जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । कोरोना वायरस क्या क्या रंग दिखा रहा है इसका अंदाजा वैज्ञानिक तक को नहीं है। बेल्जियम में 90 साल की एक महिला को दो-दो वैरिएंट्स से संक्रमित पाया गया। मार्च में संक्रमित हुई महिला में अल्फा (यूके में पहली बार मिला वैरिएंट) और बीटा (साउथ अफ्रीका में पहली बार मिला वैरिएंट) मिले। अस्पताल में भर्ती किए जाने के पांच दिन बाद महिला की मौत हो गई। एक्सपर्ट्स की मानें तो ऐसा होना दुर्लभ है, मगर हैरान करने वाली घटना नहीं है।
‘किसी से भी हो सकता है इन्फेक्शन‘
‘डबल इन्फेक्शन’ के ऐसे मामले पहले भी सामने आए हैं मगर दूसरे वायरस के। ‘डबल इन्फेक्शन’ के मामले HIV मरीजों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। इंटरनैशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजिनियरिंग ऐंड बायोटेक्नोलॉजी के पूर्व निदेशक वीएस चौहान ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि ‘डबल इन्फेक्शन को रोकने का कोई तरीका नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘अगर कोई एक से ज्यादा संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आता है तो उसे उनमें से किसी से भी या सबसे संक्रमण हो सकता है।’
चौहान के मुताबिक, वायरस शरीर के भीतर अपनी कॉपीज बनाने में समय लेता है। जब तक ऐसा होता है, कुछ कोशिकाओं में दूसरे सोर्स से आया वायरस अपनी जगह बना सकता है। पैथोजेन के खिलाफ इम्युनिटी बनने में समय लगता है। इस दौरान यह पूरी तरह संभव है कि कोई शख्स एक से ज्यादा व्यक्तियों से संक्रमित हो जाए।
इतनी आसानी से नहीं होता ‘डबल इन्फेक्शन‘
एक ही शरीर में दो-दो वैरिएंट्स का संक्रमण आम बात नहीं है। यह जरूरी नहीं कि अलग-अलग लोगों से मुलाकात पर संक्रमण हो ही जाए। कोई संक्रमित व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को संक्रमण नहीं दे सकता। अधिकतर केसेज में यह पता नहीं चलेगा कि शख्स को एक व्यक्ति से संक्रमण हुआ है या कई से। क्योंकि जीनोम सीक्वेंस लगभग एक जैसे ही होते हैं।
अशोका यूनिवर्सिटी में बायोसाइंसेज पढ़ाने वाले शाहिद जमील ने कहा कि ‘बेल्जियम वाले केस में महिला को दो अलग-अलग वैरिएंट्स के संक्रमण का पता चल गया। यह इतना आसान नहीं है जबतक रिसर्चर्स इसकी तलाश न कर रहे हों। एक साथ कई वैरिएंट्स से संक्रमित होने की संभावना बेहद कम है।’
घबराने की क्यों नहीं है जरूरत?
एक साथ कई इन्फेक्शंस से मरीज की हालत पर असर नहीं पड़ता, भले ही अलग-अलग वैरिएंट्स क्यों न हो। सभी वैरिएंट्स मरीज की सेहत पर एक जैसा असर डालते हैं। ऐसे में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वायरस सिंगल सोर्स है या मल्टीपल। चौहान ने कहा, “बीमारी की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि संक्रमित व्यक्ति की सेहत और इम्युनिटी कैसी है। वायरस की लीथैलिटी (जान लेने की क्षमता) से भी फर्क पड़ता है। बीमारी कितनी गंभीर होगी, इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि वायरस कितने लोगों से मिला।” जमील ने कहा कि बेल्जियम का केस रोचक जरूर है लेकिन चिंता की बात नहीं है।