लावण्या झा / नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (SP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों ने कई विधायकों के टिकट काट दी है। जिसके कारण सालों से पार्टी के लिए काम कर रहे सभी नाराज कार्यकर्ता या तो दूसरी पार्टियों से टिकट लेकर मैदान में उतरे हैं या फिर अपनी-अपनी पुरानी पार्टियों के उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। चूंकि अब मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच नजर आ रहा है इसलिए बागियों से सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं दोनों पार्टियों को झेलना पड़ रहा है। पश्चिमी यूपी के कई जिलों में चुनाव हो चुके हैं, लेकिन पूर्वांचल में बागियों की संख्या ज्यादा है। इसलिए कई सीटों पर इसके सीधे असर से इंकार नहीं किया जा सकता है।
भाजपा: टिकट कटने कई उममीदवार हुए बागी
सत्तारूढ़ दल होने के बावजूद भाजपा को कई सीटों पर बागियों से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पूर्वांचल की मुगलसराय, गोरखपुर सदर, बैरिया समेत कई सीटों पर बीजेपी ने मौजूदा विधायकों के टिकट काट कर नए चेहरों को मैदान में उतारा है। इसको लेकर टिकट धारकों और उनके समर्थकों में भारी असंतोष है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि इन सबका दुष्परिणाम दिखना तय है। बलिया की बैरिया सीट से मौजूदा विधायक सुरेंद्र सिंह ने बगावत कर दी है और विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। सुरेंद्र सिंह की अपनी ही फैन फालोइंग है। ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी संसदीय कार्य राज्य मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को बड़ी चुनौती मिल सकती है।
गोंडा और ऊंचाहार में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं
गोंडा की कैसरगंज सीट से टिकट नहीं मिलने पर बगावत करने वाले विनोद कुमार शुक्ला भाजपा छोड़कर बसपा से हाथ मिला लिया है। ऊंचाहार से टिकट के प्रबल दावेदार रहे अतुल सिंह भी कांग्रेस से चुनाव लड़कर बीजेपी को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। सिद्धार्थनगर की इटावा सीट से टिकट नहीं मिलने पर कई बार विधायक रहे जिप्पी तिवारी खुद आगे आने की बजाय बसपा से अपने भाई को चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन बीजेपी में सपा से एक बात अलग है कि टिकट कटने के बाद भी ज्यादातर विधायक या पुराने कार्यकर्ता मुखर होकर विरोध नहीं करते।
सपा : कई सीटों पर तेवर दिखा रहे बागी
बागियों की सबसे ज्यादा संख्या समाजवादी पार्टी में है। पांचवें से सातवें चरण के चुनाव में सपा को सबसे ज्यादा बागियों का सामना करना पड़ेगा। कई सीटों पर यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें कड़ी चुनौती मिलेगी। अयोध्या की रुदौली सीट को ही देख लीजिए। पूर्व विधायक अब्बास अली रुश्दी मियां ने सपा से इस्तीफा दे दिया और बसपा के टिकट पर मैदान में हैं। वे सपा को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं। इसी तरह बीकापुर अखाड़े में अनूप सिंह निर्दलीय के तौर पर बगावत कर रहे हैं. वह एसपी को चुनौती भी देते नजर आ रहे हैं।
फाजिलनगर और टांडा में सपा के खिलाफ उतरे बागी
टांडा में शबाना खातून, मड़ियाहुं सीट से पूर्व विधायक श्रद्धा यादव, महोबा सीट से पूर्व विधायक सिद्ध गोपाल साहू के भाई संजय साहू, श्रावस्ती सीट से पूर्व विधायक मो. रमजान फाजिल नगर सीट से सपा जिलाध्यक्ष इलियास अंसारी ने बसपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। इसके अलावा सपा को कई सीटों पर पार्टी से नाराज पुराने कार्यकर्ताओं से भी छेड़छाड़ का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले चौथे चरण में भी फिरोजाबाद सदर सीट से टिकट नहीं मिलने से नाराज अजीम ने पत्नी साजिया हसन को मैदान में उतारा था। शिकोहाबाद में सपा के पूर्व विधायक ओपी सिंह भाजपा प्रत्याशी के रूप में सपा के सामने आ गईं थीं। सात बार सपा से विधायक रहे नरेंद्र सिंह यादव इस बार फर्रुखाबाद की अमृतपुर सीट से निर्दलीय चुनाव में उतरे हैं वहीं एटा सीट से सपा के खिलाफ पूर्व विधायक अजय यादव भी हाथी पर सवार हैं।
दलबदल के कारण बढ़ी विद्रोहियों की संख्या
दरअसल बीजेपी हो या एसपी, दोनों ने इस बार जमकर दूसरी पार्टी के दावेदारों को पार्टी में शामिल करवाया। मंत्री होते हुए भी स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे बड़े ओबीसी चेहरों के अलावा छह से ज्यादा विधायकों ने बीजेपी छोड़ साइकिल की सवारी की है। वहीं, एक दर्जन से ज्यादा पूर्व मंत्री और विधायक सपा छोड़ गए। वे भी भाजपा, कांग्रेस या बसपा में शामिल हो गए हैं या अपने बेटे, पत्नी या किसी समर्थक को मैदान में उतारकर अपनी पुरानी पार्टी के उम्मीदवार को चुनौती देते नजर आ रहे हैं।
उपेक्षित नेताओं ने चुनाव में साधी चुप्पी
खुलेआम बगावत करने के अलावा दोनों पार्टियों में बड़ी संख्या में ऐसे नेता भी हैं, जो पार्टी में उपेक्षा से आहत हैं और इस बार भी टिकट से वंचित कर दिए गए हैं। कई ऐसे लोग भी हैं जो करीब 25-30 साल से पार्टी के लिए ईमानदारी से काम कर रहे हैं और जब बारी आई तो पार्टी ने दूसरी पार्टियों के लोगों को टिकट देकर मैदान में उतारा। ऐसे लोग भाजपा और सपा के अधिकृत उम्मीदवारों के लिए भी चुनौती बन सकते हैं। वहीं कई ऐसे विधायक हैं जो दोनों पार्टियों में टिकट कटने से आहत हैं, जो खुद अधिकृत प्रत्याशी के साथ होने का नाटक कर रहे हैं। लेकिन उनके समर्थकों को पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन नहीं मिल रहा है। ऐसे समर्थक इलाके से निकलने की बजाय घरों में ही बैठ गए हैं।