जनजीवन ब्यूरो / प्रयागराज । प्रयागराज उच्च राजनीतिज्ञों की कर्मभूमि रही है। पं. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, वीपी सिंह ने सत्ता में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। हालांकि, गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम से नामचीन हस्तियों की जितनी अविरल धारा बही, उस हिसाब से विकास की गंगा में प्रयागराज को वो स्थान नहीं मिल सका। सत्ता बदलती गई और यहां के सरकारी कार्यालय एक-एक कर लखनऊ शिफ्ट होते गए। सत्ताधारियों के ये कदम प्रयागवासियों के मन में उपेक्षा की टीस भी उभरते है।
पिछले चुनाव की बात करें तो प्रयागराज मंडल की 28 में से 22 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दल ने जीत लीं। प्रयागराज में 12 में से नौ तो कौशांबी की सभी तीन, फतेहपुर की सभी छह एवं प्रतापगढ़ जिले की सात में से चार सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दल के खाते में आईं। भाजपा के लिए इस बार अपना प्रदर्शन दोहराने और बेहतर करने की चुनौती है। वहीं, सपा, बसपा, कांग्रेस के लिए मैदान मारने का मौका भी।
कुंभ मेले ने बदल डाली शहर की सूरत
चुनावी चर्चाओं पर चलने से पहले बात विकास की। वर्ष 2019 के कुंभ मेले ने प्रयागराज शहर की सूरत ही बदल दी। कुंभ के पहले कई फ्लाईओवर बने। तो संकरे रेल ओवरब्रिज और अंडरपास का चौड़ीकरण हुआ। प्रयागराज संगम और सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन के दिन भी बहुरे। अब ये टर्मिनल हैं। नया एयरपोर्ट टर्मिनल भी बन गया। पर, इस सबके बावजूद यहां की फिजाओं में कई सवाल हैं। एक-एक कर विभागों के मुख्यालय लखनऊ शिफ्ट हो चुके हैं। कुछ बचे हैं तो उनको भी जल्द हटाने की तैयारी है। जिस ‘इलाहाबादी अमरूद’ के चर्चे कभी हर तरफ होते थे, उसका कोई नामलेवा नहीं है। प्रोत्साहन नहीं मिलने से अमरूद उत्पादक निराश हैं। इस बार तो उन्हें काफी नुकसान भी हुआ है। इन सबके बीच बेरोजगारी भी बड़ा सवाल है। आयोगों के दरवाजे पर नौकरियां मांग रहे युवाओं की भीड़ कहीं ज्यादा बढ़ गई है। सियासी पंडितों का अनुमान है कि इस सबका असर प्रयागराज ही नहीं, मंडल की सभी विधानसभा सीटों पर पड़ सकता है।
विकास कार्य तो हुए, पर…?
चुनावी मुद्दों पर बात छिड़ते ही यहां के लोग कहते हैं कि विकास कार्य तो हुए हैं। प्रयागराज काफी कुछ बदल गया। पर, इतना सब होने के बावजूद कसर अभी बाकी है। शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र के मोहल्लों में रहने वाली हजारों की आबादी हर साल बाढ़ की समस्या से जूझती है। सलोरी के बृजेश शर्मा इस पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। वादे भी करती हैं। पर, बाढ़ की समस्या से किसी ने निजात नहीं दिलाई। अवकाश प्राप्त शिक्षक एनपी त्यागी भी कुछ ऐसे ही सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, प्रयागराज में राज्य व केंद्र सरकार ने ढेरों विकास कार्य किए हैं। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। पर, चिकित्सा के क्षेत्र में यह शहर अब भी पिछड़ा हुआ है। लंबे समय से एम्स की मांग की जा रही है। कुछ संगठन इसके लिए अभियान भी चला रहे हैं। पर, इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाया जा सका।
यमुनापार में पानी की किल्लत बड़ी समस्या
भौगौलिक दृष्टि से प्रयागराज सूबे के अन्य मंडलों से थोड़ा भिन्न है। यहां एक ओर गंगा-यमुना का दोआबा है, तो वहीं दूसरी ओर यमुनापार से ही बुंदेलखंड का पथरीला इलाका भी शुरू हो जाता है। इन सब इलाकों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं। यमुनापार के शंकरगढ़, लोहगरा, बारा जैसे इलाकों में पानी की किल्लत रहती है। पेयजल की समस्या के साथ ही सिंचाई सुविधाओं का भी अभाव है। लोहगरा के महेंद्र यादव कहते हैं, कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा सबकी सरकारें आईं, लेकिन पानी की समस्या जस की तस है। यमुनपार के ही जसरा ब्लॉक के ध्रुव कुमार मालवीय कहते हैं कि प्रयागराज से चित्रकूट को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर जसरा में रेल ओवरब्रिज बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। पर, अब तक कुछ नहीं हुआ। मेजा की कताई मिल भी दो दशक से बंद है। स्थानीय निवासी रमाकांत पांडेय कहते हैं कि कताई मिल को लेकर सिर्फ आश्वासन ही मिलते हैं। होता कुछ भी नहीं।
हंडिया से मेजा के लिए गंगा पर पुल वर्षों पुरानी मांग
प्रयागराज के गंगापार स्थित हंडिया से अगर किसी को मेजा, मांडा या सिरसा जाना है तो उसे वाया मिर्जापुर या फिर नैनी होते हुए ही जाना पड़ता है। यहां गंगा पर पुल की मांग भी लंबे अरसे से चली आ रही है। पुल बन जाने के बाद लोगों को जहां लंबा चक्कर लगाने से निजात मिलेगी, तो वहीं गंगापार से मध्य प्रदेश का सीधा जुड़ाव भी हो जाएगा। हालांकि, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जिला पंचायत अध्यक्ष के शपथ ग्रहण समारोह में पुल बनाने का एलान कर चुके हैं, पर स्थानीय लोग यही चाहते हैं कि यह कार्य जल्द से जल्द शुरू हो।
कई कार्यालय लखनऊ शिफ्ट होने का भी मुद्दा
प्रयागराज से पिछले कुछ वर्षों में आबकारी, पुलिस मुख्यालय समेत कई विभागों के मुख्यालय लखनऊ शिफ्ट होने का मुद्दा विपक्ष के कुछ नेता इस बार जोर-शोर से उठा रहे हैं। मेरठ और आगरा में पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच स्थापित करने की मांग का प्रयागराज में शुरू से ही विरोध होता रहा है। पिछले दिनों कानून मंत्री किरण रििजजू के बयान के बाद यह मामला उठा तो स्थानीय अधिवक्ताओं की नाराजगी को देखते हुए कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को बयान देना पड़ा कि हाईकोर्ट की बेंच वहां स्थापित नहीं हो रही है।
नैनी की बंद इकाइयों को कब मिलेगी संजीवनी
नैनी की बंद इकाइयां इस बार चुनाव का बड़ा मुद्दा बन गई हैं। हाल ही में बीपीसीएल बंद होने का मामला जोर-शोर से उठा। कमेटी का गठन होने के बाद बैठक भी हुई, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। नैनी के रवि श्रीवास्तव बताते हैं, बीपीसीएल, टीएसएल, आईटीआई समेत कई बड़ी इकाइयां या तो बंद हो चुकी हैं या बंद होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन औद्योगिक इकाइयों को संजीवनी मिल जाए तो हजारों की संख्या में स्थानीय नौजवानों को रोजगार उपलब्ध हो सकता है। सरस्वती हाईटेक सिटी का भी विकास बेहद धीमी गति से हो रहा है।
विकास कार्यों के नए युग में प्रवेश
प्रयागराज में बेहतर मार्ग, फ्लाईओवर और आरओबी का जाल बिछा है। देश-दुनिया के मानचित्र पर तीर्थराज प्रयागराज का नाम भी और प्रमुखता से शामिल हो, इसके लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। विकास कार्यों के नए युग में प्रयागराज प्रवेश कर चुका है। आने वाले चुनाव में मंडल की सभी सीटें भाजपा जीतेगी। इसके बाद पुन: कौशांबी समेत प्रयागराज मंडल के सभी शहरों, कस्बों और गांवों का और तेज गति से विकास का अवसर मिलेगा।
-केशव प्रसाद मौर्य, उप मुख्यमंत्री
विकास हुए…दहशतगर्दी खत्म हुई
पांच साल में प्रयागराज मंडल में विकास के बहुत से कार्य हुए हैं। अतीक अहमद जैसे लोगों का आतंक खत्म किया गया जिससे लोगों को सुरक्षित व भयरहित माहौल मिला। कुंभ के आयोजन की पूरी दुनिया में तारीफ हुई। कुंभ के लिए पूरे शहर की सड़कों का चौड़ीकरण किया गया और फ्लाईओवर का जाल बिछाया गया। नैनी औद्योगिक क्षेत्र का विकास कराया गया जिससे उद्यमियों को काफी फायदा हुआ है। नए एयरपोर्ट टर्मिनल का निर्माण हुआ तो मेडिकल कॉलेजों का विस्तार भी कराया गया है।
-सिद्धार्थनाथ सिंह, एमएसएमई व खादी ग्रामोद्योग मंत्री
प्रतापपुर में अब तक नहीं खिला कमल
शहर पश्चिमी से कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और दक्षिण विधानसभा सीट से कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी को इन दोनों सीटों से दावेदार माना जा रहा है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की कर्मभूमि होने की वजह से उनके शहर उत्तरी विधानसभा से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। यमुनापार की करछना और गंगापार की प्रतापपुर ऐसी सीट है, जहां अब तक कमल नहीं खिल सका है।
कौशांबी: नहीं रहा किसी एक दल का वर्चस्व
कौशांबी का सियासी मिजाज हमेशा से प्रयोगवादी रहा। इस मिजाज की वजह से ही यहां किसी एक दल का वर्चस्व नहीं रहा। पर, 2017 के चुनाव में भाजपा ने इस जिले की सभी तीन सीटें जीत लीं। इसमें सिराथू सीट ऐसी रही, जिसपर भाजपा लगातार दूसरी बार जीती। इस सीट से वर्ष 2012 में कमल खिलाने में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कामयाब रहे। इस बार सिराथू सीट से उनके चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। उनके बड़े पुत्र योगेश मौर्य भी इस सीट पर खासे सक्रिय हैं।
प्रतापगढ़: राजा भैया और प्रमोद तिवारी का है दबदबा
कुंडा में रघुराज प्रताप सिंह 1993 से लगातार छठवीं बार विधायक हैं। बगल की सीट बाबागंज पर भी एक तरह से उनका कब्जा है। उनके समर्थक विनोद सरोज यहां से लगातार तीसरी बार विधायक हैं। रामपुर खास विधानसभा सीट 1980 से कांग्रेस के कब्जे में है। यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी लगातार नौ बार विधायक रहे। अब उनकी बेटी आराधना मिश्रा ‘मोना’ विधायक हैं। पट्टी सीट से काबीना मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह विधायक हैं। वह इस सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं।
फतेहपुर: अधूरी पड़ी योजनाओं पर सवाल
फतेहपुर जनपद की बात करें तो बिंदकी विधानसभा क्षेत्र में बाईपास का निर्माण दस वर्ष बाद भी अधूरा ही है। कस्बे के विनय तोमर बताते हैं, वर्ष 2011 में बसपा शासनकाल में इसका निर्माण शुरू हुआ। पर, आज तक यह नहीं बन पाया। रेशू वाजपेयी कहते हैं, पूरे विधानसभा क्षेत्र में रोजगार के साधन नहीं हैं। खागा के धाता कस्बे के रहने वाले भानु प्रताप कहते हैं, वर्षों से यहां पर चीनी मिल की मांग हो रही है। पर, इस दिशा में कुछ नहीं हुआ।