जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : सरकार ने बीते सप्ताह मेडिकल शिक्षा में ओबीसी वर्ग के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण की व्यवस्था की थी। अब सरकार इस वर्ग को फायदा देने के लिए नया विधेयक लाई है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021′ पेश किया जो राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है। अब यह लोकसभा से पारित हो चुका है। राज्यसभा में भी इसके आसानी से पारित होने के आसार है क्योंकि सभी विपक्षी दल इस विधेयक पर एक साथ है। इस विधेयक के जरिए महाराष्ट्र में मराठा समुदाय से लेकर हरियाणा के जाट समुदाय को ओबीसी में शामिल करने और उन्हें आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा।
सरकार ने निचले सदन में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ.वीरेंद्र कुमार ने अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021′ पेश किया। इस दौरान लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आज सभी विपक्षी दलों ने बैठक की और निर्णय लिया कि उक्त विधेयक पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण से संबंधित इस विधेयक को पारित कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम विपक्ष की जिम्मेदारी समझते हैं। सभी विपक्षी दलों ने फैसला किया कि इस पर चर्चा कराके पारित कराया जाना चाहिए। इस विधेयक के साथ देश के पिछड़े वर्ग का संबंध है।’
चौधरी ने कहा कि इससे पहले जब 102वां संविधान संशोधन लाया गया था तो हमने कहा था कि प्रदेशों के अधिकारों का हनन नहीं किया जाए। लेकिन ‘बहुमत के बाहुबल’ से सरकार हमारी बात नहीं सुनती। उन्होंने कहा, ‘लेकिन आज जब हिंदुस्तान के आम लोग, अन्य पिछड़ा वर्ग के लेागों ने आंदोलन किया तो उनके डर से सरकार को यह विधेयक लाना पड़ा।’ इस दौरान सदन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उपस्थित थीं। मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार इसे लाने की मांग कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद विधेयक पेश
सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद यह बिल संसद में पेश किया जाएगा। मई में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि केवल केंद्र को ये अधिकार है कि वह ओबीसी समुदाय से जुड़ी लिस्ट तैयार कर सके। हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार द्वारा इसपर आपत्ति जाहिर की गई थी, इसी के बाद अब केंद्र सरकार संविधान संशोधन बिल लाकर इसे कानूनी रूप देना चाहती है।
गौरतलब है कि सुप्रीमकोर्ट ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है। यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं। इसमें कहा गया है, ‘यह विधेयक पर्याप्त रूप से यह स्पष्ट करने के लिये है कि राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाये रखने को सशक्त बनाता है।’ विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342क का संशोधन करने और अनुच्छेद 338ख एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है। यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये है।
नए विधेयक से ये होगा असर
संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर मुहर लगने के बाद राज्यों के पास ओबीसी वर्ग में अपनी जरूरतों के मुताबिक, जातियों को अधिसूचित करने की शक्ति मिलेगी। इससे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय हरियाणा में जाट समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का मौका मिल सकता है। ये तमाम जातियां लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रही हैं, हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इन मांगों पर रोक लगाता रहा है।