अमित आनंद / नई दिल्ली : पश्चिम उत्तर प्रदेश में पहले चरण में सबसे पहले चुनाव होंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 200 से ज्यादा जाट नेताओं से मिले। बैठक के बाद भाजपा की ओर से खुलेतौर पर आऱएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को साथ आने का खुलेआम न्यौता दिया गया। जबकि सपा के साथ चुनाव लड़ रहे जयंत चौधरी ने सिरे से इस ऑफर को ठुकरा दिया। पश्चिमी यूपू के मतदाताओं के अंदर यह सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या जयंत भाजपा के साथ जाएंगे
केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के सबसे अहम नेताओं में शुमार अमित शाह ने पार्टी के सांसद परवेश वर्मा के दिल्ली स्थित घर पर 200 जाट लोगों के साथ मुलाकात की, जो पश्चिम यूपी से आए थे। बैठक के बाद सांसद परवेश वर्मा, जो कि खुद जाट हैं, उन्होंने मीडिया से कहा कि बीजेपी का दरवाजा जयंत चौधरी के लिए हमेशा खुला है। उन्होंने सपा के साथ जाकर गलत किया है और जाट समाज के जिम्मेदार लोग उनको समझाएंगे। बता दें कि जयंत चौधरी भी जाट हैं। बीजेपी की ओर से आए इस ऑफर को जयंत ने ठुकरा दिया लेकिन सवाल ये है कि भाजपा या कहें कि अमित शाह ने इस बात आखिर मीडिया में क्यों उछाला। आमतौर पर पार्टियों के बीच गठबंधन के ऑफर इस तरह नहीं बल्कि चुपचाप दिए जाते हैं।
मुसलमानों में RLD के प्रति अविश्वास पैदा करने की कोशिश
इस बात को मीडिया में कहने के पीछे सबसे बड़ी वजह मुसलमान और भाजपा विरोधी वोटों में राष्ट्रीय लोकदल के प्रति अविश्वास पैदा करना है। पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की तादाद काफी अच्छी है। रालोद पश्चिम में जो 30 से ज्यादा सीटें लड़ रही है, उनमें से करीब 95 फीसदी सीटों पर वो बिना अच्छे-खासे मुस्लिम मत लिए बगैर जीत जाए ये मुश्किल है। ऐसे में इस तरह के बयान से मुसलमानों के बीच ये मैसेज जाएगा कि जयंत तो चुनाव बाद भाजपा के साथ जा सकते हैं, ऐसे में इनके कैंडिडेट को जिताना कहीं अप्रत्यक्ष तर पर भाजपा की मदद करना तो नहीं होगा। ऐसे में अगर मुसलमानों का कुछ हिस्सा उनसे छिटककर बसपा और कांग्रेस की तरफ जाता है तो ये रालोद के लिए नुकसान होगा और भाजपा को सीधा फायदा करेगा।
जाटों के बीच भाजपा के प्रति सहानुभूति
चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार के प्रति किसानों और खासतौर से जाटों में एक सम्मान का भाव है। इस परिवार के लोगों के लिए और किसानों के प्रति जो रवैया हाल के समय में सरकार और भाजपा का रहा, उससे लोगों में एक गुस्सा है। ऐसे में इस बयान से भाजपा ने दिखाने की कोशिश की है कि वो चरण सिंह परिवार का सम्मान करते हैं। ये जाटों के बीच एक सहानुभूति हासिल करने और बीजेपी के लिए गुस्सा कम करने की भी कोशिश है।
रालोद को कमजोर रखने की कोशिश
रालोद लगातार पश्चिम यूपी में ये कोशिश कर रही है कि खेती किसानी से जुड़े सभी वर्ग (खासतोर से जाट-मुसलमान) धर्म से परे जाकर पहले की तरह उसके साथ आ जाएं। ये होता है तो जाहिर है पश्चिमी यूपी में भाजपा को पुराना (2017 के चुनाव का) प्रदर्शन दोहराना मुश्किल हो जाएगा। रालोद के मजबूत होने का मतलब भाजपा के कमजोर होना भी होगा। इसलिए इस ऑफर में गैरजाहिरा तौर पर भाजपा ने मुस्लिम-जाट समीकरण को ही निशाना बनाया है। ऐसे में भले ही भाजपा जयंत की हमदर्द दिखने की कोशिश कर रही हो लेकिन वो किसी कीमत पर उनको उभरते नहीं देखना चाहती है और ये खुला ऑफर भी उसी की एक कोशिश लगती है। बशीर बद्र का शेर भी है-
सियासत की अपनी अलग इक जुबां है
लिखा हो जो इकरार, इनकार पढ़ना।