आलोक रंजन / चंडीगढ़ । पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल को तगड़ा झटका दिया है। पूर्व राज्यसभा सांसद अमरजीत कौर ने गुरुवार शिरोमणि अकाली को अलविदा कहते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। भारतीय जनता पार्टी पंजाब प्रभारी दुष्यंत गौतम और सांसद अरविंद शर्मा की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली। अमरजीत कौर के भाजपा में शामिल होने से शिअद के वोटबैंक में सेंधमारी हो सकती है।
दिग्गज नेत्रियों में शुमार हैं अमरजीत कौर
अमरजीत कौर के सियासी इतिहास की बात की जाए तो वह 1976 से लेकर 1988 तक दो बार राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं। 1985 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा था लेकिन शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार चरणजीत सिंह वालिया से हार गई थीं। अमरजीत कौर की पटियाला के महाराजा भुपिंदर सिंह के बेटे कंवर दविंदर सिंह से शादी हुई थी, वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के चाचा थे। कैप्टन और उनके (अमरजीत कौर) परिवार के साथ रिश्तों में खटास की वजह से उन्होंने कांग्रेस को 2009 में अलविदा कहते हुए सुखबीर सिंह बादल की मौजूदगी में शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गईं थी। करीब 12 साल के उन्होंने शिरोमणि अकाली दल को अलविदा कह दिया है और अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं हैं।
शिअद को हो सकता है नुकसान
पंजाब के सियासी जानकारों की मानें तो अमरजीत कौर के शिरोमणि अकाली दल को छोड़कर जाने से पंजाब में शिअद के वोट बैंक में सेंधमारी हो सकती है। क्योंकी इस विधानसभा चुनाव में सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं। इस बार भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ने चुनावी मैदान में अपने-अपने उम्मीदवारों को उतारा है। इससे पहले के विधानसभा चुनाव में शिअद-भाजपा गठबंधन के तहत भारतीय जनता पार्टी 23 विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी लेकिन इस बार भाजपा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सियासी जानकारों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को अमरजीत कौर के पार्टी में आने से उन विधानसभा सीटों पर फ़ायदा पहुंच सकता है। जहां पहले शिरोमणि अकाली दल का क़ब्ज़ा रहा है।
सियासी ज़मीन मज़बूत कर रही भाजपा
पंजाब में किसान आंदोलन की वजह से भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूट गया। गठबंधन टूटने के बाद से ही भाजपा ने पंजाब में अपनी पकड़ मज़बूत करनी शुरू कर दी थी। जिन विधानसभा सीटों पर भाजपा की सियासी ज़मीन मजबूत नहीं थी। वहां गठबंधन के साथी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे। इसके साथ ही कुछ सीटों पर सुखदेव सिंह ढींढसा के शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं राम रहीम की फरलो को भी भाजपा की सियासी रणनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है। क्योंकि पंजाब के 69 विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजे डेरा समर्थक प्रभावित कर सकते हैं। विपक्षी दलों के नेताओं ने इस मामले को चुनावी मुद्दा बनाते हुए भाजपा पर जमकर निशाना साधना शुरू कर दिया है।