अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । रेलवे स्टेशनों के विकास में लापरवाही न बरतने की सलाह देते हुए संसदीय समिति ने पुनर्विकास योजना को लेकर समय सीमा तय करने की सिफाशि की है। समिति ने कहा कि रेल यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए उक्त पुनर्विकास योजना के प्रति निवेशक दूरी बनाए हुए हैं। रेलवे को इसके पीछे के कारणों का पता लगाना चाहिए। जिससे स्टेशन पुनर्विकास को गति दी जा सके।
सांसद राधा मोहन सिंह की अध्यक्षता वाली रेल संबंधी स्थायी समिति ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जून 2015 में ए1 व ए श्रेणी के 400 रेलवे स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने की शुरूआत हुई। इसके तहत पीपीपी मोड में 19 रेलवे स्टेशनों को विकसित करने के लिए चुना गया, इसके बाद यह संख्या 50 हो गई। रेलवे बोर्ड ने आधुनिकीकरण संबंधी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। समिति ने पांच साल में 1.10 लाख करोड़ की लागत से 100 स्टेशनों का कायाकल्प करने का सुझाव दिया। इस आधार पर रेलवे मंत्रालय में नया सार्वजनिक उपक्रम भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (आईआरएसडीसी) का गठन किया गया। फरवरी 2017 में जोनल रेलवे द्वारा रेलवे स्टेशन पुनर्विकास योजना को शुरू किया गया। इसके तहत 23 स्टेशनों के लिए बोलियां मांगी गईं, लेकिन महत दो स्टेशनों जम्मू व कोझिकोड स्टेशन के लिए बोली आईं। शेष 21 स्टेशनों के पुनर्विकास के लिए किसी निवेशक ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। समिति ने रेलवे बोर्ड को सुझाव दिया है कि रेलवे निवेशकों की दूरी के कारणों का पता लगाए और सुधारात्मक कदम उठाए। रेलवे ने अपने जबाब में कहा है कि अक्तूबर 2018 में स्टेशन पुनर्विकास योजना में उसके आसपास की खाली भूमि व हवा क्षेत्र (स्टेशन के ऊपरी हिस्से) को व्यवसायिक प्रयोग आदि के बदलाव के साथ पुन: बोलियां मांगी गईं हैं। 50 स्टेशनों के लिए तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता के लिए अध्ययन किया जा रहा है।