डॉ . एम. रहमतुल्लाह / नई दिल्ली: विश्वग्राम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, और राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच संयुक्त रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 11 दिसंबर 2021 को प्रातः 9 बजे से शाम 6 बजे के बीच इंडिया हैबिटैट सेण्टर के स्टेन ऑडिटोरियम (लोधी रोड, नयी दिल्ली) में कर रहे हैं ।
इस सम्मेलन का शीर्षक है वैश्विक आतंकवाद बनाम मानवीयता, शांति एवं संभावनाएं “कट्टरवाद: एक विभाजन रेखा” (समग्र किन्तु केन्द्रित विषय अफ़ग़ानिस्तान) और उसके संरक्षक हैं डॉ. इंद्रेश कुमार (राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), आरिफ़ मोहम्मद खान (माननीय राज्यपाल, केरल), स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमार्थ निकेतन), और दीवान सय्यद ज़ैनुल आबेदीन अली खान (आध्यात्मिक प्रमुख, अजमेर शरीफ दरगाह) । इस सम्मेलन के संयोजक मंडल में प्रो. गीता सिंह, प्रो. आर.बी. सोलंकी, प्रो. अशोक सज्जनहार, श्री नागेंद्र चौधरी, श्री मोहम्मद अफ़ज़ल, प्रो. शहीद अख्तर, प्रो. संजीव कुमार एच.एम., प्रो. एम. महताब आलम रिज़वी, प्रवेश खन्ना, और विक्रमादित्य सिंह शामिल हैं । प्रख्यात विश्वविद्यालय और शैक्षिणक संस्थान, जैसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जामिया हमदर्द, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, और केंद्रीय विश्वविद्यालय कश्मीर इस कार्यक्रम के साथ जुड़े हैं ।
संवाददाताओं को संबोधित करते हुए डॉ. इंद्रेश कुमार ने यह राय दी कि, “विश्व आज भी आतंकवाद, हिंसा, व कट्टरवाद की गंभीर समस्याओं से घिरा है । इन्हीं कारणों से अब भी हमें ऐसे दमनकारी शासक व असहिष्णु समाज पनपते दिख जाते हैं जो अपने ही लोगों का धार्मिक कट्टरवाद के नाम पर शोषण करते हैं । अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ऐसी परिस्थितियों का नवीनतम उदाहरण बनकर उभरा है, जो वैश्विक आतंकवाद द्वारा हमारे अस्तित्व को दी जा रही भयावह चुनौती की एक अभिव्यक्ति है । इस चुनौती का सामना करने का एक उपाय यह है कि वैश्विक आतंकवाद के विरूद्ध आध्यात्मिक मूल्यों को हम अपना उपकरण बनाएं । भारत, जो कि अनेक धर्मों की भूमि है, जिसकी संस्कृति, सहिष्णु व समावेशी है, और जिसका समाज अपने अनेकों त्योहारों को गर्व से मनाता है, इस सन्दर्भ में मार्गदर्शक बन सकता है । अनेक संस्कृतियों को अपने में समेट लेने वाली भूमि के रूप में भारत की अवधारणा विश्व के लिए समावेशी समाज गढ़ने का एक उपयुक्त आदर्श बन सकती है । ”
प्रो. गीता सिंह, जो सेण्टर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन की निर्देशक, विश्वग्राम की अध्यक्ष, तथा इस सम्मलेन के संयोजक मंडल की सदस्या हैं, ने कहा, “जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किया, तो वहाँ की आतंकित महिलाएं बुरक़ों की खरीद में जुट गईं, यह भली-भाँती समझते हुए कि उन्हें और उनकी आकांक्षाओं को तालिबान अपनी रुढ़िवादी ज़ंजीरों में जकड़ने वाला है । मानवता के आधे अंश को कट्टरपंथी आतंकवाद से जो विशाल खतरा है, उसे समझने के लिए हाल ही में आइसिस द्वारा महिलाओं पर किये गए जघन्य शारीरिक, मानसिक, व सामाजिक ज़ुल्मों को याद करना ही पर्याप्त होगा”
“यह एक विडम्बना है कि लाखों मुसलामानों का घर, अनेक संस्कृतियों का संगम है, व एशिया की अर्थव्यवस्था का एक इंजन होने के बावजूद दक्षिण एशिया आज भी इस्लामी कट्टरपंथियों व उनकी आतंकी गतिविधियों के प्रति अनुकूल है । तालिबान से हुजी, जैश-ए -मोहम्मद से इंडियन मुजाहिदीन तक, विश्व के कई खूंखार व बर्बर जिहादी संगठन यहां आम मुसलामानों के सामाजिक व आर्थिक संघर्षों, और उनकी असुरक्षा की भावना का फायदा उठा कर पनप रहे हैं ।यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे कई जिहादियों का जन्म भारत के एक पड़ोसी मुल्क से ही होता रहा हैं, जिन पर नियंत्रण पाना हमेशा ही नयी दिल्ली की विशेष प्राथमिकता रही है।”
तदनुसार, प्रस्तावित सम्मेलन की संकल्पना इस बात को रेखांकित करती है कि अफ़ग़ानिस्तान जनित सुरक्षा चुनौतियां भारत की ओर आ सकती हैं, विशेषतः पाकिस्तानअधिकृत कश्मीर के ज़रिये । ऐसी नाज़ुक स्थिति में यह अनिवार्य हो जाता है कि हमारे प्रबुद्ध बुद्धिजीवी संयुक्त रूप से शान्ति कायम रखने के लिए उपयुक्त समाधानों व संभावनाओं की चर्चा करें । इस सन्दर्भ में, सम्मेलन कि संकल्पना एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाती है: क्या समृद्धि की संभावनाओं से आतंकवाद की सोच का जड़ से प्रतिरोध किया जा सकता है? जैसा प्रो. गीता सिंह जी ने उल्लेख किया, “भारत वो व्यापक सभ्यता है जो कैलाश से कन्याकुमारी के बीच की समस्त भूमि को बाँध कर रखता है, और वह विश्व को दो मुख्य संदेश देता है: पहला, सनातन धर्म का तथा दूसरा, वसुधैव कुटुम्बकम का । इन दोनों शाश्वत आदर्शों को एक ही अवधारणा के ज़रिये कुछ इस प्रकार से जोड़ा जा सकता है: ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः,’ जो वैश्विक शान्ति व