अमित आनंद / देहरादून । उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की धर्मपुर और रायपुर सीट वीआईपी सीट हैं। धर्मपुर सीट का पुराना इतिहास है तो रायुपर सीट 2008 से ही अस्तित्व में आई है। धर्मपुर में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन 2017 में विनोद चमोली ने कांग्रेस का किला ढहा दिया तो रायपुर में उमेश शर्मा काऊ के नाम पर ही अब तक वोट पड़े हैं। हालांकि इस बार धर्मपुर में बागी और रायपुर में पुराने कांग्रेसी चुनाव की बाजी पलटने की कोशिश में जुटे हैं।
कांग्रेस का मजबूत किला रहा है धर्मपुर, अब भाजपा में है जंग
धर्मपुर सीट देहरादून जिले की सबसे वीआईपी सीट में से एक हैं। शुरूआत में इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 2017 में यह सीट भाजपा के पाले में आ गई। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी विनोद चमोली के सामने इस बार बागी बीर सिंह पंवार ही सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। कांग्रेस ने इस बार पुराने चेहरे दिनेश अग्रवाल पर ही दांव खेला है। उत्तराखंड बनने के बाद 2012 तक यह सीट लक्ष्मणचौक के नाम से ही जानी जाती थी, लेकिन अब धर्मपुर के नाम से प्रचलित इस सीट पर उत्तराखंड में सर्वाधिक वोटर हैं। 2002 में हुए पहले चुनाव में इस क्षेत्र में उत्तराखंड के पहले सीएम नित्यानंद स्वामी ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल ने हरा दिया। 2007 के चुनाव में फिर से नित्यानंद स्वामी चुनाव लड़े, लेकिन फिर से चुनाव हार गए। 2012 में नित्यानंद स्वामी के निधन के बाद भाजपा ने प्रकाश सुमन ध्यानी को टिकट दिया। लेकिन दिनेश अग्रवाल ने हैट्रिक मारकर कांग्रेस को जीता दिया। 2017 में भाजपा ने धर्मपुर सीट पर मेयर रहे विनोद चमोली को उतारा। चमोली ने दिनेश अग्रवाल को हरा दिया और पहली बार धर्मपुर में भाजपा का कब्जा हुआ। इस बार भाजपा ने फिर से विनोद चमोली को मैदान में उतारा है, लेकिन भाजपा से बागी बीर सिंह पंवार भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस फिर से पुराने चेहरे दिनेश अग्रवाल को उतारकर इतिहास रचने की कोशिश में है। धर्मपुर सीट पर पहाड़ी, मुस्लिम वोटर की संख्या ज्यादा है। ऐसे में इस सीट पर इस बार नया समीकरण बनता हुआ नजर आ रहा है। धर्मपुर सीट शहर की वीआईपी सीट होने के बाद भी सड़क, बिजली, मोहल्ला क्लिनिक, मलिन बस्ती आदि की समस्याएं बनी हुई हैं।
अब तक के विधायक-
- 2002 दिनेश अग्रवाल
- 2007 दिनेश अग्रवाल
- 2012 दिनेश अग्रवाल
- 2017 विनोद चमोली
रायुपर सीट पार्टी नहीं व्यक्ति विशेष का रहा है दबदबा
रायुपर सीट 2008 के परिसीमन के बाद डोईवाला से हटकर अलग विधानसभा बनी। 2012 में इस सीट पर पहला चुनाव हुआ। कांग्रेस के टिकट पर उमेश शर्मा ने करीबी अंतर से बीजेपी के त्रिवेंद्र सिंह रावत को हराया। इसके बाद 2017 में उमेश शर्मा काऊ भाजपा में शामिल होकर भाजपा से चुनाव लड़े और जीत कर आए। रायपुर सीट में पार्टी नहीं व्यक्ति विशेष उमेश शर्मा काऊ का दबदबा माना जाता है। इस वजह से उन्होंने पार्टी बदली तब भी जीतकर आए। इस बार उमेश शर्मा काऊ के सामने कांग्रेस के पुराने नेता हीरा सिंह बिष्ट हैं। जिस वजह से इस सीट पर काफी दिलचस्प चुनाव की उम्मीद लगाई जा रही है। रायपुर सीट पर पहाड़ी, मलिन बस्ती और ओबीसी वोटर हैं। जिन पर भाजपा, कांग्रेस दोनों दलों की नजर है। रायपुर सीट पर भाजपा के अंदर चुनाव से पहले बगावत और नाराजगी भी देखी गई थी, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। हालांकि उमेश शर्मा काऊ राजनीति के खिलाड़ी माने जाते हैं। वे पार्षद से लेकर विधायक तक पहुंचे। जिस वजह से वे जनता के बीच पेंठ रखते हैं। रायपुर में सड़क, मोहल्ला क्लिनिक, मलिन बस्तियों की मूलभूत समस्याएं ही चुनावी मुद्दा है।