आलोक रंजन / देहरादून । उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस समेत सभी सियासी दलों ने अपने-अपने सभी प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। नामांकन की आखिरी तारीख अब पूरी होने के बाद अब सियासी रण सज चुका है। ऐसे में सबकी नजर ऐसे प्रत्याशियों पर सबसे ज्यादा रहने वाली है जो दलबदल कर सियासी रण में कूदे हैं। इस बार भाजपा, कांग्रेस में कई बड़े चेहरों ने अपना पाला बदला है। जो कि चुनाव मैदान में है। इनमें धनोल्टी विधायक प्रीतम सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, कांग्रेस की महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही चुकी सरिता आर्य, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और टिहरी के विधायक धन सिंह नेगी शामिल हैं। ये सभी इस बार दूसरे सिंबल पर चुनावी रण में हैं।
भाजपा ने की शुरूआत
2022 के विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही इस बार दलबदल की शुरूआत हुई जो कि सबसे पहले भाजपा खेमे से हुई। भाजपा ने धनोल्टी से निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार को अपने पाले में लाकर कांग्रेस को चुनौती दे डाली। प्रीतम पंवार कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं। प्रीतम धनोल्टी विधानसभा से पहले यमुनोत्री का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस सीट पर भाजपा के विधायक हैं। अब भाजपा के स्थानीय नेताओं को धनोल्टी में प्रीतम पंवार के लिए वोट मांगना पड़ेगा, पार्टी ने उन्हें धनोल्टी से टिकट दिया है। हालांकि भाजपा के प्रबल दावेदार महावीर रांगड़ ने निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भी भर दिया है। प्रीतम के बाद कांग्रेस के विधायक राजकुमार ने भाजपा ज्वाइन की। जो कि पुरोला सुरक्षित सीट से विधायक थे। इससे पहले राजकुमार सहसपुर से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया, तो वे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। राजकुमार के बाद भीमताल से निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा भाजपा में आए और अब वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पिता, पुत्र एक साथ कांग्रेस में
भाजपा ने 3 विधायकों को अपने पाले में लाया तो कांग्रेस ने एक साथ 2 विधायक यशपाल आर्य और संजीव आर्य को अपने पाले में लाया। यशपाल बाजपुर और संजीव नैनीताल सीट से विधायक थे। दोनों अपनी ही सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन संजीव आर्य का टिकट फाइनल होने से पहले ही कांग्रेस की महिला मोर्चा अध्यक्ष सरिता आर्य ने भाजपा का दामन थाम लिया। वे नैनीताल से कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं और चुनाव भी लड़ चुकी हैं। सरिता आर्य के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भाजपा ज्वाइन की और टिहरी से पर्चा भी भर दिया। किशोर उपाध्याय के भाजपा में आते ही टिहरी से विधायक धन सिंह नेगी ने कांग्रेस का दामन थामा और टिकट ले लिया। कुछ ऐसा ही दुर्गेश लाल के साथ भी हुआ। पुरोला सीट से दुर्गेश लाल निर्दलीय चुनाव लड़े थे, लेकिन चुनाव से पहले कांग्रेस में गए लेकिन कांग्रेस ने भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके मालचंद को टिकट दिया तो दुर्गेश भाजपा में आए और टिकट ले गए। इस तरह दलबदल का खेल चुनाव से पहले जमकर हुआ। जिसका असर चुनाव में देखने को मिला। लेकिन इन दलबदलुओं में कौन बाजी मारता है ये देखना दिलचस्प होगा। इस सब में सबसे बड़ा प्रकरण पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का रहा। हरक सिंह को पहले भाजपा ने 6 साल के निष्कासित कर दिया। 6 दिन तक हरक सिंह के कांग्रेस ज्वाइन करने को लेकर सस्पेंस बना रहा। इसके बाद हरक सिंह अपनी बहू अनुकृति गुंसाई के साथ कांग्रेस में चले गए। लेकिन अनुकृति गुंसाई को कांग्रेस ने लैंसडाउन से टिकट दे दिया, हरक सिंह को कहीं से भी प्रत्याशी नहीं बनाया गया। इस तरह हरक सिंह का दलबदल अपनी बहू के लिए तो सही साबित हुआ लेकिन उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अब भी सवाल खड़े हो रहे हैं।