लावण्या झा / नई दिल्ली। यूपी में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होने जा रहा है। 37 साल से उत्तर प्रदेश की कड़वी सच्चाई यह है कि 1985 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री दोबारा चुनाव जीतकर लखनऊ में अपनी सरकार नहीं बना पाए हैं। लेकिन भाजपा नेताओं को पूरा विश्वास है कि योगी यूपी की राजनीति ने नया इतिहास रचेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच वर्षों में ऐसे कई मिथकों को तोड़ा है, जिसे पहले के मुख्यमंत्री या राजनेता ‘मनहूस’ समझते रहे हैं। सीएम योगी ने उन कथित ‘अशुभ’ माने जाने वाली बातों को पूरी तरह नजरअंदाज किया है।
1985 के चुनाव के बाद कोई भी पार्टी दोबारा सत्ता में नहीं लौटी है। 37 साल से उत्तर प्रदेश चुनाव में एक और कड़वी सच्चाई जुड़ी हुई है। 1985 के बाद से यहां कोई भी मुख्यमंत्री दोबारा चुनाव जीतकर लखनऊ में अपनी सरकार नहीं बना पाया है। करीब चार दशक पहले यूपी और उत्तराखंड दोनों का मुख्यमंत्री पद संभाल चुके नारायण दत्त तिवारी को मिला था। कांग्रेस तो उस चुनाव के बाद से प्रदेश में ऐसे खत्म हुई कि अभी तक नहीं खड़ी हो पायी है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता व ज्वाइनिंग कमेटी के चेयरमैन लक्ष्मीकांत वाजपेयी का कहना है कि इतना तो तय है कि सरकार तो बीजेपी की ही बनेगी। सीएम योगी ने आम जनता के लिए काम किया है । राम मंदिर के निर्माण हो या विंधवासिनी देवी मंदिर का निर्माण। योगी ने वो काम कर दिखाया जो कई दशकों से लंबित था।
भाजपा के वर्तमान विधायक तेजपाल सिंह नागर का मानना है कि पश्चमी उत्तर प्रदेश में साल 2019 में सपा-बसपा व राष्ट्रीय लोकदल का महागठबंधन था । उस चुनाव में भी भाजपा की जीत हुई। अभी तो सिर्फ सपा व रालोद का गठबंधन है। ऐसै में भाजपा की जीत तो पक्की है। जबहांतक किसान आंदोलन की बात है तो पीएम मोदी ने बिल वापस ले लिया है। अब कोई शिकवा शिकायत नहीं है।
यूपी में नोएडा को लेकर एक ऐसा ही ‘अशुभ’ प्रशासनिक महकमों में चर्चित रहा है। वह यह है कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा जाता है, वह दोबारा लखनऊ की सत्ता पर वापस नहीं लौट पाता। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी वजह से अपने कार्यकाल में नोएडा से दूरी बनाकर रखी थी। जबकि, दिल्ली-एनसीआर का हिस्सा होने की वजह से यह शहर अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर उभर चुका है। लेकिन, गोरखपुर मठ का प्रमुख होने के बावजदू योगी आदित्यनाथ ने इन कही-सुनी बातों पर कभी गौर नहीं किया। बल्कि,एक बार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके लिए उनकी सराहना कर चुके हैं।
पिछले पांच वर्षों में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के तौर पर कई बार नोएडा का दौरा किया है। चाहे मेट्रो लाइन की शुरुआत का कार्यक्रम हो या फिर जेवर में नए अंतरराष्ट्रीय एयर पोर्ट का शिलान्यास या फिर कोरोना से जुड़े निगरानी का सवाल हो, उन्होंने बेहिचक इस एनसीआर टाउन का दौरान किया है। इस चुनाव को जिसे भारतीय जनता पार्टी उनके पक्ष में जनमत संग्रह की तरह देख रही है, योगी आदित्यनाथ का पिछले पांच वर्षों में नोएडा दौरा भी एक सवाल बना हुआ है कि वह किस तरह से इस मिथक को तोड़ पाने में सफल होते हैं, या फिर इस शहर से जुड़ा यह विचार राजनेताओं के ‘डर’ को और भी ‘पुख्ता’ करने की वजह बन जाता है।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी में किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था। तब उसे 403 सीटों वाली विधानसभा में अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन में 325 सीटें मिली थीं। लेकिन, इस बार योगी आदित्यनाथ पार्टी की ओर से सीएम का चेहरा हैं तो ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के साथ सट चुकी है। यह चुनाव भाजपा के लिए सिर्फ योगी की वापसी के लिए अहम नहीं है, बल्कि 2024 में लगातार लखनऊ के रास्ते दिल्ली पहुंचने के लिए भी राजनीतिक तौर पर जीने-मरने की तरह है।
खुद प्रधानमंत्री मोदी सीएम योगी के पांच साल के कार्यकाल को ‘उपयोगी’ बता चुके हैं तो पूरी पार्टी ही उनकी सरकार के ‘अच्छे कार्यों’ का प्रचार-प्रसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। कुल मिलाकर प्रदेश में भाजपा अपनी सरकार के पांच साल के काम, सोशल इंजीनियरिंग और हिंदुत्व के एजेंडे पर बीते 37 वर्षों के इतिहास को पलटने की उम्मीद लगाए बैठी है तो उसके विरोधी इसी के विरोध में पूरा चुनावी चक्रव्यूह रच चुके हैं। अंतिम परिणाम उत्तर प्रदेश के करीब 15 करोड़ वोटरों की इच्छा पर ही निर्भर है।