आलोक रंजन / नई दिल्ली : पंजाब में सियासी दलों के बाद अब किसान संगठन भी चुनावी रण में उतर रहे हैं। किसानों की पार्टी से पंजाब की सियासी फिज़ा बदलने के आसार दिखाई दे रहे हैं। आज हम आपको वो चार वजहों के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसानों के हक़ में गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। सियासी जानकारों की मानें तो राजनीति से ताल्लुक नहीं रखने वाले किसान संगठनों की एंट्री से पंजाब के राजनीतिक दलों की चुनौती बढ़ गई है। किसान उम्मीदवारों के चयन में बलबीर राजेवाल की संयुक्त समाज मोर्चा और गुरनाम सिंह चढ़ूनी की संयुक्त संघर्ष पार्टी ने काफ़ी राय शुमारी के बाद अपने उम्मीदवारों का चयन किया है।
35 संगठनों के मास्टरमाइंड के साथ चर्चा 35 संगठनों के मास्टरमाइंड के साथ चर्चा पंजाब में किसानों की पार्टी की चुनावी मैदान में एंट्री से राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ने की पहली वजह है कि करीब 35 संगठनों की राय शुमारी के बाद प्रत्याशियों का चयन किया गया है। जिसमें किसान, मजदूर, व्यापारी, गायक और प्रोफेशनल्स जैसे करीब 35 संगठनों के मास्टरमाइंड की राय ली गई है। सभी लोगों से राय शुमारी के बाद उम्मीदवारों की घोषणा की जा रही है। ग़ौरतलब है कि जितने भी उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा गया है उनकी ग्राउंड लेवल या कह लीजिए की बूथ लेवल पर सियासी पकड़ अच्छी है चुनावी मैदान मे हर समुदाय और वर्ग के लोग चुनावी मैदान मे हर समुदाय और वर्ग के लोग पंजाब के चुनावी रण में सियासी फिज़ा बदलने के पीछ दूसरी बड़ी वजह है कि किसानों की पार्टी ने हर समुदाय और वर्ग के लोगों को चुनावी रण में उतारा जा रहा है। किसानों की पार्टी ने यह रणनीति इसलिए अपनाई है ताकि चुनाव के दौरान मतादाताओं में भेद भाव नहीं हो सके और सभी वर्गों का वोट उनकी पार्टी को मिल सके। हर वर्ग पर ध्यान देते हुए संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी ने पंजाब की सत्ता में नया परिवर्तन लाने की कोशिश की है।
किसान नेताओं की यह कोशिश है कि सभी समुदाय के लोगों के साथ लेकर चलने से चुनावी प्रचार और पार्टी का दायरा बढ़ाने में आसानी होगी। ग्राउंड वर्क करने वाले प्रत्याशियों का मिला टिकट ग्राउंड वर्क करने वाले प्रत्याशियों का मिला टिकट पंजाब में किसानों की पार्टी राजनीतिक समीकरणों पर असर डाल सकती है इसके पीछे तीसरी बड़ी वजह यह है कि किसान आंदोलन के दौरान ग्राउंड वर्क करने वाले प्रत्याशियों को भी मैदान में उतारा जा रहा है। ग्राउंड वर्क से मुराद यह है कि जो भी किसान आंदोलन के दौरान अपने हलके का नेतृत्व कर रहा था। उम्मीदवारों की सूची में वैसे लोगों का नाम प्रमुखता से डाला जा रहा है, जो आंदोलन के दौरान किसानों के लिए बूस्टर का काम कर रहे थे। जिनके कहने पर किसान आंदोलन में डटे हुए थे। जो आंदोलन के दौरान किसानों की ज़रूरतों का खयाल रख रहे थे। किसान आंदोलन की तर्ज पर टीमों का गठन किसान आंदोलन की तर्ज पर टीमों का गठन पंजाब की सियासी फ़िज़ा में किसान अहम भूमिका निभा सकते हैं इसके पीछ चौथी बड़ी वजह यह है कि उम्मीदवारों के समर्थन के लिए किसान आंदोलन की तर्ज पर टीमों का गठन किया गया है।
टीम के सद्स्यों का यही काम होगा की वह डोर डू डोर अपने प्रत्याशियों के लिए वोट मांगेंगे। जिस तरह से किसान आंदोलन के समय घर-घर से किसानों की मदद के लिए सहायता मांगी जा रही थी। ठीक उसी तरह अब किसान प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने के लिए गठित टीमों के सदस्य घर-घर जा रहे हैं। ग़ौरतलब है कि किसान आंदोलन में शामिल कई किसान नेता चढूनी और राजेवाल के साथ क़दम से क़दम मिला कर खड़े हुए हैं और उनके हक में चुनावी प्रचार कर रहे हैं।