आलोक रंजन / चंडीगढ़ । पंजाब में मुख्यमंत्री के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को चुनाव से पहले और चुनाव के नतीजों के बाद एकजुट रखना है। पार्टी का यह फैसला कांग्रेस के प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के लिए करारे झ़टके के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि चुनावी सरगर्मियां शुरू होने के साथ ही सिद्धू खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे थे। मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के लिए सिद्धू अपने ही बुने जाल में फंस गए। दरअसल, सिद्धू यह मान रहे थे कि पार्टी हर हाल में उन्हें ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनाएगी, क्योंकि 2022 चुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़ा जा रहा है।
कांग्रेस ने पहले संयुक्त चेहरे पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, ताकि सिद्धू और चन्नी के बीच में कोई क्लेश न हो और दोनों ही एक साथ चलते रहें। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आने लगा सिद्धू ने स्टेज से यह मुद्दा उठाना शुरू कर दिया कि कांग्रेस की बरात का दूल्हा कौन होगा इसे बता दिया जाए। सिद्धू ने ‘दर्शनी घोड़ा’ से लेकर यह मुद्दे भी उठाते रहे कि अगर उन्हें पावर नहीं दी गई तो वह जिम्मेदारी नहीं लेंगे। सिद्धू जैसे-जैसे खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बता कर पंजाब माडल का मुद्दा उठा रहे थे, वैसे-वैसे कांग्रेस के विधायक उनसे दूर होने लगे।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में जाने व पार्टी पर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का दबाव बनाने की सलाह भी सिद्धू के एक सलाहकार ने ही दी थी। सिद्धू द्वारा ‘दूल्हा कौन होगा’ का मुद्दा जब बार-बार उठाया जाने लगा तो एक वरिष्ठ नेता की सलाह पर चन्नी ने भी अपना दावा ठोकना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह मामला इतना गर्म हो गया कि 27 जनवरी को राहुल गांधी को जालंधर में आकर यह कहना पड़ा कि वह जल्द ही लोगों व कार्यकर्ताओं से सलाह करके मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देंगे।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि सिद्धू चुनाव में कहीं विघ्न न डाल दें इसलिए पार्टी ने पंजाब में रिकार्डेड मैसेज मोबाइल फोन पर चलाकर जनमत भी करवाया। हालांकि इससे पहले कांग्रेस लगातार यह संकेत दे रही थी कि चन्नी ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे, लेकिन सलाहकार सिद्धू को लगातार यह आश्वस्त कर रहे थे कि कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं है, इसलिए वह (सिद्धू) ही चेहरा बनेंगे।
कांग्रेस सत्ता में वापसी केरेगी तो कैबिनेट को लेकर खींचतान शुरू होगी। सिद्धू और जाखड़ अपने लोगों को जगह दिलाने की कोशिश करेंगे। वहीं अगर कांग्रेस हार गई तो नतृत्व पर सवाल उठेंगे। सुनिल जाखड़ ने अगर सियासत से संन्यास लिया तो उनका अलग क़दम क्या होगा यह भी कांग्रेस के लिए चुनौती साबित हो सकती है। इसके साथ ही भाजपा ने राहुल गांधी की तरफ़ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार का ऐलान करने पर कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है।
गुटबाज़ी को मिल सकती है हवा
भारतीय जनता पार्टी सवाल उठा रही है कि राहुल अध्यक्ष नहीं हैं, फिर उन्होंने किस हैसियत से सीएम चेहरे का ऐलान किया है। भाजपा के सवालों से कांग्रेस में गुटबाजी को भी हवा मिल सकती है। पंजाब के सियासी जानकारों की मानें तो कांग्रेस के लिए बहुमत से जीत दर्ज करना बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए कांग्रेस को सभी नेताओं को एक मंच पर लाना होगा चाहे वह नवजोत सिंह सिद्धू के साथ चलने वाले हों या उनके खिलाफ़ हों। चरणजीत सिंह चन्नी को नवजोत सिंह सिद्धू, सुनील जाखड़, मनीष तिवारी, प्रताप सिंह बाजवा जैसे दिग्गज चेहरे को साथ लेकर चलना होगा, क्योंकि पिछले दिनों ये सभी नेता किसी न किसी वजह से पार्टी से नाराज़ चल रहे थे और पार्टी के खिलाफ़ बयानबाज़ी भी करते हुए नज़र आ रहे थे। पंजाब कांग्रेस में इसी गुटबाज़ी की वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोड़नी पड़ी और आज उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ़ी ही अपनी पार्टी बना ली जो कि सियासी ऐतबार से कांग्रेस के लिए चुनौती बन चुकी है।
क्या सिद्धू देंगे चन्नी का साथ ?
पंजाब के सियासी गलियारों में यह चर्चा भी ज़ोरों पर है कि नवजोत सिंह सिद्धू ख़ुद को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे थे। अब उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है ऐसे में क्या वह चन्नी का साथ देंगे या फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह चरणजीत सिंह चन्नी को भी साइड करने की रणनीति तैयार करेंगे। ग़ौरतलब है कि चन्नी को सीएम उम्मीदवार घोषित करने के बाद आज पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू किसी भी तरह के चुनावी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे हैं। सिद्धू के इस तरह से किनारा होने पर भी कई तरह की चर्चाएं हो रही है कि क्या सिद्धू अब प्रेदेश की राजनीति से दूर अपने ही हलके तक सीमित हो जाएंगे। वहीं सुनील जाखड़ ने भी पंजाब कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। वह वर्तमान में पंजाब चुनाव समिति के अध्यक्ष हैं लेकिन वह पहले ही कह चुके हैं अब सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे। उन्होंने कुछ दिन पहले यह दावा भी किया था कि उनके समर्थन में ज़्यादा विधायक होने बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया।
पार्टी के नेताओं को एकजुट रखना भी मुश्किल
सुनिल जाखड़ के इस बयान के बाद पंजाब कांग्रेस में सियासी सरगर्मियां बढ़ गई थी। कई तरह के क़यास भी लगाए जा रहे थे। हालांकि सुनील जाखड़ ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम उम्मीदवार बनाने की वक़ालत की थी। अब देखना यह होगा की वह चन्नी के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलते हैं या फिर दूरी बनाए रहते हैं। वहीं कांग्रेस मेनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन प्रताप सिंह बाजवा ने सीएम उम्मीदवार की घोषणा से पहले यह बयान दिया था कि सीएम उम्मीदवार के एलान से कोई फ़ायदा होगा। उन्होंने कहा था कि सीएम उम्मीदवार की घोषणा करने से बजाए कांग्रेस को सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहिए। सीएम उम्मीदवार के घोषणा से पार्टी में फूंट पड़ सकती है। अगर सामुहिक नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ा गया तो पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना मुश्किल हो सकता है।