मंदिर के बाहर छोड़ गई। मजबूरी शब्द का इस्तेमाल हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कोई भी मां अपनी कोख के जन्में को कलेजे पर पत्थर रखकर ही छोड़ सकती है। लेकिन उसी बेटी के लिए अस्पताल के बाहर दो-दो माताएं आस लगाए बैठी हैं। बेटी तो बेटी होती है, जिसके आंगन में जाएगी उसमें खुशबू ही फैलाएगी।