प्रीति झा / देहरादून । उत्तराखंड में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में चार अहम मुद्दों को शामिल किया है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। सबसे ज्वलंत मुद्दें में गैरसेंण, लोकायुक्त, भू कानून और चारधाम शामिल है।
गैरसेंण को राजधानी बनाने का दावा
उत्तराखंड बनने के बाद से ही गैरसेंण को राजधानी बनाने की मांग होती आ रही है। देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया गया तो गैंरसेंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग उठती रही। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में गैरसेंण को राजधानी बनाने का जिक्र किया है । गैरसेंण को लेकर अब तक सरकारों ने कई कदम उठाए। कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने 3 नवम्बर 2012 को पहली बार गैरसैंण में कैबिनेट बैठक आयोजित करवाई। सरकार ने 2014 में गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित करवाने के साथ भराड़ीसैंण विधानसभा भवन का निर्माण शुरू करवा दिया। दिसंबर 2016 में नवनिर्मित विधानसभा भवन में पहला विधान सभा सत्र आयोजित किया गया। विधान सभा चुनाव 2017 में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ,गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने का वादा किया था। भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 मार्च 2020 को बजट सत्र के दौरान भराड़ीसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित किया था। 8 जून 2020 को ,चमोली जिले के अंतर्गत भराड़ीसैंण (गैरसैंण) को आधिकारिक रूप से उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई। त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने 5 मार्च 2021 को गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा कर दी। यह घोषणा 2021 के बजट सत्र के दौरान की गई। गैरसैंण को कनिशनरी बनाया गया। उत्तराखंड में पहले 2 मंडल थे , गढ़वाल मंडल और कुमाऊ मंडल । इस घोषणा के बाद उत्तराखंड में 3 मंडल बन गए। गैरसैंण मंडल में चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर,रूद्रप्रयाग जिलों को शामिल किया गया। लेकिन इस घोषणा के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी तीरथ सिंह रावत को मिल गई। जिसके बाद गैरसेंण का मुद्दा फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब चुनाव आते ही कांग्रेस एक बार फिर गैरसेंण को राजधानी बनाने का दावा कर रही है। लेकिन इसमें स्थाई शब्द का इस्तेमाल न होना कई सवाल खड़े करता है।
लोकायुक्त बनाने का दावा
उत्तराखंड में 100 दिन में लोकायुक्त का गठन करने का वादा करने वाली भाजपा सरकार इस मुद्दे पर बैकफुट में रही है। कांग्रेस का रुख भी लोकायुक्त के प्रति स्पष्ट नहीं रहा है। राज्य में लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2011 में पारित किया गया था। तत्कालीन भाजपा सरकार के सीएम मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी (रि) इस एक्ट को लाए थे। खंडूड़ी का लोकायुक्त काफी अधिकार संपन्न और सख्त था। वर्ष 2012 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। इस बीच राष्ट्रपति भवन से एक्ट का मसौदा मंजूर होकर आ गया। इसे सरकार को 180 दिन में लागू करना था। कांग्रेस ने खंडूड़ी के एक्ट में परिवर्तन करते हुए नया एक्ट तैयार किया। इससे खंडूड़ी का लोकायुक्त ठंडे बस्ते में चला गया और कांग्रेस भी पांच साल तक अपना एक्ट लागू न कर पाई। वर्ष 2017 के विधानसभा में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में 100 दिन में लोकायुक्त बनाने का वादा किया था। भाजपा ने कांग्रेस के बनाए एक्ट में संशोधन करते हुए नया ड्राफ्ट तैयार किया। और फिर बाद में इसे विधानसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया गया। तब तक यह बिल विधानसभा की संपत्ति है। इस पर आगे कार्यवाही बढ़ ही नहीं पाई। उत्तराखंड में लोकायुक्त का गठन आठ साल से अधर में हैं। लेकिन लोकायुक्त के दफ्तर के रखरखाव पर हर साल करोड़ों रुपये का खर्च जारी है।
जनहितकारी भू कानून लाने का दावा
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कृषि और अन्य भूमि व्यवस्था सुधार आयोग का गठन कर एक नया जनहितकारी भू कानून लाने का दावा किया गया है। जो कि लंबे समय से मांग चल रही है। यह मुद्दा 2022 के चुनाव से ठीक पहले गर्मा गया है। वर्ष 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए। इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई। प्रदेश में बड़े स्तर पर हो रही कृषि भूमि की खरीद फरोख्त, अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी की शिकायतों पर साल 2002 में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने संज्ञान लेते हुए साल 2003 में ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950’ में कई बंदिशें लगाईं। इसके बाद किसी भी गैर-कृषक बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर हो गई। साल 2007 में बीजेपी की सरकार आई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने अपने कार्यकाल में पूर्व में घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया। लेकिन यह सीमा शहरों में लागू नहीं होती थी। हालांकि, 2017 में जब दोबारा भाजपा सरकार आई तो इस अधिनियम में संशोधन करते हुए प्रावधान कर दिया गया कि अब औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या फिर उससे कोई भूमि खरीदे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी। औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू उपयोग अपने आप बदल जाएगा और वह अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा। इसी के साथ गैर कृषि व्यक्ति द्वारा खरीदी गई जमीन की सीमा को भी समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी कहीं भी जमीन खरीद सकता था। इसको लेकर राजनीतिक संगठन ही नहीं गैर राजनीतिक संगठन एकजुट होकर त्रिवेंद्र रावत सरकार के फैसले के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं।
चारधाम की परंपरा को बनाए रखने का दावा
उत्तराखंड हिंदू आस्था का प्रतीक है। ऐसे में कांग्रेस ने चारधामों के विकास को लेकर खास रोडमैप बनाने की बात की है। इसके जरिए कांग्रेस हिंदूत्व के मुद्दे को लपकने की कोशिश में है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में चारों धामों को उनकी परंपरा के अनुरुप चलाने का वादा किया है। जिस तरह से भाजपा ने देवस्थानम बोर्ड को बनाकर चारों धामों के पुरोहितों को नाराज करने की कोशिश की उसको कांग्रेस इस चुनाव में पूरा जोर शोर से उठा रही है। हालांकि भाजपा ने इस मुद्दे पर कदम पीछे खींचकर कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा छीन लिया, लेकिन कांग्रेस ने इस बार अपने स्लोगन से लेकर घोषणा पत्र में चारधाम का नारा शामिल किया है। कांग्रेस ने चारों धामों के विकास के लिए सर्वसमावेशी मोबाइल एप तैयार करने का दावा किया है। हालांकि इस घोषणा पत्र में कांग्रेस ने चारों धामों को कैसे डेवलप किया जाएगा इसका रोडमैप नहीं दिया है।