जनजीवन ब्यूरो /नई दिल्ली: भारत में प्रचलित जाति व्यवस्था को समाप्त करने के उद्देश्य से जाने-माने समाज-सुधारक और सुलभ स्वच्छता आंदोलन के संस्थापक, डॉ विन्देश्वर पाठक ने कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है और इतिहास में पहली बार हम लोग इस बात की अनुशंसा करने जा रहे हैं कि जिस प्रकार से सविंधान के अंतर्गत स्वेच्छा से बिना किसी दबाव के कोई भी धर्म अपनाने की आजादी है उसी प्रकार से लोगों को स्वेच्छा से कोई भी जाति अपनाने की आजादी होनी चाहिए।
डॉ. पाठक ने जूम नेटवर्क के माध्यम से अपने व्याख्यान द्वारा अपने पथप्रदर्शक पहलुओं को याद करते हुए उनका जिक्र किया। जिसके माध्यम से उन्होंने जातिवाद और असमानता केबारे में सदियों से चली आ रही प्रथा की बात की और कहा कि यह असमानता हाल के वर्षों में भी चली आ रही है। पुनर्वासित महिलाओं ने अपने अनुभवों काआदान-प्रदान किया।
यह प्रयोग डॉ. पाठक ने राजस्थान राज्य के दो शहरों – अलवर एवं टोंक में उन महिलाओं के साथ किया, जो पहले मैला ढोने का कार्य करती थीं। उन्होंने उनको इस मैला ढोने के अमानवीय कार्य से निकालकर उन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर प्रदान दिया। उनको सशक्त करने तथा जीविका अर्जित करने के प्रयास के रूप में डॉ. पाठक ने राजस्थान के अलवर एवं टोंक में ‘नई दिशा’नामक कौशल विकास केंद्र स्थापित किया, जहाँ पूर्व में स्कैवेंजिंग का काम कर रहीं महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई, कढ़ाई-बुनाई, सिलाई, कालीन-बुनाई, नमदा हस्तकला, सौंदर्य-प्रसाधन तथा पापड़-अचार-जैसे खाद्य पदार्थ बनाने का प्रशिक्षण दिया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि जिनकी परछाईं से ही लोग दूर भागते थे, जिन्हें अछूत कहते थे, कुत्ता को छू सकते थे, लेकिन इन महिलाओं को नहीं, अब इनके द्वारा तैयार खाद्य पदार्थ ऊँची जाति के वे लोग भी खरीदते हैं, जिनके घरों में ये काम करती थीं। पहले ये लोग 200-300 रुपए ही प्रतिमाह तक कमा पाती थीं, लेकिन अब ये अच्छी कमाई करती हैं और अपना जीवनयापन सुखपूर्वक करती हैं।
जिन घरों में पहले ये पीछे के दरवाजे से मैला साफ करने जाती थीं, अब उन्हीं घरों के रसोईघर में जाकर चाय बनाती हैं, खुद भी पीती हैं और मालकिन को भी पिलाती हैं, उनका फेशियल भी करती हैं। विभिन्न जातियों के लोगों को एक साथ लाने के उद्देश्य से इस अभियान के परिणामस्वरूप, तथाकथित अछूत लोग, तथाकथित उच्च जाति के लोगों के घरों में शादियों और इसके विपरीत अवसरों पर जाते हैं, और इस तरह वे एक नया सामाजिक बंधन बनाते हैं। और एक दूसरे के साथ खुशियाँ बांटतें हैं। अब ये महिलाएं किसी भी उच्च जाति के लोगों की तरह जीवन व्यतीत करती हैं, वे खुशी-खुशी त्योहार मनाती हैं, और अन्य आमंत्रित अतिथियों की तरह, उच्च जाति के लोगों के घरों में होने वाले धार्मिक संस्कारों और सामाजिक कार्यक्रमों में गरिमा के साथ भाग लेती हैं।
देश के अंदर किसी भी मंदिर में सैकड़ों वर्षों सेस्कैवेंजरों का प्रवेश वर्जित था। लेकिन डॉ.पाठक ने समाज की उस रूढ़ि को भी सविनयतोड़ा और देश के अति विशिष्ट मंदिरों में इनलोगों को ससम्मान प्रवेश दिलवाया। इन पुनर्वासित महिलाओं का मनोबल बढ़ाया, और सभी धर्मों के लिए सम्मान और सद्भाव दिखाने के लिए, वह इन महिलाओं को पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर और अजमेर शरीफ में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के साथ-साथ ले गए। नई दिल्ली में चर्च और गुरुद्वारे, जहां इन लोगों ने प्रार्थना की और अपने सुनहरे भविष्य के लिए दिव्य आशीर्वाद मांगा।
वर्ष 2008 में डॉ. पाठक इन महिलाओं को न्यूयॉर्क शहर ले गए, जहां अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस के अवसर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित फैशन शो में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर मॉडलों के साथ रैंप वॉक किया। उन्होंने ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ का दौरा किया और घोषणा की कि वे अब अछूत नहीं हैं!
डॉ. पाठक ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए 5 अक्टूबर, 2016 को इन महिलाओं को पीले वस्त्र पहनाए और इनके ‘ब्राह्मण’होने की घोषणा की। अब इनका धर्म परिवर्तन हो गया है। इन महिलाओं को पवित्र मंत्र की शिक्षा दी गई। अब ये धाराप्रवाह मंत्रोच्चार कर अपने सुज्ञानी होने का परिचय दे रही हैं। ब्राह्मण जाति को स्वीकार करने के बाद ये अपने नाम के साथ अब ‘शर्मा’ लिखती हैं।
डॉ. पाठक का विचार था कि कोई भी स्वेच्छा से अपनी जाति को धर्म की तरह बदल सकता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कैसे यह प्रयोग एक नई क्रांति ला रहा था और कैसे इस परिवर्तन को समाज द्वारा तेजी से स्वीकार किया जा रहा था। सुलभ संस्थापक को उम्मीद थी कि इससे धीरे-धीरे जाति की कुप्रथा का अंत होगा।
इस अवसर पर माननीय डॉ. विश्वपति त्रिवेदी, आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त), पूर्व सचिव, भारत-सरकार एवं इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रो श्याम लाल,पूर्व कुलपति पटना, राजस्थान और जोधपुरविश्वविद्यालय, प्रख्यात हिंदी लेखक, पंडित सुरेश नीरव जी ने, पटना के प्रोफेसर नील रतन औरबनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अशोककुमार ज्योति जी ने भी इस विषय पर अपनेविचार व्यक्त किए।
हाल ही के वर्षों में बड़ी संख्या में अलवर एवंटोंक से पुनर्वासित महिलायें जो पहले मैला ढोनेका काम करती थी , जिन्होंने अब अपनी पसंद के अनुसार ब्राह्मण जाति को अपनाया है, इसवेबिनार में शामिल हुईं और अपनी आप-बीती एवं अपने विचारों को व्यक्त किया।
अपनी जीवन-यात्रा का वर्णन करते हुए, पदमश्रीश्रीमती उषा शर्मा ने कहा कि यह पुनर्जन्म सेबढ़कर है। श्रीमती उषा शर्मा ने डॉ. पाठक कोआधुनिक भारत का वास्तविक सुधारक बतातेहुए कहा कि इन्होनें न केवल हम सभी महिलाओं को इस अमानवीय कार्य से मुक्ति दिलाई अपितु हमारा सामाजिक उत्थान भी किया।