लावण्या झा / नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश चुनाव इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। अगर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर भरोसा करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ पांच साल तक सत्ता में रहने के बावजूद कोई उस तरह की एंटी-इंकंबेंसी नहीं दिख रही है और ना ही 2014 वाली मोदी लहर जैसी ही कोई बात दिखाई पड़ रही है। विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी मोटे तौर पर सिर्फ पांच एजेंडे की बात कर रही है। इन्हीं एजेंडे पर भारतीय जनता पार्टी का फोकस है। उसमें से यदि एक में भी किसी तरह की कोई कमी रह गई तो सत्ता में वापसी बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
हिंदूवादी पहचान पर फोकस
हिंदूवादी विचारधारा भारतीय जनता पार्टी का कोर एजेंडा रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है कि भाजपा ने कथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी के नेताओं को किस तरह से चुनावों के दौरान मंदिर-मंदिर घूमने को मजबूर कर दिया है। 73वें गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जो झांकी दिखाई पड़ी वह मौजूदा सरकार की नीतियों पर फोकस करने के लिए काफी हैं। दोनों राज्यों में चुनाव हैं और बीजेपी सरकार किसी भी कीमत पर अपने राजनीतिक धरोहर को छोड़ना नहीं चाहती। पिछली बार अयोध्या का भव्य मंदिर दिखाई पड़ा तो इस बार काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और पवित्र हेमकुंड साहिब के साथ-साथ पवित्र बदरीनाथ धाम और देवभूमि उत्तराखंड में चारों धामों को जोड़ने वाली ऑल वेदर रोड का निर्माण भी नजर आया। इस बार के चुनाव में अयोध्या में मंदिर निर्माण का शोर-गुल तो पार्टी की ओर से किया ही जा रहा है, काशी के साथ-साथ मथुरा में पुणर्निमाण की बात भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्तर तक से उठाई जा चुकी है।
राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा
राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा ऐसे विषय हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व के आधारस्तंभ रहे हैं। बुधवार को नई दिल्ली में पार्टी सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के आवास पर गृहमंत्री अमित शाह ने जाट समाज के करीब 250 कद्दावर लोगों के साथ जो यूपी चुनाव को लेकर चर्चा की है, उसमें भी उन्होंने इस मुद्दे पर काफी फोकस किया है। शाह ने बार-बार यह दुहाई दी है कि यह ऐसे मसले हैं, जो पार्टी की अंतररात्मा है तो जाट समाज भी इससे कभी समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुआ है। सूत्रों की मानें तो उन्होंने यहां तक कहा है कि जैसे पार्टी राष्ट्रभक्त है, वैसे ही जाट राष्ट्रभक्त हैं। बीजेपी जानती है कि यूपी की सत्ता में वापसी के लिए इस बार भी जाट समाज का समर्थन उसके लिए कितना अहम है। क्योंकि, इस बार राष्ट्रीय लोक दल ने जिस तरह से समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है और पीछे से बीजेपी पर किसान आंदोलन वाला दबाव बनाने की कोशिश हो रही है, अगर जाटों ने भाजपा का साथ छोड़ा तो उसके मंसूबे पर पानी फिर सकता है। कहते हैं कि हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा ऐसे विषय हैं, जिसकी वजह से भाजपा का कैडर वोट कुछ भी हो जाए, वह कहीं खिसक नहीं सकता।
कल्याणकारी योजनाएं और कानून-व्यस्था
उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ से ज्यादा रजिस्टर्ड वोटर हैं। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक इनमें से 7.5 करोड़ से अधिक वोटर विभिन्न केंद्रीय और प्रदेश की कल्याणकारी योजनाओं से लाभांवित हो रहे हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं का फोकस इन्हीं लाभार्थियों पर है। मतदाता संपर्क अभियान के तहत पार्टी के कैडर इन तक पहुंच रहे हैं और पिछले आठ वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और पिछले पांच वर्षों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के दौरान गरीबों, महिलाओं, दलित और वंचित वर्ग के लोगों, आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों के कल्याण के लिए जो भी योजनाएं शुरू की गई हैं, उनके बारे में अपनी बात पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से कुछ चर्चित योजनाएं हैं, जैसे कि मुफ्त राशन, उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं। इसके अलावा बिजली और बेहतर कानून व्यवस्था ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर पार्टी बहुत ज्यादा जोर दे रही है।
अति-पिछड़ों (ईबीसी) और दलितों पर फोकस
विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और बेहतर कानून व्यवस्था की वजह से भाजपा को लगता है कि इन वर्गों को काफी राहत मिली है। स्वामी प्रसाद मौर्य समेत दर्जन भर ओबीसी नेताओं के पार्टी से जाने के बाद, जिस तरह से कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह की एंट्री हुई है, यह भाजपा के इसी सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर आधारित है। मोदी-शाह की जोड़ी ने पिछले सात-आठ वर्षों में भाजपा को ब्राह्मण-बनिया की पार्टी की कथित पहचान से आगे ले जाकर जिस तरह से गैर-यादव ओबीसी में इसका जनाधार बढ़ाया है, वह नरेंद्र मोदी की बीजेपी के लिए आज की तारीफ में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। हालांकि, पीएम मोदी खुद ओबीसी हैं, लेकिन पार्टी इस बात का प्रचार उस स्तर पर कभी नहीं करती। लेकिन, चुनावों के दौरान आवश्यकता पड़ने पर इसका जिक्र भी उठता है, जो इस बार भी हो रहा है और यह सिलसिला 2014 से जारी है। 2017 में भाजपा यूपी में 312 सीटों तक पहुंची तो अति-पिछड़ों और दलितों के एक बड़े वर्ग के समर्थन की भूमिका उसमें बहुत ही महत्वपूर्ण रही। इस बार भी पार्टी अपने इस एजेंडे को किसी भी सूरत में हल्का नहीं पड़ने देना चाहेगी।
ब्रांड मोदी-योगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व की वजह से उनकी ब्रांडिंग भारत ही नहीं, देश से बाहर भारतीयों के बीच भी हो चुकी है और उनकी लोकप्रियता गैर-भारतीयों के बीच भी बुलंदियों पर है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में ब्रांड मोदी तो पहले से मौजूद है ही, ब्रांड योगी की अहमियत भी मायने रखती है। खुद प्रधानमंत्री के स्तर पर सीएम योगी को ‘उपयोगी’ बताना उसी ब्रांडिंग की एक कड़ी है। मुख्यमंत्री योगी की छवि आज अपराधियों और माफिया का सफाया करने वाले नेता के रूप में बनाई गई है। इसी वजह से आमतौर पर प्रदेश की कानून-व्यवस्था का बखान भाजपा नेता डंके चोट पर करने से नहीं थकते। इस चुनाव में ये ब्रांडिंग भी दांव पर लगा हुआ है।